आज सुबह पुलिया पर कमलेश मिले। धूप सेंकते हुए पास ही रखी पालीथीन से कुछ-कुछ निकाल-निकालकर खाते जा रहे थे। पास से देखा तो एक पालीथीन में गुड़ और दूसरी में लइया जैसी कुछ थी। गुड़ की भेली के टुकड़े करके मुंह में रखते जा रहे थे। बीच-बीच में लइया भी फांकते जा रहे थे।
पूछने पर बताया कि कांचघर में रहते हैं। सिलबट्टा पर दांत बनाने का काम करते हैं। वीएफजे क्वार्टर की तरफ जा रहे थे। वहां किसी ने बुलाया है अपनी सिल और सिलबट्टे पर दांत बनवाने के लिए।
आजकल रेडीमेड मसाले के जमाने में घरों से ...सिल और सिलबट्टे का चलन बहुत कम हो गया है। इस लिहाज से सिल पर दांत बनवाने का काम भी बहुत कम हो गया है। ऐसे में कमलेश जैसे लोगों की रोजी-रोटी कैसे चलती होगी यह सोचते हुए हमने जब पूछा उनसे तो बोले, कभी मिलता है काम, कभी नहीं मिलता।
कमलेश |
पूछने पर बताया कि कांचघर में रहते हैं। सिलबट्टा पर दांत बनाने का काम करते हैं। वीएफजे क्वार्टर की तरफ जा रहे थे। वहां किसी ने बुलाया है अपनी सिल और सिलबट्टे पर दांत बनवाने के लिए।
आजकल रेडीमेड मसाले के जमाने में घरों से ...सिल और सिलबट्टे का चलन बहुत कम हो गया है। इस लिहाज से सिल पर दांत बनवाने का काम भी बहुत कम हो गया है। ऐसे में कमलेश जैसे लोगों की रोजी-रोटी कैसे चलती होगी यह सोचते हुए हमने जब पूछा उनसे तो बोले, कभी मिलता है काम, कभी नहीं मिलता।
विकास और तकनीक के बदलाव के साथ परम्परागत पेशे वाले कई कामों से जुड़े लोगों के काम और रोजी-रोटी के साधन कम होते जाते हैं। हमको पता नहीं चलता लेकिन जो लोग उनसे प्रभावित होते होंगे उनको नए काम में लगने में समय लगता होता। कमलेश को देखकर और पूछने पर भी यही लगा कि वे सिलबट्टे पर दांत बनाने के ही धंधे में लगे हैं।
मूलत: इलाहाबाद के रहने वाले कमलेश के घर में पत्नी और दो बेटे हैं। दोनों बेटे 'इधर-उधर' प्राइवेट काम करते हैं।
कमलेश धीमे-धीमे बोल रहे थे। शायद कुछ तकलीफ रही हो शरीर में या बोलने में। ज्यादा पूछताछ पर चेहरे पर झुंझलाहट सी भी दिखी से। उनके पास दो ठो झोले में कुछ सामान गड्ड-मड्ड था। देखकर लगा शायद मंगलवार को हनुमान जी के मन्दिर में मांग कर आये हों। लेकिन जब पूछा तो बोले,'हम भीख नहीं मांगते।'
इसके बाद हम चलने लगे तो बोले कमलेश,' चाय-वाय कुछ पिला देव।' (मतलब शायद यह कि सुबह-सुबह दिमाग मत खराब करो। चाय के पैसे दे दो और आगे बढ़ो)। हमने पूछा, कित्ते पैसे चाहिए चाय के लिये। कमलेश बोले, 'दस रूपये दे दो।'
पूछने पर बताया कि गुड़ और लइया भी किसी ने दिया है।
हम चाय के पैसे देकर फैक्ट्री की तरफ चल दिए। कमलेश भी पुलिया से उठकर काम के लिए चल दिए।
रास्ते में और बाद में भी मैं सोच रहा था कि जबलपुर स्मार्ट शहर बनने वाला है। जब बन जाएगा जबलपुर स्मार्ट सिटी तब कमलेश जैसे लोग कहां रहेंगे? जबलपुर में या कहीं और। जिन सेवाओं की आवश्यकता स्मार्ट शहरों में नहीं रहेगी उनको प्रदान करके रोजी कमाने वाले लोग स्मार्ट शहर में ही रहेंगे या शहर बदर कर दिए जाएंगे।
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