पेड़ों की आड़ में सूरज भाई |
यह हरकत उन वरिष्ठों सरीखी है जो चुपचाप अपने अधीनस्थों की गलती का इन्तजार करते हैं। जहाँ कहीं पकड़ ली गलती वहीँ उसको हड़का दिया या फिर एक सलाह पत्र थमा दिया। लेकिन ऐसे वरिष्ठ यह समझने की भूल करते हैं कि हड़काई या सलाह पत्र से काम बड़ी अच्छे से हो जाते हैं। अच्छे काम के लिए मेरी समझ में अच्छा तालमेल, व्यवहार में पारदर्शिता और परस्पर विश्वास का भाव प्रमुख होता है।
पार्क में बैठकी करते लोग |
सूरज भाई गेट पर ही मिल गए। पेड़ों पीछे से सूरज भाई का चेहरा किसी नई नवेली दुल्हन के लाज-लाल चेहरे जैसा सलोना दिख रहा था। हम भी मुस्कराये। सूरज भाई मेरे साथ ही चल दिए। कैरियर पर बैठकर। अनगिनत किरणें साईकल के हैंडल, रिम, पहिये और बाकी जो बचीं हमारे कंधे, चेहरे पर लटककर चल दीं।
एक महिला मेरी साईकल के आगे चली जा रही थी। उसका बायां हाथ भारत में वामपंथ की हलचल सा स्थिर था। दाहिना हाथ दक्षिणपंथी ताकतों सरीखा तेजी से आगे-पीछे हो रहा था। दायें हाथ की तेजी देखकर लगा मानों बाएं हाथ ने अपनी हलचल भी दायें हाथ को समर्पित कर दी हो।
मिसिर जी घर के बाहर अपनी खटिया पर |
मैदान के आगे हीरक जयंती पार्क है। इसकी फेंसिंग हमारे तत्कालीन वरिष्ठ महाप्रबंधक विज्ञान शंकर जी के समय हुई थी। यहाँ आयुध निर्माणी का हीरक जयंती कार्यक्रम हुआ था। बाद में इसको पार्क के रूप में बनवाने का काम करने में हम लगे थे।
पूरे मैदान को समतल बनाने और पार्क बनाने में अपने साथियों के साथ जुनून से लगे हम लोग। मैदान के बीच में फव्वारा लगवाया। पार्क में झूले लगवाये। दरबान रखा था हम लोगों ने। जमीन यहाँ इतनी सख्त और उबड़-खाबड़ थी कि एक बात जेसीबी का फावड़ा भी टूट गया।
इस पार्क से बहुत लगाव था मुझे। दिन में कम से कम एक बार जरूर देखने जाते थे इसको। कोई झूला अगर टूट गया होता था तो उसको उसी दिन ठीक कराते थे। बहुत लोग आते थे यहाँ सुबह टहलने।
आज देखा कि उस फव्वारे की दीवार पर तमाम लोग गप्पाष्टक कर रहे थे। फव्वारे के लिए पानी की व्यवस्था तो बहुत पहले ख़त्म हो गयी थी। लेकिन हरियाली बची हुई थी तो तमाम लोग वहां मौजूद थे।
4 -4 का क्रिकेट हो रहा है |
आगे कालोनी में एक जगह कुछ भैंसे इकठ्ठा किये एक आदमी दूध दुह रहा था। तमाम लोग बर्तन लिए अपनी बारी के इन्तजार में खड़े थे। मैदान में आसपास के बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे।
आर्मापुर से बाहर निकलकर हम कल्याणपुर की तरफ बढे। एक आदमी उछल-उछलकर सड़क पर कर रहा था। उसके एक पैर में तकलीफ थी। दूसरा पैर मजबूती से आगे रखता। थोड़ा ठहरता। फिर तकलीफ वाले पैर को झटके से आगे करके कुछ सुस्ताता। इसके बाद फिर अगले कदम के लिए दूसरा पैर उठाता।
