रामफल की पत्नी |
स्टेडियम के पास सड़क पर तीन लोग पूरी सड़क घेरे चले जा रहे थे। खरामा-खरामा। हम बगल से बचाकर निकल गये आगे। हनुमान मन्दिर के पास नाले में सिल्ट जमा थी। पानी बेचारा सिल्ट के बीच से रास्ता निकालकर किसी तरह आगे निकल रहा था। पानी सिल्ट के बीच से ऐसे सहमा हुआ सा निकल रहा था जैसे चौराहे पर खड़े शोहदों से बचकर मोहल्ले की लड़कियां निकलती हों। जरा सा जगह मिलते ही दौड़ता पानी।
रामफ़ल की पत्नी घर के बाहर कुर्सी डाले बैठे थीं। सबके हाल बताये। बड़ा लड़का गुड्डू लेबरी का काम करता है। फ़ल का काम उससे हुआ नहीं। बन्द कर दिया। छोटा लड़का भी फ़ैक्ट्री में ठेके पर लेबर का काम करता है। लड़की जो कि विधवा हो चुकी है एक जगह किसी की बच्ची की देखभाल करने जाती है। 3000/- मिलते हैं उसको। उसमें 50/- रोज आने-जाने के खर्च हो जाते हैं। उसका बच्चा हाईस्कूल करने के बाद रोहाणी जी के यहां काम पर जाता है। 100/- रोज मिलते हैं। बिटिया आईटीआई कर रही है। बच्चे के लिये बोली - ’बाबू जी (रामफ़ल) होते तो आगे पढाते उसको।’
वैसे तो गाय हमारी माता है , उसको खाने को ऐसे ही मिल पाता है। |
रामफ़ल के स्वभाव की याद करते हुये कहने लगीं-’नौ साल की थी जब हमारी शादी हुई। जिन्दगी भर कभी एक चांटा नहीं मारा। कभी डांटा नहीं। कभी पैसे का हिसाब नहीं मांगा। बहुत ’गरू’ (अच्छे) आदमी थे।’
यह बताते हुये अपनी आंख पल्लू से पोछनें लगीं वे।
दवाई ब्लड प्रेसर आदि की लेती हैं। पांव में सूजन रहती है। 300/- रुपये महीने विधवा पेंशन बंध गयी है। इस महीने से मिलेगी।
सड़क से गुजरते ,आते-जाते लोग उनको नमस्ते करते जाते थे। एक ने तम्बाकू भी मांगी लेकिन -’है नहीं भईया ’ कहकर मना कर दिया उनको।
दिल्ली में होगा पानी का अकाल। जबलपुर में तो ऐसे बहता है |
बिरसा मुंडा त्तिराहे पर आज चाय की वह दुकान खुली नहीं थी जिससे हम चाय पीते हैं। दूसरी दुकान वाले से चाय ली। पता चला आज उस चाय वाले ने ठिलिया नहीं लगाई है।
तीन लड़कियां चाय पीने आईं वहां। एक की टी शर्ट के पीछे कृषि विश्वविद्यालय छपा था। पूछा तो बताया कि एग्रीकल्चरल युनिवर्सिटी में पढती हैं। छात्रावास में पढती हैं। सुबह की चाय वहां नहीं मिलती सो चौराहे पर आयी हैं।
हमने पूछा -’अब तक तो तीसरे साल में हो तो खेती करना सीख गई होगी। हल चला लेती हो कि नहीं?’
इस पर तीनों हंसने लगीं। एक ने बताया ट्रैक्टर चलाना सीखा है। आगे क्या स्कोप है पूछने पर बताया कि एम टेक, पीएचडी वगैरह करते हैं लोग। पूछने का मन हुआ कि जिस तरह इंजीनियरिंग कालेज में कैम्पस इंटरव्यू होते हैं क्या वैसे इंटरव्यू यहां नहीं होते? केवल अध्यापन ही रोजगार है क्या? लेकिन फ़िर पूछ नहीं पाये।
बताया बच्चियों ने कि क्लास में 25 के करीब लड़कियां और 75 के करीब लड़के होते हैं। लड़कियों और लड़कों का अनुपात 1:3 का हुआ। हमारे समय में तो यह अनुपात 1:60 करीब होता था। मतलब अनुपात में गुणात्मक सुधार हुआ है।
रॉबर्टसन झील पर सूरज भाई का जलवा पसरा है |
तीन में से एक बच्ची चाय नहीं पी रही थी। हमने कहा - ’तुम अच्छी बच्ची हो।’ एक ने कहा - ’गुड ब्वाय है यह।’ हमने कहा - ’गुड ब्वाय क्यों गुड गर्ल क्यों नहीं? क्या यह बच्ची लड़का बनना चाहती है?’ इस पर तीनों हंसती हुई चली गयीं।
लौटते में देखा एक जगह पानी लगातार बह रहा था। हमेशा यह बहता दिखता है। एक बच्ची एक गगरिया में पानी भरे चली जा रही थी। हाथ और कमर के सहारे गगरी को लादे चलती जा रही थी। हर कदम पर गगरी उसकी कमर से टिक जाती वह फ़िर गगरी को कमर से धकियाकर दूर करते हुये कदम आगे बढाती। जब एक हाथ थक जाता तो गगरी दूसरे हाथ में ले लेती।
एक लड़का एक नाली के किनारे खड़ा मोबाइल पर बात कर रहा था। फ़ोन लगते ही उचककर उसने ’नमस्ते मामा’ कहा । ऐसा लगा कि नमस्ते उछालकर फ़ेंका हो उसने मामा को। इसके बाद इत्मिनान से बतियाने लगा वह।
एक आदमी घर से निकलकर बाहर सड़क पर आया। बनियाइन के नीचे पीठ खुजलाने के बाद उसने पूरा मुंह खोलकर जम्हुआई ली। आंखें पूरी बन्द हो गयीं और मुंह पूरा खुल गया - ’पान की दुकान की गुमटी की तरह।’ थोड़ी देर में उसने मुंह बंद कर लिया । आंखे अपने आप खुल गयीं। इसके बाद वह गरदन इधर-उधर घुमाकर सड़क निहारने में जुट गया।
सुबह की सड़क खुशनुमा तो दिखती है |
दीपा के घर गये। वह पढ़ रही थी। उसके पापा खाना बना रहे थे। बताया उसने कि वह कल स्कूल गयी थी। आज तमाम काम करेगी। कपड़े धोना है, स्कूल ड्रेस साफ़ करना है, फ़िर नहाना है। खांसी अभी एकदम ठीक नहीं हुई है।
लौटते में राबर्टसन लेक होते हुये आये। सूरज भाई का जलवा पूरी झील पर पसरा हुआ था। पूरा तालाब सुनहरा हो रखा था। आज झील में मछुआरे ’तालाब खेलने’ आये थे। उनकी नावें झील में दिख रहीं थीं। सूरज भाई पूरी मुस्तैदी से देख रहे थे कि कहीं कोईअंधकार का टुकड़ा धरती पर बचा न रह जाये।
सड़क पर लोग आते-जाते दिख रहे थे। पेड़ों की छाया और धूप दोनों मिलकर सड़क को सुन्दर बना रहे थे। पेड़ों की पत्तियां हवा के सहयोग से हिलडुल कर हर आते-जाते का स्वागत कर रही थीं। इतवार की सुबह को खुशनुमा बना रहीं थीं।
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