पिछले महीने की बात है। मैं कानपुर में था। गुमटी में अपने परिवार के साथ जा रहा था। गाड़ी मैं ही चला रहा था। चला तो धीमे ही रहा था पर सड़क पर दायें-बायें शायद कुछ ज्यादा हो गया रहा होगा तो पीछे वाला मोटर साइकिल सवार मेरी कार को ओवर टेक नहीं कर पा रहा था।
एक जगह सड़क थोड़ा चौड़ी हुयी तो वह झटके से आगे आया और मेरी कार के आगे निकल गया। लेकिन उसको याद आया होगा कि मेरी ड्राइविंग के चलते उसको कुछ देर रुकना पड़ा। उसका गुस्सा भरा था उसके मन में। उसने अपनी मोटरसाइकिल धीमी की और मेरी कार के ...साथ चलते हुये मुझे हड़काया-" गाड़ी चलाने की तमीज नहीं है?"
एक जगह सड़क थोड़ा चौड़ी हुयी तो वह झटके से आगे आया और मेरी कार के आगे निकल गया। लेकिन उसको याद आया होगा कि मेरी ड्राइविंग के चलते उसको कुछ देर रुकना पड़ा। उसका गुस्सा भरा था उसके मन में। उसने अपनी मोटरसाइकिल धीमी की और मेरी कार के ...साथ चलते हुये मुझे हड़काया-" गाड़ी चलाने की तमीज नहीं है?"
उसके अंदाज से लगा कि वह पूछ नहीं रहा है बल्कि मुझे बता रहा है कि मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता। उसके गुस्से को देखकर लगा कि अगर वह आर.टी.ओ. होता तो वहीं मेरा ड्राइविंग लाइसेन्स मुझसे लेकर निरस्त कर देता और क्या पता उसके पहले कुछ जुर्माना भी ठोंक देता।
मेरे घर वाले भी मेरी आराम-आराम की ड्राइविंग से खुश नहीं रहते। कहते भी रहते हैं-’तुमको गाड़ी चलाना नहीं आता। पता नहीं चलता कि गाड़ी चला रहे हो या बैलगाड़ी।’ एक अनजान आदमी जब उनकी ही तरह कहता मिला कि मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता तो वे बोले भले कुछ नहीं लेकिन मन ही मन सोच जरूर रहे होंगे कि उनकी ही तरह और लोग भी सोचते हैं मेरी ड्राइविंग के बारे में।
बाहर साथ में चलता मोटर साइकिल सवार बहुत गुस्से में दिख रहा था। उसके तेवर से लग रहा था कि उससे कुछ तर्क करेंगे या सफ़ाई देंगे तो वो और भन्नायेगा और अपना सारा ’दुर्वासा विकार’ हमारे ऊपर निकालेगा। घर वाले तटस्थ थे ( लेकिन उसको हम अपराध नहीं कह सकते न भाई ) लेकिन सोच रहे थे कि कहां से फ़ंस गये इस बवालिया बहस में।
ऐसे समय में जब सबने साथ छोड़ दिया तब ’मेरी बेवकूफ़ी’ मेरे साथ खड़ी हुई। मैंने अपनी बेवकूफ़ी का सहारा लेकर उस गुस्साते हुये नौजवान से मुस्कराते होेते हुये कहा- "हैप्पी न्यू ईयर।"
मेरी मुस्कान, बेवकूफ़ी और नये साल की शुभकामना के संयुक्त आक्रमण के सामने नौजवान का गुस्सा वहीं ढेर हो गया। वह बेचारा भी आगे कुछ बोल नहीं पाया सिर्फ़- ’सेम टु यू।’ बोलकर रह गया। मोटरसाइकिल पर एक्सेलेटर मारकर आगे बढ गया।
यह सिर्फ़ यह बताने के लिये कि गुस्सा जो भयंकर और माफ़िया टाइप विकार माना जाता है उसका मुकाबला भी मुस्कान, बेवकूफ़ी और शुभकामनाओं जैसे शरीफ़ और कमजोर माने जाने गुणों के साथ बखूबी किया जा सकता है और सिद्ध किया जा सकता है कि संगठन में शक्ति होती है। smile इमोटिकॉन
मेरे घर वाले भी मेरी आराम-आराम की ड्राइविंग से खुश नहीं रहते। कहते भी रहते हैं-’तुमको गाड़ी चलाना नहीं आता। पता नहीं चलता कि गाड़ी चला रहे हो या बैलगाड़ी।’ एक अनजान आदमी जब उनकी ही तरह कहता मिला कि मुझे गाड़ी चलाना नहीं आता तो वे बोले भले कुछ नहीं लेकिन मन ही मन सोच जरूर रहे होंगे कि उनकी ही तरह और लोग भी सोचते हैं मेरी ड्राइविंग के बारे में।
बाहर साथ में चलता मोटर साइकिल सवार बहुत गुस्से में दिख रहा था। उसके तेवर से लग रहा था कि उससे कुछ तर्क करेंगे या सफ़ाई देंगे तो वो और भन्नायेगा और अपना सारा ’दुर्वासा विकार’ हमारे ऊपर निकालेगा। घर वाले तटस्थ थे ( लेकिन उसको हम अपराध नहीं कह सकते न भाई ) लेकिन सोच रहे थे कि कहां से फ़ंस गये इस बवालिया बहस में।
ऐसे समय में जब सबने साथ छोड़ दिया तब ’मेरी बेवकूफ़ी’ मेरे साथ खड़ी हुई। मैंने अपनी बेवकूफ़ी का सहारा लेकर उस गुस्साते हुये नौजवान से मुस्कराते होेते हुये कहा- "हैप्पी न्यू ईयर।"
मेरी मुस्कान, बेवकूफ़ी और नये साल की शुभकामना के संयुक्त आक्रमण के सामने नौजवान का गुस्सा वहीं ढेर हो गया। वह बेचारा भी आगे कुछ बोल नहीं पाया सिर्फ़- ’सेम टु यू।’ बोलकर रह गया। मोटरसाइकिल पर एक्सेलेटर मारकर आगे बढ गया।
यह सिर्फ़ यह बताने के लिये कि गुस्सा जो भयंकर और माफ़िया टाइप विकार माना जाता है उसका मुकाबला भी मुस्कान, बेवकूफ़ी और शुभकामनाओं जैसे शरीफ़ और कमजोर माने जाने गुणों के साथ बखूबी किया जा सकता है और सिद्ध किया जा सकता है कि संगठन में शक्ति होती है। smile इमोटिकॉन
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