Tuesday, February 23, 2016

हमको मिटा सके, ये जमाने में दम में नहीं


सूरज की अगवानी में क्षितिज पर बिछी लाल कालीन
सबेरे नींद खुली। खिड़की से देखा कि क्षितिज ने सूरज की अगवानी के लिए लाल कालीन सी बिछा रखी है। लाल और उसके ऊपर सफ़ेद रंग की पट्टी। नीचे धरती पर पेड़ पौधे पत्तियां सब हरे रंग में।

हमने सोचा यार ये तो बड़ा जलवा है सूरज भाई का। सुबह छह बजे रोज रेड कार्पेट वेलकम होता है भाई जी का।
सफेद, लाल और हरे रंग की पट्टियां देखकर हमने बोला -'ये क्या झंडा फहराते हो सुबह-सुबह। इतना दूर तक करोड़ों मील का झंडा। लेकिन रंगों का क्रम गलत है भाई जी। सफेद ऊपर रखते हो। किसी ने शिकायत कर दी या किसी अदालत ने खुद संज्ञान में लेकर नोटिस थमा दिया तो घर न जा पाओगे शाम को।'

सूरज भाई बड़ी जोर से हंसे। पास होते तो पक्का वो ये वाले शेर का कोई संस्करण सुनाते:
"हमको मिटा सके, ये जमाने में दम में नहीं
हमसे जमाना खुद है, जमाने से हम नहीं।"
सूरज भाई के हँसते ही उजाला और बढ़ गया। एक जगह आसमान से सूरज भाई इतना पास से दिखे कि लगा मानों क्षितिज की दीवार फोड़कर उजाला धरती पर उड़ेल दिया हो।

कुछ किरणें मेरे डिब्बे की खिड़की के पास आकर गर्मी सप्लाई करने लगीं। शायद उनको पता चल गया था कि कुछ सर्दी बढ़ गयी है।

कटनी स्टेशन पर गाडी 35 मिनट लेट पहुंची। चाय की दुकान से काफी आगे रुकी। हमें लगा कि कोई चाय वाला 'चाय गरम, चाय गरम' करते हुए गुजरेगा तो चाय पिएंगे। लेकिन गरम क्या कोई ठण्डी चाय वाला भी न निकला। हम थोड़ा पीछे बढ़कर चाय की खोज में बढे कि सिग्नल पीला हो गया। हम दौड़ के डब्बे में वापस आ गए। चयासे ही बने रहे।


सूरज भाई ने अपनी किरणों को मेरे पास भेज दिया
गाड़ी कुछ देर नहीं चली तो इस बार चश्मा धारण करके चाय की खोज में मुंडी बाहर किये चाय वाले को खोजते रहे। ट्रेन चल दी। आगे एक चाय वाला खड़ा था। उसको इशारे से बताया तो उसने चलती ट्रेन में चाय और हमने दस का नोट थमा दिया। 7 की चाय दस में। पर कोई खलने का भाव नहीं आया। जब उड़न कंपनियां 2 हजार का टिकट 50 हजार में बेंच रहीं हैं तब चाय वाला 7 की चाय 10 में दे रहा है तो क्या बुरा। चिल्लर वापस करने का समय भी नहीं था उसके पास।

चाय बढ़िया थी। डिप डिप वाली चाय। शायद 10 की हो। हम बिना जाने उस पर 3 रूपये मंहगी बेंचने की तोहमत लगा दिए। पक्के भारतीय होते जा रहे हैं हम भी। एकदम टीवी चैनलों की तरह। मिडिया ट्रायल पहले कर दिया फिर बोल दिया -'जो वीडियो हमने दिखाया वह फर्जी था।'

चाय पीते हुए ऊपर की बर्थ वाले की बातचीत सुनी। कह रहा था -'टीटी ने सौ रूपये लेकर बर्थ दे दी । आराम से चले आये।'

यह नहीं पता चला कि टीटी ने सौ रूपये टिकट के किराये के अलावा अलग से लिए या कुल सौ में दे दी बर्थ। लेकिन यह ख्याल जरुर आया कि अगर एयरलाइंस वाले भी अपने यहां टीटी रखने लगें तो कितना अच्छा हो। दिल्ली से कोलकता जाते हुए अगर कुछ सीट खाली दिखें तो लखनऊ, पटना में रोककर प्लेन सवारी बैठा लेंगे।विमान कम्पनियां इत्ते घाटे में थोड़ी रहेंगी। सीटें खाली ले जाना आर्थिक गुनाह है भाई। सौ दो सौ में सौदा बुरा नहीं लगेगा। विजय माल्या सोंचे अगर पोस्ट पढ़ रहे हों।

सूरज भाई ने आते ही पेड़, पौधों, कोने, अतरे में छिपे बैठे, धरना दे रहे सारे अन्धकार तत्वों की तुड़ईया करके सबको तितर-बितर कर दिया। सब जगह सूरज की किरणें खिलखिलाते हुए अठखेलियां करने लगीं। धरती की हरियाली और हरी-भरी और खुशनुमा हो गयी। सूरज भाई ऊपर आसमान की अटारी पर चढ़कर सब जगह मुआयना करते हुए देखते हुए लग रहे हैं कि कहीं रोशनी की सप्लाई रह तो नहीं गयी।

सुबह हो गयी। ट्रेन संस्कार धानी पहुंच गयी।

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