कल लंच के समय हम फैक्ट्री के सामने की सड़क पर दो साईकिल सवार अगल-बगल
खड़े होकर बतियाते दिखे। एक दूसरे की विपरीत दिशा में साइकिलें समानांतर
पटरियों पर खड़ी अप-डाउन रेलगाड़ियों सरीखी लग रही थी। साइकिल सवार कुछ देर
बात करने के बाद बीड़ी सुलगाते हुए चलने को हुए।
बीड़ी सुलगाकर साथ में पीते हुए साइकिल सवारों को देखकर केदारनाथ अग्रवाल की कविता पंक्ति याद आ गई:
"बीड़ी से बीड़ी जलती है।"
हमारे साइकिल के पास पहुंचने तक एक साइकिल सवार जा चूका था। दूसरे भी पैडल मारने की तैयारी में थे कि हम उनके पास पहुंचकर बतियाने लगे।
साइकिल पर पानी के प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरकर ले जा रहे थे। यही बातचीत शुरू करने का माध्यम बना। हमने पूछा-'कहाँ से पानी भर के ला रहे?' बोले-'मेस से। कंचनपुर में रहते हैं। वहां पीने का पानी ठीक नहीं आता।'
बात शुरू हुई तो फिर काफी हुई। अपने बारे में बताया साइकिल सवार ने। 2008 में वी ऍफ़ जे से रिटायर हुए। टेलीफोन एक्सचेंज से। छपरा के रहने वाले हैं। अब यहीं बस गए। कंचनपुर में रहते हैं। मकान खरीदा था। फिर बेंचकर नातियों की शादी की। अब किराये के मकान में रहते हैं।
एक लड़का था। 40 साल की उम्र में गुजर गया। मोटर साइकल से जा रहा था। एक सांड ने टक्कर हो गई। खम्भे से टकरा गया सर। नहीं रहा।
हेलमेट नहीं पहने था? पूछने पर बोले-'नहीं। यहाँ कोई हेलमेट नहीं पहनता हैं। देखते हैं कितने लोग जा रहे हैं दुपहिया पर। पहने हैं कोई हेलमेट?'
हमारे देखते-देखते कई मोटरसाईकल/स्कूटर वाले गुजरे वहां से। बहुत कम हेलमेट पहने थे। पेट्रोल पम्प पर बिना हेलमेट पेट्रोल देना मना है। वहां भी लोग एक दूसरे का हेलमेट पहनकर पेट्रोल भराते हैं।
अपने बारे में बताते हुए बोले प्रभु- 'बाईपास कराये थे।' सीना खोल के अपने कृत्तिम दिल (पेसमेकर) दिखाए। बोले- 'ये डाक्टर गड़बड़ लगाया। काम नहीं करता। कन्ज्यूमर फोरम में जायेंगे। पैसा वापस लेंगे। दूसरा ये वाला दिल्ली से लगवाये हैं। अच्छा काम करता है।'
सीजीएचएस की दवाओं के बारे में बताया-'सुबह से दोपहर तक लाइन लगाओ तो झोला भर दवा दे देते हैं। बहुत भीड़ होती है।'
बातों के दौरान पता चला कि उनका नाती भी कुछ दिन पहले नहीं रहा। पेट में दर्द हुआ। नहीं रहा। दुःख पर दुःख। बस हौसला बना है। जब खुद की देखभाल के लिए बच्चे होने चाहिए तब वो बच्चों और उनके बच्चों की देखभाल कर रहे हैं।
हमारे बारे में पूछा। बोले-'ट्रांसफर करा के जल्दी से कानपुर जाइये। नियम है जब कि पति-पत्नी सरकारी नौकरी में हो तो एक जगह रहना चाहिए तो होगा कैसे नहीं। कराइये ट्रांसफर। जाइए।'
हम बोले-'हाँ लगे हुए हैं कोशिश में।'
एक आदमी जो कि अनजान होता है पांच मिनट पहले उससे दुःख/सुख बतिया लीजिये तो आपका कितना हितचिंतक हो जाता है। है न ?
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10207272768270955&set=a.3154374571759.141820.1037033614&type=3&theater
बीड़ी सुलगाकर साथ में पीते हुए साइकिल सवारों को देखकर केदारनाथ अग्रवाल की कविता पंक्ति याद आ गई:
"बीड़ी से बीड़ी जलती है।"
हमारे साइकिल के पास पहुंचने तक एक साइकिल सवार जा चूका था। दूसरे भी पैडल मारने की तैयारी में थे कि हम उनके पास पहुंचकर बतियाने लगे।
साइकिल पर पानी के प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरकर ले जा रहे थे। यही बातचीत शुरू करने का माध्यम बना। हमने पूछा-'कहाँ से पानी भर के ला रहे?' बोले-'मेस से। कंचनपुर में रहते हैं। वहां पीने का पानी ठीक नहीं आता।'
बात शुरू हुई तो फिर काफी हुई। अपने बारे में बताया साइकिल सवार ने। 2008 में वी ऍफ़ जे से रिटायर हुए। टेलीफोन एक्सचेंज से। छपरा के रहने वाले हैं। अब यहीं बस गए। कंचनपुर में रहते हैं। मकान खरीदा था। फिर बेंचकर नातियों की शादी की। अब किराये के मकान में रहते हैं।
एक लड़का था। 40 साल की उम्र में गुजर गया। मोटर साइकल से जा रहा था। एक सांड ने टक्कर हो गई। खम्भे से टकरा गया सर। नहीं रहा।
हेलमेट नहीं पहने था? पूछने पर बोले-'नहीं। यहाँ कोई हेलमेट नहीं पहनता हैं। देखते हैं कितने लोग जा रहे हैं दुपहिया पर। पहने हैं कोई हेलमेट?'
हमारे देखते-देखते कई मोटरसाईकल/स्कूटर वाले गुजरे वहां से। बहुत कम हेलमेट पहने थे। पेट्रोल पम्प पर बिना हेलमेट पेट्रोल देना मना है। वहां भी लोग एक दूसरे का हेलमेट पहनकर पेट्रोल भराते हैं।
अपने बारे में बताते हुए बोले प्रभु- 'बाईपास कराये थे।' सीना खोल के अपने कृत्तिम दिल (पेसमेकर) दिखाए। बोले- 'ये डाक्टर गड़बड़ लगाया। काम नहीं करता। कन्ज्यूमर फोरम में जायेंगे। पैसा वापस लेंगे। दूसरा ये वाला दिल्ली से लगवाये हैं। अच्छा काम करता है।'
सीजीएचएस की दवाओं के बारे में बताया-'सुबह से दोपहर तक लाइन लगाओ तो झोला भर दवा दे देते हैं। बहुत भीड़ होती है।'
बातों के दौरान पता चला कि उनका नाती भी कुछ दिन पहले नहीं रहा। पेट में दर्द हुआ। नहीं रहा। दुःख पर दुःख। बस हौसला बना है। जब खुद की देखभाल के लिए बच्चे होने चाहिए तब वो बच्चों और उनके बच्चों की देखभाल कर रहे हैं।
हमारे बारे में पूछा। बोले-'ट्रांसफर करा के जल्दी से कानपुर जाइये। नियम है जब कि पति-पत्नी सरकारी नौकरी में हो तो एक जगह रहना चाहिए तो होगा कैसे नहीं। कराइये ट्रांसफर। जाइए।'
हम बोले-'हाँ लगे हुए हैं कोशिश में।'
एक आदमी जो कि अनजान होता है पांच मिनट पहले उससे दुःख/सुख बतिया लीजिये तो आपका कितना हितचिंतक हो जाता है। है न ?
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