Thursday, July 23, 2015

कहीं तो मिलेंगे तो पूछेंगे हाल

सुबह निकलते हुए 6 बज गए। सूरज भाई दिखे नहीं। लेकिन उनके बच्चे उजाला और रौशनी पूरी कायनात में फैले हुए थे। हमने इंतजार नहीं किया सूरज भाई का यह सोचते हुए कि कहीं तो मिलेंगे तो पूछेंगे हाल।

शोभापुर रेलवे क्रासिंग खुली थी।हमने उस खम्भे का फ़ोटो लिया जिसमें सीएफएल ट्रेनिंग का पोस्टर चिपका था। प्रतिदिन एक घण्टा मात्र 15 दिन में।घर बैठे रोजगार। अनुश्री वॉच मेन रोड गोकलपुर। मोबाईल 9926870140 । Masijeevi की सूचना के लिए यह जानकारी। अगली बार जब पाठशाला बन्द हो तो जबलपुर आकर ट्रेनिंग लेने का विचार करें।रहने के लिए कमरे और घूमने के लिए साइकिल का इंतजाम हम कर देंगे।

क्रासिंग पार करके पुल के नीचे लोगों के चूल्हे सुलग चुके थे। लोग खाना बना रहे थे। आगे दीपा सड़क किनारे एक अल्युमिनियम के कटोरे में पानी रखे मुंह धो रही थी। उसने पूछा -कितने बज गए? हमने कहा- तुम बताओ।तुमको तो अंदाज रहता है कितने बज गए। उसने बताया- छह बजते होंगे। उस समय 6 बजकर 8 मिनट हुए थे।

बोली सात बजे तक तैयार होकर स्कूल जायेगी। स्कूल आठ बजे का है। मुंह धोकर बचे हुए पानी से उसने कटोरा साफ़ किया और अपनी कुठरिया में चली गयी।


चाय की दूकान पर लोग चाय पीते हुए बहस कर रहे थे। बातचीत को रोचक बनाने के लिए गालियों के तड़के लग रहे थे। बात दूध की कीमत से शुरू हुई। एक ने कहा- दाम एक बार बढ़ गए तो फिर कम नहीं होते। अगले ने सरकार के मुखिया का नाम लेते हुए माँ की गाली से शुरुआत करते हुए कहा- जबसे सरकार आई है तबसे हर चीज में मंहगाई बढ़ी है। बुजुर्ग माँ की गाली की देखभाल करने के लिए दूसरे ने बहन की गाली को भी साथ कर दिया।

चाय की दूकान पर हुई यह बातचीत अगर फेसबुक पर होती तो फेसबुक का माहौल इतना गरम हो जाता कि दस बीच चाय उसी में खौल जातीं।

स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ऐसी जगहों के प्रमुख विषय होते हैं। लब्बो-लुआबन यह कि साईकिल चलाने से आदमी हमेशा जवान बना रहता है। हमेशा मजे का मन बना रहता है। खून का दौड़ा ठीक रहता है। मतलब कि हर बीमारी का इलाज साइकिल। एक ने तो साइकिल चलाने से बुढ़ापे तक यौन शक्ति बने रहने की बात इतने कांफिडेंस से बताई कि लगा अगर साइकिल का अविष्कार करने वाले मैकमिलन ययाति के पहले पैदा हुए होते तो ययाति को अपनी अतृप्त इच्छाएं पूरी करने के लिए अपने पुत्र से जवानी उधार न मांगनी पड़ती। साइकिल चलाकर ही उनका काम बन जाता।

चाय की दूकान पर चाय पीती हुई महिला से मजाक करते हुए एक ने कहा- ये दिखने में भले बुढ़िया लगे लेकिन करन्ट बहुत तेज है। महिला ने सुनकर उसको भी नहले पर दहला टाइप कुछ कहा। फिर किसी बात पर बोली-हमको चीटिंग पसन्द नहीं। हम साफ बात करते हैं।


आगे विरसा मुंडा चौक पर राजू टी स्टाल पर उसकी पत्नी भी साथ थी। हमने उसकी चोट के बारे में पूछा।चोट दिखाई उसने।घुटने के पीछे चोट का निशान बना हुआ था। बताया-पानी लेने गए थे। फिसल गए। लोहा लग गया। टांके लगे। अब ठीक है। दर्द कम है।

चौराहे पर कुछ लोग बैठे बतिया रहे थे। एक पण्डितजी टाइप बुजुर्ग लोगों को थैली से निकालकर चुनही तम्बाकू बाँट रहे थे। चैतन्य चूर्ण। पता चला 2008 में जीसीएफ से रिटायर्ड हैं। पंडिताई करते हैं अभी। तम्बाकू खाते हुए वहीं बगल में पिच्च से थूक दिए। हमने टोंका तो बोले-अभी पानी बरसेगा। साफ हो जायेगा।

चौराहे पर कई युवा हॉकर साइकिल पर अखबार लादे अखबार बांटने के पहले चाय पीने के लिए रुके थे। हरेक के पास 150 से 180 तक अखबार थे।एक अखबार बांटने के 90 पैसे मिलते हैं मतलब 27 रूपये महीना एक घर को अखबार देने से अखबार वाले को मिलते हैं। 150 से 200 अख़बार देकर 4 से 5 हजार मिलते होंगे हॉकर को।
दो तीन घण्टे में बंट जाते हैं अख़बार। जिनको देर से मिलता है वो टोंकते नहीं? एक अख़बार वाले से यह पूछा तो बोला- नहीँ। आदत हो जाती है फिर नहीं टोंकते।

आदत हो जाने पर न टोकने की बात से हमको श्रीलाल शुक्ल जी बात याद आ गयी। एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा था- हम भारतीयों को अभाव और अमानवीय स्थितियों किसी भी तरह जी लेने की जैसी आदत पड़ गयी है सदियों से उसको देखते हुए निकट भविष्य में मुझे कोई बड़े बेहतर बदलाव की उम्मीद नजर नहीं आती ।
आम तौर पर विरसा मुंडा चौक से फिर आगे व्हीकल मोड़ से रिछाई होते हुए लौटते हैं।लेकिन आज विरसा मुंडा चौक से वापस लौट लिए। दीपा मिलेगी यह सोचते हुए छोटा बिस्कुट का पैकेट ले लिया उसके लिए।


बच्ची नहाकर तैयार हो गई थी। पूछा- बताओ क्या बजा होगा अब? उसने - बताया 7 बजे होंगे। संयोग कि सात ही बजे थे। बिस्कुट का पैकेट लेकर थैंक्यू बोला उसने। उसकी फोटो खींची तो कुत्ता भी आ गया साथ में। बोली -इसको भी खिलाएंगे। फोटो देखकर खुश हुई । फिर बोली-पापा की फोटो नहीं आई इसमें।

लौटते हुए हम सोच रहे थे कि जाने-अनजाने बच्ची से लगाव के चलते हम आगे चक्कर मारकर जाने के बदले उससे फिर मिलने के लिए वापस लौट आये। महादेवी वर्मा जी की कविता पंक्तियाँ याद आ गयीं:

बाँध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बन्धन सजीले
पन्थ की बाधा बनेंगे, तितलियों के पर रंगीले।
तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना।
दूर जाने की बात से याद आ गया कि अपन को तो दफ्तर जाना है। चलते हैं फटाक देना अब। आप भी निकलो। मजे से रहना। मुस्कराते हुए। ठीक ?

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