आज दैनिक हिंदुस्तान अखबार में खबर छपी -तम्बाकू खाने में 61 का चालान। एक प्रधानाचार्य पर भी जुर्माना हुआ 500 रूपये का।
तम्बाकू का चलन तो बहुत पहले से था। 30-40 साल पहले मुझे याद है कि हमारे गाँवों में तम्बाकू नकदी फसल के रूप में आई। घर-घर तम्बाकू की खेती होने लगी। खूब सिंचाई के बाद घरों में तम्बाकू बनती। पत्ते से लेकर जड़ तक बिकती। घर के घर तम्बाकू की गन्ध से भरे रहते। बाद में कुछ कानूनी अड़चनों सीलिंग के चलते कमी आई इसमें। सस्ता नशा होने के चलते प्रचलित था/है गरीबों में यह 'चैतन्य चूर्ण'।
इसके बाद आया चलन पान मसाले का। देखते हैं कामगार वर्ग का हर अगला आदमी पान मसाला खाता है। जिसको देखो वह मुंह उठाकर हवन सामग्री के रूप में पुड़िया उदरस्थ करता मिलता है। रिक्शावाले, ऑटो वाले, ड्राइवर जिससे पूछो कहता है- 'आदत पड़ गयी है। रात की ड्यूटी में न खाएं तो नींद आती है।'
दफ्तरों में देखो लोग मुंह चलाते नजर आते हैं। फोन पर बात करो तो गों-गों करती आवाज बात करते व्यक्ति की मसाले की गिरफ्त में होने की सूचना देती है।
मजे की बात यह है कि ज्यादातर मसाले के शौक़ीन इसकी दुष्परिणामों से वाकिफ हैं। हमारी निर्माणियों में पिछले कई सालों में कई लोग मसाले की चपेट में आकर कैंसर के चलते मारे गए। लेकिन यह लत ऐसी लगी है लोगों में कि लोग इस मोहक भरम का शिकार हैं कि उनके साथ यह अनहोनी नहीं होगी।
पान मसाला खाने वाले इस भरम के शिकार भी होते हैं कि वे जो मसाला खाते हैं उसमें तम्बाकू नहीं होती, मसाला केसर युक्त है। लोगों को यह सोचते भी नहीं कि केसर अगर होता तो भला पुड़िया 1 रूपये में मिलती। मसाले की पुड़िया सस्ती करने की होड़ में मसाले में नकली केमिकल डाले जाते हैं। ये रसायन सिवाय बीमारी के और कुछ नहीं देते।
जो मसाला खाते हैं उनको यह सोचना चाहिए कि वे खुद के ही नहीं बल्कि अपने परिवार के भी दुश्मन होते हैं। इसके चलते होती बीमारियां आदमी को कहीं का नहीं छोड़ती। मुंह खुलना बन्द हो जाता है। कैंसर और अन्य रोग हो जाते हैं। कुछ हो गया तो बच्चे और परिवार दर-दर भटकने को मजबूर हो जाते हैं। अगर आप में अपने परिवार से मोहब्बत करते हैं तो पान मसाले को छोड़ दीजिये।
इसका खतरा सिर्फ आप तक ही नहीं है। आप अगर खाएंगे मसाला तो आपके बच्चे भी सीखेंगे। तब आप अपना सर धुनेगे। बच्चे की भी धुनेगे। लेकिन तब तक उसकी भी लत पड़ चुकी होगी।
कोई भी लत किसी जुर्माने से नहीं छूटती कुछ कमी भले हो जाए। कोई भी नशा करने वाला जुगाड़ तलाश ही लेता है। नशे की लत छोड़ने के लिए पहले जरूरी है यह तय करना कि वह लत गलत है और उससे मुक्ति पाना जरूरी है। एक बार निश्चय हो जाने पर फिर उससे मुक्ति पाना सम्भव हो सकता है।
Parveen Chopra अपने लेखों में अक्सर तम्बाकू मसाला खाने से होने वाली बीमारियों के बारे में बताते रहते थे। मैं उनके लेखों के प्रिंट आउट अपनी उत्पादन शाला में लगाता था। लोगों को पान मसाला छोड़ने के लिए कहता भी था। कुछ लोगों में बताया कि उन्होंने छोड़ दिया। पता नहीं कितना सच था। क्या पता वे फिर शुरू हो गए हों।
कभी-कभी जब यह खबर मिलती है कि कैंसर से किसी की मौत हुई तो लगता है कि यह मौत नहीं आत्महत्या है जिसमें उसके साथी, दोस्त भी शामिल हैं जो उसको इस लत को छोड़ने के लिए राजी नहीं कर पाये।
आज भी किसी को पान मसाला खाते देखता हूँ तो टोकता जरूर हूं। लोग माने न माने उनकी मर्जी। कुछ लोग हंसी में उड़ा देते हैं। कुछ इसे अपनी निजता में अतिक्रमण मानते हैं। बहाने तो सबके पास हैं ही मासूम से।
पान मसाले कुछ ज्यादा हो गया आज। वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर पान मसाले से लाभ ही हुआ है। जैसा कि मेरी श्रीमतीजी ने बताया कि मुझसे पहले उनकी शादी की बात जिस लड़के से चल रही थी वह जब उनके यहां आया तो उसने इनके सामने पान मसाले की पुड़िया निकाली, फाड़ी और मुंह में डाली।दूसरी इनके घर वालों को भी ऑफर की। इसी पान मसाले के चलते भला लड़का रिजेक्ट हो गया। हमारा फायदा हुआ। वह पान मसाला न खाता होता तो शायद बात पक्की हो जाती।
आप भी देखिये कि कहीं आप भी तो पान मसाला की लत के शिकार तो नहीं। अगर हाँ तो बचने की कोशिश करिये। चूके तो जिंदगी किसी न किसी बहाने आपको रिजेक्ट कर सकती है।
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