कल रात मैंने एक सपना देखा! अरे न भाई किसी की झील सी गहरी आखों में
नहीं देखा भाई ! झीलें आजकल बची कहां हैं? जो बची भी हैं उनमें सपने देखना
भी सामाजिक अपराध है। झीलें वैसे भी गन्दी हो रही हैं। उन पर घुसकर सपना
देखने से झील गन्दी हो जायेगी न! और दूसरी बात हमको तैरना भी तो नहीं आता।
हां तो सपना कुछ ऐसा कि हम एक ट्रेन में जा रहे हैं। एक महिला टीटी आती है। टिकट दिखाने को कहती हैं। हम सब जेब टटोल लेते हैं पर टिकट नहीं मिलता। टिकट किसी लंबे व्यंग्य से सरोकार की तरह गायब था। वहीं सोच लिया मिलते ही टिकट का टेटुआ दबा देंगे। लेकिन वह तो तब होता जब टिकट मिलता। अभी तो सामने टिकट चेकर थीं। उनको तो टिकट दिकट दिखाना था।
जब टिकट नहीं मिला तो टिकट चेकर ने फ़ाइन लगा दिया। हमने दे भी दिया। थोड़ी बहस के बाद! लेकिन फ़िर फ़ौरन उतर भी गये ट्रेन से। आमतौर पर तो जुर्माना भरने के बाद ऐंठकर बैठने और टीटी को गरियाने का चलन है। पता नहीं क्यों हम उतर गये। अब यह सब सपने में हुआ। हम को ’सपना निर्देशक’ तो हैं नहीं। होते तो पक्का मंजिल तक तो पहुंचते ही।
ट्रेन से उतरने के फ़ौरन बाद याद आया कि कुछ सामान ट्रेन में ही छूट गया था। जब याद आया तो लपके ट्रेन की तरफ़ लेकिन तब रेल छुक-छुक करती हुई आगे बढ गयी थी।
हम प्लेटफ़ार्म पर खड़े हुये खोये हुये सामान के बारे में सोचते रहे। पता नहीं क्या खोया है ट्रेन में याद नहीं आ रहा। सपने पर बस चलता तो दुबारा ट्रेन पर जाकर देखते और खोया सामान उठा लेते। पर अगर बस चलता तो सपने को रिवाइंड करके और पीछे जाते और देखते कि क्या सच में हम बिना टिकट चल रहे थे। क्या ऐसा टिकट न लेने के चलते हुआ या टिकट खो गया था। क्योंकि हम बहुत डरपोंक टाइप के यात्री हैं। बिना प्लेटफ़ार्म टिकट लिये प्लेटफ़ार्म तक नहीं जाते फ़िर इत्ती बहादुरी कैसे आ गयी कि मेरे में बिना टिकट ट्रेन में चढ गये।
जो हुआ लेकिन यह बात अच्छी हुई कि सपना हमने अकेले ही देखा। घरैतिन को मेरा सपना दिखा नहीं। दिखता तो पक्का हड़कातीं टिकट गैरजिम्मेदारी से रखने के लिये। सपने भी पासवर्ड सुरक्षित होते हैं। एक का सपना दूसरा नहीं देख पाता।
आज भी एक सपना देखा। लेकिन जो देखा वह याद नहीं आ रहा। बहुत छोटा नन्ना सा सपना था। वनलाइनर स्टेटस सा क्यूट! बच्चा सपना केवल चढ्ढी सा कुछ पहने था। जब जगे तो बस यही दिखा कि भागा चला जा रहा था दिमाग के मेन गेट से। कुछ ऐसे जैसे चौराहे पर पुलिस वाले के डंडा फ़टकारते ही चौराहे के ठेलिया वाले इधर-उधर फ़ूट लेते हैं।
एक बार मन किया भागते हुये नन्हे से सपने की पीछे से चढढी पकड़कर उसको रोक लें और कहें मुखड़ा तो दिखा जा बच्चे। लेकिन जब तक यह सोचते, सपना आंखों से ओझल हो गया था। हम जग गये थे। आप भी जग गये होंगे अब तक। तो अब उठ भी जाइये। दिन शुरु कीजिये। जो होगा देखा जायेगा।
