धूप स्नान वाले तख्त खाली हो गए थे शाम को |
गद्दे समेटती हुई एक महिला से बात की तो पता चला की धूप सेंकने वाले तख्तों का किराया 100 रुपया है। लेकिन अगर खाना वगैरह दुकान से ही लिया जाता है तो तख्त पर मुफ़्त में धूप सेंक सकते हैं।
महिला कर्नाटक के किसी गाँव से आई है यहाँ काम करने। 15-20 सालों से हर साल आती है। छह महीने टूरिस्ट सीजन में रहती है यहां। फिर वापस गाँव चली जाती है। गाँव में खेती है। पति भी और बच्चे भी साथ में आते हैं। बीच किनारे होटल में काम करने का खाने और रहने के अलावा 3000/- महीना मिलता है। पति को 5000/- महीना मिलता है। वह खाना बनाने का काम भी करता है।
कमला कर्नाटक से आई है गोवा |
आगे एक नाव के पास तीन लोग बैठे अपना जाल ठीक कर रहे थे। एक लड़का एक तरफ से काटता सा जा रहा था जाल, दूसरा लड़का एक चाकू जैसी सलाई से जाल सिलता जा रहा था। हम लोगों से बात करते हुए वे दोनों अपना काम भी करते जा रहे थे। बताया कि यहाँ बड़ी मछली पकड़ना मना है। सिर्फ छोटी मछली पकड़ सकते हैं। कल एक पेटी मछली पकड़ी उन लोगों ने। उनसे अलग एक अधेड़ उम्र का आदमी चुपचाप तल्लीनता से अपने काम में जुटा था।
समुद्र तट पर सैलानी अलग-अलग तरह से आनन्द ले रहे थे। कुछ लोग आती-जाती लहरों को देखते हुए पाँव भिगा रहे थे।जोड़े और परिवार के साथ आये लोग फोटो भी खींच रहे थे। कुछ लोग नहा रहे थे, पानी में किल्लोल कर रहे थे। कुछ बच्चे तट पर ही वालीबॉल खेल रहे थे।
मछली पकड़ने का जाल ठीक करते मछुआरे |
इस बीच एक जीप वहां आई और खड़ी हो गयी। समुद्र तट और यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ सुरक्षा कर्मी थे जीप के अंदर।
दिल्ली से आया नौजवान जोड़ा |
सूरज की किरणें समुद्र तल पर |
चलते समय बताया उन लोगों ने कि वे दिल्ली से आये हैं। उनसे बातचीत करते हुए और अभी यह टाइप करते हुए सोच रहा हूँ कि घूमने-फिरने के दौरान जान-पहचान होने की गति कितनी तेज होती है।
नाव समुद्र से निकाल कर वापस ले जाते लोग |
सूरज भाई बादलों के बीच लुकते, छिपते क्षितिज की तरफ बढ़ते जा रहे थे। उनका विदा होने का समय होता जा रहा था। देखते-देखते बिना हमसे टाटा-बॉय-बॉय किये वे समुद्र के अंदर कब डुबकी लगा गए पता ही नहीं चला।
चाय की दूकान पर अनूप शुक्ल , राजीव कुमार, रघुनंदन मिश्र और सुधीर श्रीवास्तव |
आगे एक दूकान पर बैठकर चाय पीने की सोची। 60 रूपये की एक चाय। बड़ा बियर टाइप मग भर चाय का दाम था यह। हमने दो चाय का आर्डर दिया और वाई-फाई फ्री देखकर मोबाईल का वाई-फाई खोला। फटाफट कई वाई-फाई कनेक्सन खुल गए। हर कनेक्सन यूजर नेम और पासवर्ड मांग रहा था। हमने दुकान वाले से पूछा तो उसने पूछा-'खाने का आर्डर किया क्या? ' हमने कहा -'चाय का किया है न।' इस पर उसने कहा-'चाय पर थोड़ी वाई-फाई फ्री होता है।'
लेकिन एक हमारे मित्र यूजर नेम पासवर्ड की खिड़की को स्किप करके इंटरनेट जुड़ गए और हमारी जलन का पात्र बने। हमारे मोबाइल ने इस तरह स्किप करके जुड़ने से इंकार कर दिया । हम फिर अपने मोबाइल नेटवर्क वाले नेट से जुड़े और कट भी लिये क्योंकि बैटरी खर्च हो रही थी।
