दो दिन पहले कविता 'अलगाव का समय' पोस्ट की दी। जिसमें यह पंक्तियाँ भी थीं:
"लगता है काम चल सकता है
बिना धड़कनों के भी-
बेकार ये शरीर घड़ी टिक-टिक करती है
एक मिनट में बहत्तर बार."
लगता है दिल इसका बुरा मान गया। उसके चले रात को दिल बड़ी तेज-तेज धड़कने लगा। हमने दिल पर हाथ रखकर समझाया कि भाई कविता की बात का बुरा नहीं मानते। लेकिन वह सनक गया तो फिर माना नही। ऐसे तेज धड़कता रहा जिसके लिए शेर कहा गया है:

तू किसी रेल सी गुजरती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।
पानी वानी पीने के बाद भी दिल किसी जनरेटर सा धड़कता रहा। जब दिल माना नहीं तो बगल के कमरे से Pradeep को बुलाया। बोले-चलो जरा अस्पताल तक टहल के आते हैं। अस्पताल पहुंचे तो स्टाफ वही था जिसने सुबह बच्ची की पट्टी की थी। बीपी देखा तो वह तो 130/90 मतलब लगभग सामान्य फिर भी हमारे सामान्य बीपी से 120/80 से कुछ उचका हुआ था। लेकिन पल्स रेट 180 से 190 के करीब। मतलब सामान्य से ढाई गुना करीब। सीने में कोई दर्द या तूफान नहीं। ईसीजी में धड़कन 176 । मतलब सामान्य से वहीँ ढाई गुने करीब। डाक्टर बोला -शहर के अस्पताल में रिफर कर दें। हमने कहा न भाई। यहीं दवा दो। पहले भी ऐसा हुआ था। अस्पताल जाते-जाते सामान्य हो गए थे। फिर हृदय रोग विशेषज्ञ एक हफ्ता दौड़ाता रहा।सब कुछ सामान्य था।

असल में बचपन से हमको पेट के लेट ले पढ़ने की बुरी आदत है।बचपन में वजन कम था। अब भी कभी-कभी पेट बल लेटकर देर तक पढते हैं तो दिल दबता है।फिर जब उठते हैं तो आजाद होने पर झंडे की तरह फड़फड़ाता है।डाक्टरी भाषा में इसे 'टेकिकार्डिया' कहते हैं शायद। नेट पर इसके कारण देखा तो पिछले अनुभव से मुझे अंदाज हुआ कि देर तक पेट के बल लेटे रहने के कारण हुआ होगा ऐसा। पिछली बार तो पल्स रेट 200 पार कर गयी थी।बाद में कार्डियोलॉजिस्ट ने कई टेस्ट कराने के बाद जो दबाई दी थी उससे बीपी सामान्य से कम होता गया। फिर डाक्टरों की सलाह से दवाई बन्द कर दी।

प्रदीप के साथ स्कूटी पर अस्पताल गए।तो जैसा बताया पल्स रेट तेज। दवाई देकर डाक्टर इन्तजार करता रहा।लेकिन धड़कन दर 180 से कम ही नहीं हो रही थी।असल में अस्पताल में जो दवा थी वह बीपी और पल्स रेट दोनों को कम करने वाली थी। जबकि हमारा बीपी सामान्य था। केवल धड़कन कम करने वाली दवा नहीं थी।
हमें पक्का पता था कि पल्स रेट सामान्य होगी कुछ देर में लेकिन हम जहां ऊँगली में दबे उपकरण को देखें धड़कन 180 पार जाती दिखे। एक बार झटके से 100 के नीचे हुई तो हमें लगा चकाचक हो गए। लेकिन पता लगा वह सम्पर्क टूटने की वजह से हुआ था।

जब ठीक होने में देर हुई तो हमने अपने घरवालों और तमाम दोस्तों को शिद्दत से याद करना शुरू किया जिनसे अक्सर बात होती रहती है। उनको भी याद किया जिनसे बात करना उधार है। जिसको हिचकी आई हो उसका कारण मेरे द्वारा उसको याद करना रहा होगा।

खैर करीब दो घण्टे बाद पल्स रेट औकात में आ गई। ईसीजी सामान्य।हम कमरे पर आये डॉक्टर की इस हिदायत के साथ कि दो दिन बाद कार्डियोलॉजिस्ट को दिखाएँगे।


पल्स रेट 170 से 190 के दौरान बिस्तर पर लेते हम सोचे रहे थे कि मान लो कुछ अनहोनी हो जायेगी तो क्या होगा।

पिछले कुछ दिनों से मैं इस बारे में सोचता हूँ कि 50 साल जी लिए। अब न जाने कब किधर से कौन ठोंक दे और कहे चलो मालिक ने बुलाया है। हमें लगा कि मान लो आज कोई कहे कि गुरु चलो अपना शटर गिराओ तो हमें सिर्फ यही अफ़सोस होगा कि कुछ बेहतरीन किताबें बिना पढ़े और दुनिया का बड़ा हिस्सा अनदेखा छोड़ के जाना हुआ।
बहरहाल अब बिस्तर पर लेटे-लेटे तीन कसमें खाई:
1. स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना। खानपान और दिनचर्या ठीक रखने के लिए कोशिश करना।
2. लिखाई पढ़ाई और घुमाई का काम नियमित करते हुए सब काम समय पर निपटाना।
3.किसी का जाबूझकर दिल न दुखाना। (यह ऐसे ही लिखा ताकि हवा पानी रहे कि कितने अच्छे मन के हैं)
यह न समझा जाए कि यह बातें पहले नहीं सोची। सोची थीं लेकिन अभी तबियत ठीक होने के बाद सोचना थोडा ज्यादा ग्रेसफुल लगता है न। smile इमोटिकॉन
नोट:रात यह पोस्ट लिखी थी। पोस्ट किये बिना सो गए थे। अभी पोस्ट कर रहे। यह बताने के लिए कि कभी पल्स रेट ऐसे भी बढ़ जाती है। लेकिन कुछ लफड़ा लगे तो फौरन डाक्टर की शरण में जाएँ। आखिर उनके भी बाल बच्चे हैं। smile इमोटिकॉन
बकिया तबियत चकाचक है। smile इमोटिकॉन हां डॉक्टर से इलाज करवाते समय सोच रहे थे कि कहीं भाई साहब व्यापम के उत्पाद तो नहीं। लेकिन भाईसाहब बढ़िया डाक्टर लगे।

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