Tuesday, July 07, 2015

मोको कहां ढूंढे रे बन्दे

मोको कहां ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में।
पंकज टी स्टाल पर बजता यह गाना सर्वव्यापी घपलों-घोटालों के किसी प्रवक्ता का बयान लग रहा है। अब तो यह लगता है पता नहीं किस जगह से कोई घपला उजागर हो जाये।कुछ दिन हल्ला मचाये और फिर अगले घपले के लिए जगह देने के लिए नेपथ्य में चला जाए। घोटालों में आपस में बड़ा भाईचारा होता है। सब मिलजुलकर रहते हैं। एक दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करते हैं। छोटा घपला बड़े घपले के होने पर जो कहता होगा वह गाना बज रहा है:
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाए तरुवर को छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
जबसे तेरी शरण में मैं आया।
क्या पता ललित घोटाला व्यापम घोटाले से यही कुछ कह रहा हो। अच्छा हुआ तुम आ गए भैया। हमको थोड़ा राहत मिली। बहुत बवाल हो रहा था। सांस लेने की फुरसत नहीं मिल रही थी।

खैर छोड़िये। यह सब तो किसी भी विकासशील देश के किस्से हैं। जब देश बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा तो देश के नागरिक भी उसी भावना से प्रभावित होंगे। उसमें भी जब आर्थिक समृद्धि ही आगे बढ़ने का पैमाना माना जाएगा तो कुछ न कुछ गड़बड़ी होगी ही।

फल के पेड़ पर पकने का कुछ समय होता है। अब अगर उसको केमिकल डालकर पकाएंगे, सुई से मीठा बनाएंगे तो उसका असर फल में तो होगा ही। झटके से अमीर बन जाने, सबको धकियाकर सबसे आगे निकल जाने की ललक तमाम घपलों की नींव की ईंट होती है। पकड़े जाने पर आदमी अकेला हो जाता और गाना बजता है:
सुख के सब साथी
दुःख में न कोय।
आज सुबह करीब दो हफ्ते बाद निकले साइकिल लेकर।आगे पहिये की हवा कम। ब्रेक दोनों आवारा। कितना भी जोर से लगाये लेकिन गाड़ी मुक्त अर्थव्यवस्था की तरह ब्रेक के नियंत्रण से बाहर ही रही। कहीं भिड़ न जाएँ इसलिए ' हिन्दू रेट आफ ग्रोथ' की तर्ज पर खरामा-खरामा चलते हुए आये। कहीं रुकने के लिए 'पैर ब्रेक' के इस्तेमाल की सोच रखी थी। गाना बजने लगा।
मोरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए।
निकलते ही फैक्ट्री के एक रिटायर कर्मचारी मिल गए। बताये कि जौनपुर से आये थे नौकरी करने। वहां रोजगार कार्यालय में कार्ड बना था। जब फैक्ट्री बनी तो वैकेंसी निकली। रोजगार कार्ड से ही यहां जबलपुर में लग गयी नौकरी। पता नहीं उस समय रोजगार दफ्तर में नाम लिखाने कुछ गड़बड़ी होती होगी कि नहीं। होती भी होगी तो इतनी बड़ी नहीं होती होगी कि उसके छुपाने में पचासों लोग मारे जाएँ। या एक ही जाति के खूब सारे लोग नौकरी पा जाएँ।

सड़क पर हम लोग जहां पर खड़े होकर बात कर रहे थे (केंद्रीय स्कूल के पास) बताया कि वहां से नहर से आगे कृषि विश्वविद्यालय और दूसरे खेतों में पानी जाता था। फिर धीरे-धीरे नहर बन्द हो गयी। लोगों ने खुद के पानी का इंतजाम कर लिया। आसपास की जमीन कृषि जमीन से निकल गयी। लोगों ने जिस जगह पर पहले से ही कब्जा कर रखा था वह जमीन नगर निगम ने पट्टे काटकर लोगों को बाँट दी।

यह भी एक तरीका है जमीन पर अतिक्रमण करने का। झील सिकुड़ गयी। झील से जमीन निकल आई। आसपास लोग कब्जा करके बस गए और झील के सिकुड़ने का गाना गाने लगे। अगला गाना सुनिए:
ऐ मालिक तेरे बन्दे हम
नेकी पर चलें और बदी से डरें
ताकि हँसते हुए निकले दम।
यह गाना व्यापम लफ़ड़े में फंसे लोग ने ध्यान से सुना नहीं होगा। सुना होता और अमल में लाये होते तो मजे में रहते।

क्या पता मारे गए तमाम लोग नेकी पर ही चलने वाले रहे होंगे लेकिन फिर भी उनका दम हंसते हुए न निकल पाया हो क्योंकि वे किसी घोटाले को उजागर करने या उसको रोकने के काम में लगे हों।

जाते समय कानपुर के ही रामसिंह कुशवाहा जी से मिले। 80 पार कुशवाहा जी का बेटा कुछ दिन पहले ही रिटायर हुआ। स्वास्थ्य इतना चकाचक कि कहीं 80 के होने की मोहर नहीं लगी। 25 साल पहले पत्नी का निधन हो गया था। तबसे बेटे-बहुओं के पास रहते हैं। तीन भाई हैं। भाइयों की साझे की खेती बटाई पर उठती है। बता रहे थे कि बेटे की बिटिया न्यूजीलैंड गई है। ऐसा टनाटन स्वास्थ्य सबको मिले।

आपका दिन चकाचक बीते। व्यस्त रहें। मस्त रहें।

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