कुछ दूर जाकर हम आर्मापुर की तरफ मुड़ गए। एक महिला अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही थी पैदल। पानी की बोतल महिला के हाथ में थी। उसके पीछे एक आदमी प्लास्टिक बोतल हाथ में लिए , कहीँ खुले में निपटने के लिए, चला जा रहा था। उनको देखकर लगा कि कोई पार्टी मांग कर सकती है-' हर घर में शौचालय हो, घर के पास विद्यालय हो।'
एक लड़की एक गढ़हे के पास इकट्ठा नाले के पानी के पास जमीन से जरा सा ऊपर उठे नल से प्लास्टिक के डब्बों में पानी भर रही थी। बताया सुबह 6 से 8 बजे तक आता है पानी। इसी से घर का सब काम होता है।
आगे एक घर के सामने एक बुजुर्ग खटिया घर के बाहर सड़क पर डाले आराम से बैठे थे। जैसे राजशाही खत्म होने के बाद पुराने राजे-महाराजे अपने सिंहासन पर बैठते होंगे। सफेद बंडी पहने बुजुर्गवार की मच्छरदानी खटिया के बगल में धरी थी।
रास्ता पूछने के बहाने बतियाए। एस. एन. मिश्र नाम है बुजुर्ग का।केफ्को से सन 1999 में रिटायर हुए थे। अब उम्र 82 साल है। बिल्हौर के पास के एक गाँव के रहने वाले। अब यहीं बस गए। घर के बाहर जो नाम लिखे थे उनमे मिसिर जी का नाम नहीं था। हमने पूछा -'ये बनवाया आपने और आपका ही नाम नहीं है।' इस पर हँसते हुए बोले-' अब तो दुनिया से नाम कटने का समय आने वाला है। यहाँ नाम किस लिए लिखवायें।'
मिसिर जी की फोटो दिखाई तो खुश हुए पर बोले -'कम दिखता है आँख से।' ज़ूम करके दिखाए तो बोले-'हाँ, बढ़िया है फोटो।'
गंधाते हुए गंदे नाले को पार कर हम वापस आर्मापुर आ गए। मैदान में बच्चे खेल रहे थे। एक जगह बच्चे टीम बना रहे थे। दूसरी जगह मैच चल रहा था। 4 - 4 ओवर का मैच। ईंट का विकेट। दूसरी तरफ के ईंट के विकेट को अंपायर कुर्सी की तरह बनाकर बैठा था। पहली टीम बैटिंग कर रही थी। स्कोर हुआ था -3 विकेट पर 23 रन।
चौथे ओवर की पहली गेंद को बल्लेबाज ने हिट किया। गेंद थोड़ा मिस्फील्ड हुई। रन आउट का मौका हाथ से निकल गया तो विकेटकीपर ने फील्डर की तरफ देखरेख कहा -'अबे झान्टू।' इसके बाद अगली गेंद के लिए गेंदबाज रनअप पर चला गया।
सुबह स्कूल के लिए बच्चे निकल चुके थे। एक बच्चा तेजी से साईकल से चला जा रहा था। उसका स्कूल बैग करियर से नीचे गिर गया। उसको पता नहीं चला। सामने से आ रहे रिक्शे वाले ने उसको रोका और टोंका। बच्चे ने स्कूल बैग सड़क से उठाकर पीठ पर लादा और चल दिया।
रिक्शा वाले ने हमको नमस्ते किया। हमने उसके हालचाल पूछे। रिक्शा वाला सुबह बच्चों को स्कूल भेजता है। शाम को आर्मापुर बाजार में सब्जी, फल बेंचता है। मेहनत की कमाई करता है।
आगे एक बच्चा हाथ रिक्शा पर चला जा रहा था। हाथ से पैडल चलाते हुए बच्चे के रिक्शे को पीछे से एक आदमी सहारा देते हुए आगे ले जा रहा। शायद पोलियो है बच्चे को।
घर पहुंचकर फिर एक और चाय मिल गयी। कुछ देर बाद निम्बू पानी भी। साथ ही कई हिदायतें भी जल्दी से तैयार होने की।
अब चलते हैं तैयार होने। आप भी मजे से रहिये। बोले तो -'झाड़े रहो कलटटरगंज।'
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