आज अख़बार में यह खबर पढ़ी, "उधार में सिगरेट नहीं देने पर युवकों ने दुकान में लगा दी आग।"
लड़कों की हरकतें एकदम अमेरिका, ब्रिटेन टाइप लगीं। बात मानने से मना किया तो फूंक दिया पूरा ईराक।
युवकों ने दूकान को आग हवाले किया। अमेरिका ने इराक को आई.एस.आई.एस. के हाथ थमा दिया।
इससे यह लगता है कि चाहे व्यक्ति हो या देश, सिरफ़िरे युवाओं कि हरकतें एक जैसी होती हैं। आखिर अमेरिका भी तो एक युवा देश ही है। महज 500 सौ साल के करीब उम्र का।
लड़के शायद बदमाश नहीं थे। न सिगरेट के लती। लती होते तो इतनी देर तक सबर नहीं कर पाते कि रात 9 बजे की मना की गयी उधारी का गुस्सा रात डेढ बजे उतारें ।
शायद यह जीवन मूल्यों की टकराहट है। दुकानदार के अनुसार, उधार प्रेम की कैंची होगा। जबकि लड़के लोग उधार को प्रेम का पुल और फ्लाई ओवर मानते होंगे। एक मरियल सा पुल बनने में जितना लोहा लगता है उतने में हजारों, लाखों कैंचियां बन सकती हैं। इसलिए पुल और कैंची की भिड़ंत में कैंची की ऐसी-तैसी तो होना पक्का है।
शायद युवक बाजार के हिसाब से चल रहे होंगे। आपके पास बनियाइन खरीदने के पैसे भले न हों लेकिन बाजार आपको बाइक और मोबाईल जबरियन थमा देगा। ले जाओ बेट्टा ऐश करो। पैसे तो हम वसूल ही लेंगे। उधार लेकर आओ। क़िस्त पर क़िस्त चुकाओ। स्मार्ट नागरिक बन जाओ।
आज का युग ही उधारी का युग है। आज हर बड़े आदमी के पास क्रेडिट कार्ड मतलब उधारी का लाइसेंस रहता है। जिसकी जितनी बड़ी उधारी वह उतना बडा आदमी। गणित की भाषा में कहें तो आज के समय में आदमी का बडप्पन उसके क्रेडिट कार्ड की उधारी लिमिट के समानुपाती होता है।
नौजवानों को शायद गुस्सा इस बात पर आया होगा कि जब पूरी दुनिया में उधारी का चलन है तो ये पनवाड़ी कैसे मना कर सकता है उधार देने को। जब दुनिया भर की सरकारें उधारी के रथ पर सवार होकर सरपट भाग रही हैं, विकसित देशों के नागरिक उधार पर जिन्दगी जी रहे हैं तो अगर कोई पानवाला उधार में सिगरेट देने से मना करता है इसका मतलब वह देश के विकास का दुश्मन है। देशप्रेमी नौजवानों ने देशी आदमी की दुकान सुलगा दी।
संभव यह भी हो सकता है कि युवक शब्दों, मुहावरों को उनके प्रचलित अर्थों से हटकर नये रूप में ग्रहण करना चाह रहे हों। आजकल किसी भी बात पर उत्तेजित होकर सरकारी संपत्ति फ़ूंक देने को लोग क्रांति की संज्ञा देने लगे हैं। उसी तर्ज पर शायद युवक लोग दुष्यन्त कुमार के शेर:
मेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये।
को नये संदर्भ में ग्रहण करने की कोशिश कर रहे हों। सिगरेट न सुलगा सके तो दुकान ही सुलगा दी।
आपका क्या कहना है?
लड़कों की हरकतें एकदम अमेरिका, ब्रिटेन टाइप लगीं। बात मानने से मना किया तो फूंक दिया पूरा ईराक।
युवकों ने दूकान को आग हवाले किया। अमेरिका ने इराक को आई.एस.आई.एस. के हाथ थमा दिया।
इससे यह लगता है कि चाहे व्यक्ति हो या देश, सिरफ़िरे युवाओं कि हरकतें एक जैसी होती हैं। आखिर अमेरिका भी तो एक युवा देश ही है। महज 500 सौ साल के करीब उम्र का।
लड़के शायद बदमाश नहीं थे। न सिगरेट के लती। लती होते तो इतनी देर तक सबर नहीं कर पाते कि रात 9 बजे की मना की गयी उधारी का गुस्सा रात डेढ बजे उतारें ।
शायद यह जीवन मूल्यों की टकराहट है। दुकानदार के अनुसार, उधार प्रेम की कैंची होगा। जबकि लड़के लोग उधार को प्रेम का पुल और फ्लाई ओवर मानते होंगे। एक मरियल सा पुल बनने में जितना लोहा लगता है उतने में हजारों, लाखों कैंचियां बन सकती हैं। इसलिए पुल और कैंची की भिड़ंत में कैंची की ऐसी-तैसी तो होना पक्का है।
शायद युवक बाजार के हिसाब से चल रहे होंगे। आपके पास बनियाइन खरीदने के पैसे भले न हों लेकिन बाजार आपको बाइक और मोबाईल जबरियन थमा देगा। ले जाओ बेट्टा ऐश करो। पैसे तो हम वसूल ही लेंगे। उधार लेकर आओ। क़िस्त पर क़िस्त चुकाओ। स्मार्ट नागरिक बन जाओ।
आज का युग ही उधारी का युग है। आज हर बड़े आदमी के पास क्रेडिट कार्ड मतलब उधारी का लाइसेंस रहता है। जिसकी जितनी बड़ी उधारी वह उतना बडा आदमी। गणित की भाषा में कहें तो आज के समय में आदमी का बडप्पन उसके क्रेडिट कार्ड की उधारी लिमिट के समानुपाती होता है।
नौजवानों को शायद गुस्सा इस बात पर आया होगा कि जब पूरी दुनिया में उधारी का चलन है तो ये पनवाड़ी कैसे मना कर सकता है उधार देने को। जब दुनिया भर की सरकारें उधारी के रथ पर सवार होकर सरपट भाग रही हैं, विकसित देशों के नागरिक उधार पर जिन्दगी जी रहे हैं तो अगर कोई पानवाला उधार में सिगरेट देने से मना करता है इसका मतलब वह देश के विकास का दुश्मन है। देशप्रेमी नौजवानों ने देशी आदमी की दुकान सुलगा दी।
संभव यह भी हो सकता है कि युवक शब्दों, मुहावरों को उनके प्रचलित अर्थों से हटकर नये रूप में ग्रहण करना चाह रहे हों। आजकल किसी भी बात पर उत्तेजित होकर सरकारी संपत्ति फ़ूंक देने को लोग क्रांति की संज्ञा देने लगे हैं। उसी तर्ज पर शायद युवक लोग दुष्यन्त कुमार के शेर:
मेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये।
को नये संदर्भ में ग्रहण करने की कोशिश कर रहे हों। सिगरेट न सुलगा सके तो दुकान ही सुलगा दी।
आपका क्या कहना है?
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