हां तो सपना कुछ ऐसा कि हम एक ट्रेन में जा रहे हैं। एक महिला टीटी आती है। टिकट दिखाने को कहती हैं। हम सब जेब टटोल लेते हैं पर टिकट नहीं मिलता। टिकट किसी लंबे व्यंग्य से सरोकार की तरह गायब था। वहीं सोच लिया मिलते ही टिकट का टेटुआ दबा देंगे। लेकिन वह तो तब होता जब टिकट मिलता। अभी तो सामने टिकट चेकर थीं। उनको तो टिकट दिकट दिखाना था।
जब टिकट नहीं मिला तो टिकट चेकर ने फ़ाइन लगा दिया। हमने दे भी दिया। थोड़ी बहस के बाद! लेकिन फ़िर फ़ौरन उतर भी गये ट्रेन से। आमतौर पर तो जुर्माना भरने के बाद ऐंठकर बैठने और टीटी को गरियाने का चलन है। पता नहीं क्यों हम उतर गये। अब यह सब सपने में हुआ। हम को ’सपना निर्देशक’ तो हैं नहीं। होते तो पक्का मंजिल तक तो पहुंचते ही।
ट्रेन से उतरने के फ़ौरन बाद याद आया कि कुछ सामान ट्रेन में ही छूट गया था। जब याद आया तो लपके ट्रेन की तरफ़ लेकिन तब रेल छुक-छुक करती हुई आगे बढ गयी थी।
हम प्लेटफ़ार्म पर खड़े हुये खोये हुये सामान के बारे में सोचते रहे। पता नहीं क्या खोया है ट्रेन में याद नहीं आ रहा। सपने पर बस चलता तो दुबारा ट्रेन पर जाकर देखते और खोया सामान उठा लेते। पर अगर बस चलता तो सपने को रिवाइंड करके और पीछे जाते और देखते कि क्या सच में हम बिना टिकट चल रहे थे। क्या ऐसा टिकट न लेने के चलते हुआ या टिकट खो गया था। क्योंकि हम बहुत डरपोंक टाइप के यात्री हैं। बिना प्लेटफ़ार्म टिकट लिये प्लेटफ़ार्म तक नहीं जाते फ़िर इत्ती बहादुरी कैसे आ गयी कि मेरे में बिना टिकट ट्रेन में चढ गये।
जो हुआ लेकिन यह बात अच्छी हुई कि सपना हमने अकेले ही देखा। घरैतिन को मेरा सपना दिखा नहीं। दिखता तो पक्का हड़कातीं टिकट गैरजिम्मेदारी से रखने के लिये। सपने भी पासवर्ड सुरक्षित होते हैं। एक का सपना दूसरा नहीं देख पाता।
आज भी एक सपना देखा। लेकिन जो देखा वह याद नहीं आ रहा। बहुत छोटा नन्ना सा सपना था। वनलाइनर स्टेटस सा क्यूट! बच्चा सपना केवल चढ्ढी सा कुछ पहने था। जब जगे तो बस यही दिखा कि भागा चला जा रहा था दिमाग के मेन गेट से। कुछ ऐसे जैसे चौराहे पर पुलिस वाले के डंडा फ़टकारते ही चौराहे के ठेलिया वाले इधर-उधर फ़ूट लेते हैं।
एक बार मन किया भागते हुये नन्हे से सपने की पीछे से चढढी पकड़कर उसको रोक लें और कहें मुखड़ा तो दिखा जा बच्चे। लेकिन जब तक यह सोचते, सपना आंखों से ओझल हो गया था। हम जग गये थे। आप भी जग गये होंगे अब तक। तो अब उठ भी जाइये। दिन शुरु कीजिये। जो होगा देखा जायेगा।
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