कानपुर
आये तीन दिन पहले। जबलपुर से विदा होने की बात लिखी तो कुछ दोस्तों ने यह
निष्कर्ष निकाला कि हम रिटायर हो गए। तदनुसार टिपियाये भी। बता दें कि
वरिष्ठ नागरिक की उम्र तक पहुंचने में अभी आठ साल बाकी हैं अपन के।
जानकारी के लिए यह भी कि अब हम पैराशूट फैक्ट्री में तैनात हुए हैं। तोप, कट्टा, ट्रक, बख्तरबंद वाहन बनाने के बाद अब हम कपड़ा और पैराशूट बनाएंगे।
जबलपुर में फैक्ट्री मेस से एकदम पास थी। यहाँ जितनी देर में यहाँ घर से निकलकर ताला लगाकर बाहर निकलकर गेट बन्दकरके गाड़ी स्टार्ट करते हैं उतनी देर में वहां फैक्ट्री में जमा हो जाते थे। यहां घर से दुकान 11500 मीटर दूर है।
पहले दिन निकले दफ्तर के लिए तो बहुत दिन बाद कानपुर में गाड़ी चला रहे थे। घर से निकलने से पहले ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ी के कागज संभाल कर रखे। अच्छे बच्चे की तरह सीट बेल्ट बाँधने के बाद ही स्टार्ट किये गाड़ी। गाड़ी भी भली गाड़ियों की तरह एक ही बार में स्टार्ट हो गयी। 17 साल पुरानी गाड़ी चाबी लगते ही चलने लगे इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है पहले दिन।
निकलने पर स्माल आर्म्स फैक्ट्री और फिर आर्डनेंस फैक्ट्री रस्ते में पड़ी। दोनों फैक्ट्रियों की बहन फैक्ट्री फील्ड गन फैक्ट्री सामने दिखी। हमने तीनों को नमस्ते किया। गाड़ी में बैठे-बैठे वाई-फाई प्रणाम।
आर्डनेंस फैक्ट्री पहली फैक्ट्री थी जहाँ से हमने नौकरी शुरू की थी। कभी वहां उपमहाप्रबन्धक रहे डीडी मिश्र जी हमको साथ लेकर ज्वाइन कराने आये थे। शायद साईकल से आये थे पहले दिन। 30 मार्च , 1988 को।
ये 30 तारीख का हमारी नौकरी में कुछ ख़ास दखल रहा है। ज्वाइन किये 30 मार्च को। पहला प्रमोशन 30 अप्रैल, 1992 को हुआ। तीसरा प्रमोशन 30 अप्रैल, 2001 को हुआ। जबलपुर से कानपुर आना 30 अप्रैल को हुआ। उस दिन विदाई समारोह में यह बताते हुए हमने कहा कि अगर नौकरी पूरी कर पाये तो आखिरी विदाई भाषण भी 30 अप्रैल को होगा। सन रहेगा -2024 :)
विजय नगर चौराहे पर ही सड़क पर गाड़ियों की भीड़ का अंदाज हुआ। हर तरफ से गाड़ी वाला जल्दी से आगे निकल जाना चाहता है। जरा सा रुके नहीं कि पीछे वाला हल्ला मचाने लगेगा। आसमान सर पर उठाकर लगता है आगे वाले पर पटक देगा। इसके अलावा किसी भी कोने से कोई भी ऑटो वाला कहीं से भी प्रकट होकर आपके दायें या फिर बाएं से ( कानपुर के ऑटो अभी ऊपर से होकर आगे नहीँ जा पाते :) ) आगे खड़ा हो जाएगा।
विजय नगर पर चौराहे पर एक ट्रॉफिक पुलिस वाला गाड़ियों को नियंत्रित कर रहा था। लेकिन लग ऐसा रहा था कि गाड़ियां उसको नियंत्रित कर रही हैं। जिधर ज्यादा भोंपू बजने लगते, उसका ध्यान उधर की गाड़ी निकालने पर लग जाता।
ट्रैफिक वाले ने एक तरफ का ट्रैफिक रोका। लेकिन तब तक ट्रक न्यूटन के जड़त्व के नियम का सम्मान करते हुए बीच सड़क तक आ गया था। सिपाही ने उससे पीछे जाने का इशारा किया। ड्राइवर जब तक पीछे जाने का मन बनाता तबतक उसके पीछे भी गाड़ियां खड़ी हो गयीं। सड़क संसद की तरह जाम सी हो गयी। वाहन जनप्रतिनिधि की तरह हल्ला मचाने लगे। जरा सी जगह जो बची हुई थी उसी में तमाम वाहन टेढ़े-मेढ़े होकर आगे निकल लिए।
सिपाही ने कुछ देर बाद ट्रक को निकाल दिया। सड़क फिर से चलने लगी।
