कल बताया था कि साईकिल के ब्रेक काम नहीं कर रहे। शाम को पता लगा कि ब्रेक लगाने पर जो रॉड ऊपर की तरफ उठती है वह तो ऊपर उठ रही थी लेकिन ब्रेक नहीं लग रही थी। पता चला कि जो रॉड और ब्रेक को जोड़ने वाला नट कहीं फूट लिया। इससे ब्रेक की रॉड और ब्रेक के बीच सम्बन्ध सेतु टूट गया। बिचौलिया गायब हो गया।
मतलब जो ताकत हम ब्रेक के लिए भेज रहे थे वह ब्रेक के गुटकों तक पहुंच नहीं रही थी। कुछ ऐसे ही जैसे सरकार के खजाने से निकला पैसा जनता तक न पहुंचे। साइकिल और सरकार में फर्क यह कि यहां ताकत इसलिए नहीं पहुंच रही थी क्योंकि बिचौलिया गायब था। जबकि सरकारी पैसा बिचौलियों के होने के कारण नहीं पहुंच पाता।
साइकिल चूँकि छोटी होती है झुककर देख ली जाती है। सरकारों का तन्त्र बहुत बड़ा होता है। उसकी गड़बड़ियां तुरन्त नहीं पता चलतीं। सालों बाद खुलासा होता है। फिर हल्ला होता है। गुल्ला होता है। जांच होती है। पहले पुलिस जांच करती है। फिर सीडीआई आती है मैदान में। फिर सीबीआई गार्ड लेती है। सरकारें बदलती हैं। नयी गड़बड़ियां होती हैं। उनकी भी जांच होती है। तब तक पुरानी जांच रिटायर हो जाती है।
लोकतन्त्र ऐसे ही चलता है। अच्छाई या बुराई जो भी हो वह बहुमत से तय होता है। कोई घपला ज्यादा दिन होता रहा इसका मतलब ज्यादा लोग उसके पक्ष में हैं।
जिस व्यवस्था में विकास बहुत तेज होता है उसमें घपले भी तेज होने की सम्भावना रहती है। जैसे जब गाड़ियां बहुत तेज चलती हैं तो उनमें स्पीड के चक्कर में एक्सलेटर ज्यादा दबाया जाता है। पेट्रोल ज्यादा ज्यादा जाता है इंजन में। जैसे पावरफुल अपराधी जेल जाते ही जमानत पा जाता है वैसे ही एक सीमा के बाद पेट्रोल बिना जले वापस आ जाता है।पर्यावरण प्रदूषित करता है।
लेकिन बात ब्रेक की हो रही थी। ब्रेक केवल अगला गड़बड़ था। पीछे का काम कर रहा था। सो आहिस्ते-आहिस्ते चलते हुए निकले। हनुमान मन्दिर के बाहर कोई भिखारी नहीं दिखा। हनुमान जी केवल मंगल और शनिवार के ही दिन कमाई करा पाते हैं।
एक आदमी एक पत्थर पर पैर रखे मोबाईल पर बतिया रहा था। उसका पत्थर पर पैर रखकर फोटो खिंचवाने का अन्दाज वैसा ही था जैसा पुराने जमाने में राजे महाराजे मरे हुए शेर पर लात रखकर बन्दूक तानकर फोटो खिंचवाते थे। मुझे लगता है कि ये शेर भी ज्यादातर राजाओं के कारिंदे ही मारते होंगे। राजे महाराजे केवल 'फोटो बहादुर' होते होंगे।
यह कुछ वैसे ही जैसे आजकल जो बड़े बड़े सूरमा लोग अपने सलाहकारों का लिखा हुआ भाषण पारदर्शी प्रॉम्प्टर पर देखते हुए फर्राटे से पढ़ते हैं और लोग समझते हैं कि सूरमा ने भाषण शानदार दिया। क्या पता जब वह सूरमा भाषण पढ़ रहा हो तब उसका लेखक किसी सब्जी की दुकान में टमाटर का मोलभाव कर रहा हो।
चाय की दूकान पर चाय वाले ने देखते ही नमस्ते और चाय थमा दिया और मसाले की पुड़िया फाड़कर मुंह में उड़ेल ली। हमने आदतन टोंका तो बताया कि दिन में एक ही खाते हैं। उसके बनाये पोहे और जलेबी पर मक्खी आराम से बैठी हुईं थीं। हमने कहा कि इसका जालीदार ढक्कन ले लो तो उड़ने मक्खियों को प्यार से उड़ाया जैसे चौराहों पर होमगार्ड वाले रेहड़ी और रिक्शे वालों को भगाते हैं। जरा देर में ही मक्खियां फिर 'जैसे उड़ि जहाज को पंक्षी फिरि जहाज पर आवै' की तरह पोहे और जलेबी के ढेर पर विराज गईं।
साइकिल वाले ने बताया कि ब्रेक के नट के लिए रांझी जाना पड़ेगा।
लौटते हुए देखा कि दो बच्चे साइकिल से स्कूल जा रहे थे। सड़क खाली थी।आगे वाला बच्चा तो धड़ल्ले से सड़क पर गया। पीछे वाला लगातार मुड़ने की दिशा में हाथ देते हुए मुड़ा। साथ ही जाते दो बच्चों का अलग व्यवहार। क्या पता हाथ देकर मुड़ता हुआ बच्चा आदर्श नागरिक बने। दूसरा भी क्या पता ज्यादा बड़ा आदर्श बने।
वैसे कब कौन क्या बनेगा इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता न जैसा पॉपुलर मेरठी न कहा भी है:
न देखा करो मवालियों को हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाए।
सैर की शुरुआत अगर ब्रेक के झटके से हुई तो समापन सुखद हुआ। हुआ यह कि पिछले हफ्ते भर से हमारे एटीएम से पैसे निकल नहीं रहे थे। उसकी चुम्बक पट्टी पीछे की जेब में कई लौह तत्वों से मुकाबला करते हुए राणा सांगा हो चुकी है। पैसा निकालते समय हर बार गलत कार्ड बताता है मुआ एटीएम। हम कार्ड की पट्टी को पुचकारते हुए फिर अंदर भेजते कि शायद पैसा उठा लाये एटीएम से। लेकिन हफ्ते भर से हुआ नहीं। आज आखिरी पैसे से चाय पीने के बाद सोचा एक बार और घुसाया जाए एटीएम।
ताज्जुब कि आज पहली बार ही एटीएम घुसते ही काम किया। मारे ख़ुशी के हम पासवर्ड भूल गए। फिर किसी तरह याद किया और पैसे निकाले। यह ख़ुशी कुछ-कुछ उसी घराने की होगी जैसे किसी बाप का नालायक बेटा कोई बड़ी कमाई करके बाप को थमा दे और कहे सब आपके आशीर्वाद से हुआ। हम उसको अब तक पुचकार रहे हैं।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हास्य कवि ओम व्यास 'ओम' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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