Friday, May 20, 2016

किताब छपने की सूचना

कितनी खूबसूरत होती है बेवकूफी -है न।
किताब छपने की सूचना देने पर तमाम मित्रों ने बधाई दीं। कुछ ने खरीद भुगतान की रसीद भी दिखा दी। कुछ मित्रों ने किताब से सम्बंधित सुझाव भी दिए। वो सब कुश देख रहे होंगे। करेंगे भी जो ठीक लगेगा और कर सकेंगे।

सब मित्रों की टिप्पणियों का अलग से जबाब दिया जाएगा। सच तो यह है कि मुझे लिखने से भी ज्यादा मजा मित्र पाठकों की प्रतिक्रियाओं का जबाब देने में आता है। लेकिन अक्सर हो नहीं पाता। टिप्पणी पढ़ते ही कोई फड़कता सा जबाब सूझता है। मन करता सब काम छोड़कर सबसे पहले प्रतिक्रिया लिखें।पर तमाम कारणों से ऐसा हो नहीं पाता। 

कानपुर आकर तो हाल और भी बेहाल हो गए हैं। कहते हैं :

आवत जात पनिहियां घिस गयीं बिसरि गयो हरिनाम। :)

कानपुर में दफ्तर से घर आते- जाते समय गुजर जाता है। बाकी रही बची कसर दफ्तर में मोबाईल पर नेट की कौन कहे फोन तक नहीँ मिलता। 'नेट दिव्यांग' और 'मोबाईल दिव्यांग' एक साथ हो गए हैं। नेट सक्रियता का हाल यह हो गया जैसे गर्मी में बिजली। वो शेर याद आता है:

आज इतनी भी मयस्सर नहीं मैखाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।


पल्लवी ही बता सकती हैं यह
किताब के लिए कुश ने दो साल पहले शायद कहा था कि वो छापेंगे। इसके बाद हमेशा की तरह वो गोल हो गए। कुश में अच्छाई और खराबी यह है कि वो काम कायदे से करते हैं । कायदे से करने के चक्कर में अक्सर नहीं भी करते हैं। करें भले न लेकिन जब करते हैं तो अपनी समझ में सबसे अच्छी तरह ही करते हैं। अब जिस तेजी से वो इसकी छपाई में लगे हैं उससे लगता है कि अगले महीने हम भी एक अदद व्यंग्य लेखक हो जाएंगे जिसकी किताब भी छप चुकी है।

किताब छपने के बाद इनाम के लिए मारामारी करेंगे। जो नहीं देगा उस संस्था की बुराई करेंगे। जिस समारोह में सम्मानित नहीं किये जाएंगे उसका बहिष्कार भले न करें पर वहां ऐंठे-ऐंठे रहेंगे। जिसने किताब नहीं खरीदी होगी उसको अच्छा आदमी मानने से हिचकेंगे। (15 रूपये की रॉयल्टी का चूना लगाने वाला व्यक्ति भला आदमी कैसे हो सकता है) जिसने तारीफ़ की उसके आगे फल से लदे हुए पेड़ की तरह विनम्रता से झुक जायेंगे।

मल्लब वह सब करेंगे जो एक आम मध्यमवर्गीय लेखक करता है।

खैर वह सब तो अगले महीने होगा। अभी तो आप किताब बुक करा लीजिए। हम किताब पर आटोग्राफ देने का रियाज कर रहे हैं आजकल। तय कर रहें हैं कि 'शुभकामनाओं सहित' लिखें कि 'प्यार सहित' या सीधे सीधे 'with love' लिखें। 'आदर सहित' भी लिखना होगा कुछ लोगों को भाई। 'ससम्मान' भी। 'ससम्मान' से कभी कभी यह भी लगता है -'सामान सहित' लिखा है। किताब भी सामान ही तो है न।

किताब का कवर पेज फिर से देखिये। यह कवर कुश ने खुद बनाया है। हमने उसको 15 रूपये इनाम की घोषणा की है। मतलब एक किताब की रायल्टी। बड़ा दिल है भाई।

किताब की भूमिका लिखी है आलोक पुराणिक ने जिनको हम व्यंग्य के अखाड़े का सबसे तगड़ा पहलवान मानते हैं। भूमिका के बहाने आज के व्यंग्य पर अपनी बात भी कहेंगे आलोक पुराणिक।

खैर अब आइये किताब बुक करने का मन बन गया होगा अब तक आपका। तो आप नीचे दिए लिंक पर पहुंचकर किताब बुक कर सकते हैं। जब तक किताब बुक करिये आप तब तक आटोग्राफ का रियाज करते हैं। ठीक न।
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और हाँ सभी मित्रों को शुक्रिया। उसकी आफजाई के लिए जिसे लेखक लोग हिन्दी में 'हौसला' कहते हैं।
Kush Vaishnav, Pallavi Trivedi Alok Puranik


https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10208110394651091

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