जरीब चौकी पर एक बुढ़िया एक बच्ची के साथ सड़क पर कर रही थी। सड़क सिपाही अपनी जगह पर खड़े-खड़े उसको सड़क पार करा रहा था। बीच-बीच में एक-दो कदम आगे भी बढ़कर उसके लिए दूर से जगह बना रहा था। सिपाही का पेट काफी आगे निकला हुआ था। नौकरी करते हुए पेट अंदर करने का समय ही नहीं मिलता होगा भाई साहब को।
हमने जब सिपाही जी को बुढ़िया को सड़क पार करते देखा तो चौराहे पर गाड़ी रोक दी इस तरह कि दूसरी किसी गाड़ी के निकलने की संभावना काम हो जाए। बुजुर्ग महिला तसल्ली से पार कर गयी सड़क। सिपाही ने हमको इशारा किया आगे बढ़ने का। हम बढ़ गए।
फजलगंज चौराहे पर फिर गाड़ियों की भीड़ मिली। हमें लगा कि हमारे लिए रुकने का संकेत हुआ है। हम रुक गए। लेकिन सिपाही ने संकेत दिया कि निकलो आगे। जिस तरफ सिपाही संकेत दे रहा था उससे लगा वह चौराहे पर खड़े होकर हमारी गाड़ी खींचकर आगे निकाल रहा है। उसके खींचने भर से हमारी गाडी आगे निकल गयी। बेकार ही पेट्रोल बर्बाद किया।
यह तो हुआ कानपुर में पहले दिन का किस्सा। बीच के कई किस्से मिस हो गए। असल में यहाँ जिस जगह हमारी फैक्ट्री है वहां बीएसएनल का नेटवर्क कंचनमृग की तरह है। जितना आता है उससे ज्यादा नहीँ आता है। कई जगह फोन भी नहीं हो पाता। सुबह से शाम तक फैक्ट्री में रहने के दौरान यही हाल रहते हैं। लंच में भी फैक्ट्री में ही रह जाते हैं। इसलिए नेट/फोन कनेक्टिविटी के मामले में थोड़ा गरीब हो गए हैं फिलहाल।
कल मेरे बच्चे के जन्मदिन के मौके पर आपकी शुभकामनाएं , आशीर्वाद का शुक्रिया। कोशिश करूँगा कि सबको अलग से आभार व्यक्त कर सकूं। जब तक न मिले आभार मिला हुआ समझना।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10208000040212299
जानकारी के लिए यह भी कि अब हम पैराशूट फैक्ट्री में तैनात हुए हैं। तोप, कट्टा, ट्रक, बख्तरबंद वाहन बनाने के बाद अब हम कपड़ा और पैराशूट बनाएंगे।
जबलपुर में फैक्ट्री मेस से एकदम पास थी। यहाँ जितनी देर में यहाँ घर से निकलकर ताला लगाकर बाहर निकलकर गेट बन्दकरके गाड़ी स्टार्ट करते हैं उतनी देर में वहां फैक्ट्री में जमा हो जाते थे। यहां घर से दुकान 11500 मीटर दूर है।
पहले दिन निकले दफ्तर के लिए तो बहुत दिन बाद कानपुर में गाड़ी चला रहे थे। घर से निकलने से पहले ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ी के कागज संभाल कर रखे। अच्छे बच्चे की तरह सीट बेल्ट बाँधने के बाद ही स्टार्ट किये गाड़ी। गाड़ी भी भली गाड़ियों की तरह एक ही बार में स्टार्ट हो गयी। 17 साल पुरानी गाड़ी चाबी लगते ही चलने लगे इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है पहले दिन।
निकलने पर स्माल आर्म्स फैक्ट्री और फिर आर्डनेंस फैक्ट्री रस्ते में पड़ी। दोनों फैक्ट्रियों की बहन फैक्ट्री फील्ड गन फैक्ट्री सामने दिखी। हमने तीनों को नमस्ते किया। गाड़ी में बैठे-बैठे वाई-फाई प्रणाम।
आर्डनेंस फैक्ट्री पहली फैक्ट्री थी जहाँ से हमने नौकरी शुरू की थी। कभी वहां उपमहाप्रबन्धक रहे डीडी मिश्र जी हमको साथ लेकर ज्वाइन कराने आये थे। शायद साईकल से आये थे पहले दिन। 30 मार्च , 1988 को।
