Monday, May 23, 2016

लो सूरज भाई फिर आये हैं

लो सूरज भाई फिर आये हैं
अबकी बड़ी तेज भन्नाए हैं।

देखो आँख तरेरी जोर से
सबको आते ही झुलसाये है।

चिड़ियाँ के भी गले सूख गए
बस किसी तरह चिचिआये हैं।

पर फूल ऐंठता झूम रहा है
उसका कुछ न बिगाड़ पाये हैं।

पानी बेचारा भी डरा हुआ है
जमीन में घुस जान बचाये है।

पानी आ गया है नल में जी
हम अब्बी पानी भरकर आये हैं।

सूरज भाई ने हमको देख लिया,
फॉर्मेलिटी में बड़ी तेज मुस्काये हैं।

आ रहे हैं अब संग हमारे देखो
उनके लिए चाय बनाकर लाये हैं।

-कट्टा कानपुरी

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