जबलपुर स्टेशन के बाहर चाय की दुकान |
सामने सूरज भाई करीब 25 डिग्री ऊपर पहुँच गए हैं। चमक रहे हैं।
बगीचे की तमाम चिड़ियाँ चिंचियाते हुए कह रही हैं कि जब निकले थे सूरज भाई तो लाल थे। जैसे ही सब लोग जगे तो रंग बदल दिया। बहुत बड़े रंगबदलू हैं सूरज भाई।
सूरज भाई चिड़ियों की बात
सुनकर मुस्कराने लगे। उनके मुस्कराते ही अनगिनत किरणें उन चिड़ियों की चोंच
पर स्वयंसेवकों की तरह सवार हो गयीं। सब चिड़ियों की चोंच चमकने लगीं।
किसी एक चिड़िया ने पास की नाली में जमा पानी में अपनी सूरत देखी तो चहकते हुए कहने लगी -'देख तो यार ये सूरज भाई ने मेरी चोंच कैसी चमका थी।और कोई होता इतनी बुराई करने पर अपने आदमियों से मेरी चोंच नुचवा देता।उनके भक्त इतनी बुराई करने पर हमारे खानदान को गरियाने लगते अब तक।'
इस पर उसकी सहेली ने कहा बड़े लोग ऐसे ही बड़े मन के होते हैं। छुद्र लोग छुद्र हरकते करते हैं।
खुश होकर उसने सूरज भाई को खूब सारा धन्यवाद बोला। इतनी जोर से सूरज भाई की तरफ देखकर चिंचियायी मानो उनको 'चोंच सलामी' दे रही हो। क्या पता 'लव यू सूरज भाई' भी बोला हो। हमको तो उनकी भाषा आती नहीं। आपको जैसा लगे वैसे समझ लीजिये रमानाथ अवस्थी जी की कविता के हिसाब से:
चाय की बात से याद आया। कल स्टेशन के बाहर चाय की दुकान पर चाय पी। दो लोग
थे हम। 7 रूपये की एक चाय। 15 रूपये दिए हमने। एक रुपया फुटकर था नहीं चाय
वाले के पास। उसने हमको इलायची का छोटा पैकेट थमाने की कोशिश की। हमें लगा
कि एक रूपये के बदले 'मसाला पुड़िया' दे रहा है। हम नहीं लिए। बाद में पता
लगा कि वह इलायची थी। जब पता लगा तब भी लेने का मन नहीं किया। छोड़ दिया तो
छोड़ दिया। इलायची ही तो थी कोई आरक्षण थोड़ी था जिसके लिए पहले मना किया हो
और बाद में कहें हमें भी चईये।
वहीं चाय पीते हुए देखा कि एक ऑटो वाला अपना ऑटो लेकर आया। पार्किंग पर कुछ विवाद हुआ वहीं खड़े एक आदमी से। दोनों एक दूसरे को देख लेने की धमकी दे रहे थे। हमें समझ ही नहीं आया कि ये आमने-सामने बहस करते लोग क्या अभी एक दूसरे को देख नहीं पा रहे जो बाद में देख लेने का साझा प्लान बना रहे हैं। फिर लगा कि शायद एक समय में एक ही काम करने के हिमायती हों ये भाई लोग। जब बहस करना है तब देखना नहीँ एक दूसरे को।
लगा तो यह भी कि शायद लड़ने के चलते गुस्सा इतना बढ़ गया हो दोनों का कि 'नेत्र दिव्यांग' हो गए हों दोनों।
आखिर बड़े-बुजुर्ग जो कह गए हैं कि क्रोध में इंसान अँधा हो जाता है तो गलत थोड़ी ही न कहें होंगें।
है कि नहीं ?
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207387719304659
किसी एक चिड़िया ने पास की नाली में जमा पानी में अपनी सूरत देखी तो चहकते हुए कहने लगी -'देख तो यार ये सूरज भाई ने मेरी चोंच कैसी चमका थी।और कोई होता इतनी बुराई करने पर अपने आदमियों से मेरी चोंच नुचवा देता।उनके भक्त इतनी बुराई करने पर हमारे खानदान को गरियाने लगते अब तक।'
इस पर उसकी सहेली ने कहा बड़े लोग ऐसे ही बड़े मन के होते हैं। छुद्र लोग छुद्र हरकते करते हैं।
खुश होकर उसने सूरज भाई को खूब सारा धन्यवाद बोला। इतनी जोर से सूरज भाई की तरफ देखकर चिंचियायी मानो उनको 'चोंच सलामी' दे रही हो। क्या पता 'लव यू सूरज भाई' भी बोला हो। हमको तो उनकी भाषा आती नहीं। आपको जैसा लगे वैसे समझ लीजिये रमानाथ अवस्थी जी की कविता के हिसाब से:
'आँखों की भाषाएँ तो अनगिन हैंसूरज भाई हमको बाहर खड़ा देखे तो वो भी साथ आ गए और हमारे ही कप से चाय पीने लगे। हम आपस में बतियाने लगे।
जो भी सुंदर हो समझा देना ।'
जरा सुबह की मार्निंग बहस है और कुछ नहीं |
वहीं चाय पीते हुए देखा कि एक ऑटो वाला अपना ऑटो लेकर आया। पार्किंग पर कुछ विवाद हुआ वहीं खड़े एक आदमी से। दोनों एक दूसरे को देख लेने की धमकी दे रहे थे। हमें समझ ही नहीं आया कि ये आमने-सामने बहस करते लोग क्या अभी एक दूसरे को देख नहीं पा रहे जो बाद में देख लेने का साझा प्लान बना रहे हैं। फिर लगा कि शायद एक समय में एक ही काम करने के हिमायती हों ये भाई लोग। जब बहस करना है तब देखना नहीँ एक दूसरे को।
लगा तो यह भी कि शायद लड़ने के चलते गुस्सा इतना बढ़ गया हो दोनों का कि 'नेत्र दिव्यांग' हो गए हों दोनों।
आखिर बड़े-बुजुर्ग जो कह गए हैं कि क्रोध में इंसान अँधा हो जाता है तो गलत थोड़ी ही न कहें होंगें।
है कि नहीं ?
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207387719304659
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