ये 30 तारीख का हमारी नौकरी में कुछ ख़ास दखल रहा है। ज्वाइन किये 30 मार्च को। पहला प्रमोशन 30 अप्रैल, 1992 को हुआ। तीसरा प्रमोशन 30 अप्रैल, 2001 को हुआ। जबलपुर से कानपुर आना 30 अप्रैल को हुआ। उस दिन विदाई समारोह में यह बताते हुए हमने कहा कि अगर नौकरी पूरी कर पाये तो आखिरी विदाई भाषण भी 30 अप्रैल को होगा। सन रहेगा -2024 :)
विजय नगर चौराहे पर ही सड़क पर गाड़ियों की भीड़ का अंदाज हुआ। हर तरफ से गाड़ी वाला जल्दी से आगे निकल जाना चाहता है। जरा सा रुके नहीं कि पीछे वाला हल्ला मचाने लगेगा। आसमान सर पर उठाकर लगता है आगे वाले पर पटक देगा। इसके अलावा किसी भी कोने से कोई भी ऑटो वाला कहीं से भी प्रकट होकर आपके दायें या फिर बाएं से ( कानपुर के ऑटो अभी ऊपर से होकर आगे नहीँ जा पाते :) ) आगे खड़ा हो जाएगा।
विजय नगर पर चौराहे पर एक ट्रॉफिक पुलिस वाला गाड़ियों को नियंत्रित कर रहा था। लेकिन लग ऐसा रहा था कि गाड़ियां उसको नियंत्रित कर रही हैं। जिधर ज्यादा भोंपू बजने लगते, उसका ध्यान उधर की गाड़ी निकालने पर लग जाता।
ट्रैफिक वाले ने एक तरफ का ट्रैफिक रोका। लेकिन तब तक ट्रक न्यूटन के जड़त्व के नियम का सम्मान करते हुए बीच सड़क तक आ गया था। सिपाही ने उससे पीछे जाने का इशारा किया। ड्राइवर जब तक पीछे जाने का मन बनाता तबतक उसके पीछे भी गाड़ियां खड़ी हो गयीं। सड़क संसद की तरह जाम सी हो गयी। वाहन जनप्रतिनिधि की तरह हल्ला मचाने लगे। जरा सी जगह जो बची हुई थी उसी में तमाम वाहन टेढ़े-मेढ़े होकर आगे निकल लिए।
सिपाही ने कुछ देर बाद ट्रक को निकाल दिया। सड़क फिर से चलने लगी।
जरीब चौकी पर एक बुढ़िया एक बच्ची के साथ सड़क पर कर रही थी। सड़क सिपाही अपनी जगह पर खड़े-खड़े उसको सड़क पार करा रहा था। बीच-बीच में एक-दो कदम आगे भी बढ़कर उसके लिए दूर से जगह बना रहा था। सिपाही का पेट काफी आगे निकला हुआ था। नौकरी करते हुए पेट अंदर करने का समय ही नहीं मिलता होगा भाई साहब को।
हमने जब सिपाही जी को बुढ़िया को सड़क पार करते देखा तो चौराहे पर गाड़ी रोक दी इस तरह कि दूसरी किसी गाड़ी के निकलने की संभावना काम हो जाए। बुजुर्ग महिला तसल्ली से पार कर गयी सड़क। सिपाही ने हमको इशारा किया आगे बढ़ने का। हम बढ़ गए।
फजलगंज चौराहे पर फिर गाड़ियों की भीड़ मिली। हमें लगा कि हमारे लिए रुकने का संकेत हुआ है। हम रुक गए। लेकिन सिपाही ने संकेत दिया कि निकलो आगे। जिस तरफ सिपाही संकेत दे रहा था उससे लगा वह चौराहे पर खड़े होकर हमारी गाड़ी खींचकर आगे निकाल रहा है। उसके खींचने भर से हमारी गाडी आगे निकल गयी। बेकार ही पेट्रोल बर्बाद किया।
यह तो हुआ कानपुर में पहले दिन का किस्सा। बीच के कई किस्से मिस हो गए। असल में यहाँ जिस जगह हमारी फैक्ट्री है वहां बीएसएनल का नेटवर्क कंचनमृग की तरह है। जितना आता है उससे ज्यादा नहीँ आता है। कई जगह फोन भी नहीं हो पाता। सुबह से शाम तक फैक्ट्री में रहने के दौरान यही हाल रहते हैं। लंच में भी फैक्ट्री में ही रह जाते हैं। इसलिए नेट/फोन कनेक्टिविटी के मामले में थोड़ा गरीब हो गए हैं फिलहाल।
कल मेरे बच्चे के जन्मदिन के मौके पर आपकी शुभकामनाएं , आशीर्वाद का शुक्रिया। कोशिश करूँगा कि सबको अलग से आभार व्यक्त कर सकूं। जब तक न मिले आभार मिला हुआ समझना।
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