गाँव में हैं मेरे खेत, खेत में ऊगा है गन्ना,
गाड़ी मेरी हेमामालिनी, मैं इसका राजेश खन्ना।
कल शाम घर लौटते हुए एक छोटे ट्रक के पीछे यह लिखा दिखा। कालपी रोड पर लौटते समय भीड़ काफी हो जाती है। हरेक को दूसरे से आगे निकलने की जल्दी है। मोटरसाईकल और टेम्पो वाले सबसे हड़बड़ी में रहते हैं। जाम के जहां जरा जगह वहां अपनी गाड़ी अड़ा देते हैं। दो गाड़ियों के बीच की जगह बाइक सवार अपनी गाड़ी घुसा देते हैं। उसके पीछे दूसरे बाइक वाले भी 'महाजनो एन गत: स: पन्था' का सहारा लेकर घुस जाते हैं। दो सीधी रेखाओं को तिर्यक रेखा सरीखा काटते हुए बाइक सवार सड़क की लंबाई में लगे जाम को चौड़ाई में फैलाने का काम करने में यथासम्भव योगदान करते हैं।
खैर यह तो लौटने की बात। शुरुआत सुबह से की जाए। कल जब हम घर से निकलते ही हमारे एस. ए. एफ. के एक साथी पैदल जाते दिखे। हमने गाड़ी रोक कर उनको बैठा लिया। जब हम एस ए एफ में काम करते थे तो उनकी ख्याति एक कर्मठ अधिकारी के रूप में थी। बाद में तबियत बिगड़ गयी और याददास्त गड़बड़ा गयी। अब कुछ सुधरे हैं हाल। लेकिन फिर भी तबियत वैसी नहीं हो पायी जैसी पहले थी।
हमने बैठाकर हाल पूछा। पहचान नहीं पाये मुझे।बताया तो कुछ-कुछ पहचाने। बताया- 'पत्नी रोज छोड़ देती हैं फैक्ट्री। आज उनकी तबियत खराब थी तो पैदल ही जा रहे थे।'
उनको फैक्ट्री गेट पर छोड़ने के बाद सोचते रहे कि आदमी के हाल में कैसे बदलाव आते हैं, कोई नहीं जानता। यह सरकारी सेवाओं का संरक्षण भाव ही है जो ऐसी सेहत के बावजूद ऐसे कामगारों को साथ रखता है। प्राइवेट संस्था होती तो अब तक अंतिम नमस्ते कर चूकी होती।
और कुछ ज्यादा सोचते तब तक दीपा का फोन आ गया जबलपुर से। उसके घर के बाहर लोग रुके हैं, मजदूर गुंडम के, उनके फोन से किया था। बैलेंस नहीं था उनके फोन में। हमने मिलाया। दीपा से बात की।
सुबह पढाई कर रही थी। जो किताबें हमने दी थीं उनको पढ़ रही है। नहाया नहीँ अभी। घड़ी ठीक चल रही है। पूछ रही थी -'कब आओगे हमसे मिलने, ग्वारी घाट कब घूमने चलेंगे।' फिर बोली- 'आंटी से बात कराइये।' बात कराई गयी।
फिर दीपा के पापा से भी बात हुई। दीपा ने कहा--'इसी नंबर पर बात करना। सुबह फोन किया करना।अब रखते हैं।'
दीपा और उसके पापा अभाव में जीते हैं। पर उनके व्यवहार में दैन्य भाव नहीं है। बातचीत में बराबरी का भाव है। अच्छा लगता है यह भाव।
अब चलें दफ्तर की तैयारी करें। आज सुबह हलकी बारिश होने के चलते टहलने नहीँ गए। फेसबुक पर ही टहलते रहे।
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10208013356025186&set=a.3154374571759.141820.1037033614&type=3&theater
गाड़ी मेरी हेमामालिनी, मैं इसका राजेश खन्ना।
कल शाम घर लौटते हुए एक छोटे ट्रक के पीछे यह लिखा दिखा। कालपी रोड पर लौटते समय भीड़ काफी हो जाती है। हरेक को दूसरे से आगे निकलने की जल्दी है। मोटरसाईकल और टेम्पो वाले सबसे हड़बड़ी में रहते हैं। जाम के जहां जरा जगह वहां अपनी गाड़ी अड़ा देते हैं। दो गाड़ियों के बीच की जगह बाइक सवार अपनी गाड़ी घुसा देते हैं। उसके पीछे दूसरे बाइक वाले भी 'महाजनो एन गत: स: पन्था' का सहारा लेकर घुस जाते हैं। दो सीधी रेखाओं को तिर्यक रेखा सरीखा काटते हुए बाइक सवार सड़क की लंबाई में लगे जाम को चौड़ाई में फैलाने का काम करने में यथासम्भव योगदान करते हैं।
खैर यह तो लौटने की बात। शुरुआत सुबह से की जाए। कल जब हम घर से निकलते ही हमारे एस. ए. एफ. के एक साथी पैदल जाते दिखे। हमने गाड़ी रोक कर उनको बैठा लिया। जब हम एस ए एफ में काम करते थे तो उनकी ख्याति एक कर्मठ अधिकारी के रूप में थी। बाद में तबियत बिगड़ गयी और याददास्त गड़बड़ा गयी। अब कुछ सुधरे हैं हाल। लेकिन फिर भी तबियत वैसी नहीं हो पायी जैसी पहले थी।
हमने बैठाकर हाल पूछा। पहचान नहीं पाये मुझे।बताया तो कुछ-कुछ पहचाने। बताया- 'पत्नी रोज छोड़ देती हैं फैक्ट्री। आज उनकी तबियत खराब थी तो पैदल ही जा रहे थे।'
उनको फैक्ट्री गेट पर छोड़ने के बाद सोचते रहे कि आदमी के हाल में कैसे बदलाव आते हैं, कोई नहीं जानता। यह सरकारी सेवाओं का संरक्षण भाव ही है जो ऐसी सेहत के बावजूद ऐसे कामगारों को साथ रखता है। प्राइवेट संस्था होती तो अब तक अंतिम नमस्ते कर चूकी होती।
और कुछ ज्यादा सोचते तब तक दीपा का फोन आ गया जबलपुर से। उसके घर के बाहर लोग रुके हैं, मजदूर गुंडम के, उनके फोन से किया था। बैलेंस नहीं था उनके फोन में। हमने मिलाया। दीपा से बात की।
सुबह पढाई कर रही थी। जो किताबें हमने दी थीं उनको पढ़ रही है। नहाया नहीँ अभी। घड़ी ठीक चल रही है। पूछ रही थी -'कब आओगे हमसे मिलने, ग्वारी घाट कब घूमने चलेंगे।' फिर बोली- 'आंटी से बात कराइये।' बात कराई गयी।
फिर दीपा के पापा से भी बात हुई। दीपा ने कहा--'इसी नंबर पर बात करना। सुबह फोन किया करना।अब रखते हैं।'
दीपा और उसके पापा अभाव में जीते हैं। पर उनके व्यवहार में दैन्य भाव नहीं है। बातचीत में बराबरी का भाव है। अच्छा लगता है यह भाव।
अब चलें दफ्तर की तैयारी करें। आज सुबह हलकी बारिश होने के चलते टहलने नहीँ गए। फेसबुक पर ही टहलते रहे।
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