सुबह हमने पाठकों से अपने लेखन में कमियां बताने को कहा था। एक को छोड़ किसी ने अपनी राय नहीं बताई। मजे लिए या तारीफ़ कर दी। खुश हो जाओ।
पिछले दिनों जब हमने अपने पुराने लेख/पोस्ट देखे तो कुछ बातें या कहें कमियां जो नजर आई वो ये थीं।
1. लेख की लम्बाई। लम्बा लिखने के चलते कम लोग पूरा पढ़ते हैं। ज्यादातर पसंद करके निकल लेते हैं। कम समय में बहुत कुछ पढ़ना होता है भाई। हालांकि जितने लोग पूरा पढ़ते हैं और टिपियाते हैं उतने से अपन के लिखने भर का सन्तोष हो जाता है।
2. दोहराव। कई बार एक ही बात को अलग-अलग तरह से कहने के चक्कर में दोहराव होता है। कभी यह कुछ ज्यादा ही हो जाता है और पोस्ट लम्बी हो जाती है।
3. मुद्दे की बात पर देर से आना। पुराने लेखों में यह बात अक्सर देखी मैंने। लिखना शुरू किया ईरान से, खत्म हुआ तूरान पर। शुरुआत और अंत में 36 के आंकड़ा।
4. नियमितता का अभाव। जब मूड बना ठेल दिया स्टेटस। आजकल तो नेट दिव्यांग हैं सो आनलाइन कम रहने से यह दोष कम हुआ है।
5. विवादास्पद मुद्दों लिखने से बचते हैं। सुरक्षित लेखन। क्योंकि लगता है कि लिखने से कोई विवाद कम तो होने से रहा। पर इस चक्कर में अपनी राय भी नहीँ दे पाते।
6. बेसिरपैर के स्टेटस। यह अक्सर होता है। जैसा गौतम ने लिखा भी कि फेसबुक के बाहर भी दुनिया है।
7. बहुत पहले ब्लागिंग के सूत्र बताते हुए लिखा था:
'अगर आपको लगता है कि दुनिया का खाना-पीना आपका लिखा पढ़े हुए नहीं चलता तो आपकी सेहत के लिए जरूरी है कि आप अगली साँस लेने से पहले अपना लिखना बन्द कर दें।' यह सूत्र फेसबुक पर भी लागू होता है। लेकिन अमल में अक्सर चूक हो जाती है।
'अगर आपको लगता है कि दुनिया का खाना-पीना आपका लिखा पढ़े हुए नहीं चलता तो आपकी सेहत के लिए जरूरी है कि आप अगली साँस लेने से पहले अपना लिखना बन्द कर दें।' यह सूत्र फेसबुक पर भी लागू होता है। लेकिन अमल में अक्सर चूक हो जाती है।
8. वर्तनी की कमी अक्सर हो जाती है। कई बार जल्दी लिखने के कारण और कई बार जानकारी ही न होने के चलते। एक बार गलती हो गयी तो फिर हो ही जाती है। सुधर मुश्किल से पाती है।
और भी कुछ बातें नोट की थीं पर फ़िलहाल यही ध्यान में आयीं। सोचा सुबह वादा किया था कि हम भी लिखेंगे अपनी कमियों के बारे में तो सोचा सोने के पहले वादा निभा ही दें ।
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