जिस बालक ने हमको नेट का पासवर्ड बताने से मना किया था उससे फिर अपने खूब सारी ग्रुप फोटो खिंचवाये। एक बार ठीक नहीं आई तो दुबारा खिंचवाए। इस तरह उसको उसकी 'बदमाशी' की सजा दी।
बालक से बात करने पर पता चला कि वह उडीसा के एक गाँव से यहां आया है। तीन महीने पहले। इंटर की पढ़ाई किया है। उसके गाँव के कई लोग हैं यहां। उनके ही साथ वह यहां आया है। 8000/- महीना देता है दुकान वाला उसको।
चाय आई तो दो चाय को चार कप में डालकर पिया चारो मित्रों ने। पीकर 120/- रूपये दिए तो पता चला दूध वाली चाय 70 रूपये की है। 20/- और देने पड़े।
लौटते हुए वह युवा जुड़ा जिसकी फोटो हम लोगों ने खींची थी फिर मिला। और बातचीत हुई। वे दोनों ही लोग लखनऊ के रहने वाले हैं। कैसरबाग और अमीनाबाद के। हर साल आते हैं गोवा घूमने। पिछले साल फ़रवरी में आये थे। पास के होटल में रुके हुए हैं। हफ्ते भर रुकने के हिसाब से आये हैं यहां।
शाम गहरा रही थी। एक जगह देखा कि जो नाव समुद्र में थी उसको खींचकर लोग बाहर लाये और एक हाथगाड़ी में लादकर रेत में घसीटते हुए दुकान के अंदर ले गए। धूप में पड़े तख्तों के गद्दे इकट्ठा करके एक जगह जमाकर मोमिया की चद्दर से ढंककर रखते लोग दिखे।
एक महिला अपनी छोटी बच्ची को साथ लिए रेत को अपनी हथेलियों में गट्टे की उछालती हुई खेल रही थी। रेत को उछालकर सीधे हथेली में रखती फिर उछालकर हथेली पलटकर उसमें कैच करती रेत को। उसकी बच्ची भी रेत को अपने हिसाब से रूप देती खेलने में मगन थी।
समुद्र तट पर अँधेरा सा हो चला था। लोग तेजी से टहलते हुए वापस आते-जाते अपने ठीहे पर लौटते दिखे। बीच किनारे ढाबों में मेजों पर लालटेन सरीखी जल गयीं। हम वापस लौट आये, थोड़ा भटकते, पूंछते हुए। गेट पर चौकीदार से बात हुई तो उसने बताया कि उड़ीसा से आया है वह। और भी कई साथी हैं उसके उड़ीसा से। एक सुरक्षा एजेंसी के माध्यम से यहां काम मिला है। छह महीना रहते हैं। आठ से आठ 12 घण्टे की ड्यूटी के महीने के 12 से 15 हजार मिलते हैं।
शाम को खाना खाकर निकले तो खाने की और अन्य दुकाने गुलजार थीं। शराब की दुकानों पर लोग जमा थे। मेन रोड पर आये तो एक युवा लड़का मोपेट पर आया और पूछने लगा मोटर साइकिल, कार, टैक्सी चाहिए किराये पर तो बोलिये। मोटर साइकिल का किराया 350/- प्रतिदिन।
हमने उससे पूछा कि आजकल यहां किस देश के सैलानी सबसे ज्यादा आये हुए हैं। उसने बताया कि रूस और इंग्लैंड के। लेकिन रूसी लोग कंजूस होते हैं। खर्च नहीं करते। क्या करें उनका रूबल कमजोर हो गया है। इंग्लैण्ड के भी ऐसे ही हैं। इंडियन टूरिस्ट आर द बेस्ट।
उसने बिना पूछे अपना नम्बर दिया और किसी जरूरत पर फोन करने को कहते हुए चला गया। हम भी खरामा-खरामा टहलते हुए वापस आ गए।
यह हमारा गोवा का पहला दिन था।
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