Sunday, January 24, 2016

लीसा और जॉन से मुलाकात


डेनमार्क निवासी लीसा और जॉन
कल गोवा प्रवास का आखिरी दिन था।

सुबह बीच पर गए तो देखा कि खूब सारे सफेद पक्षी समुद्र की सतह के ऊपर मंडरा रहे थे। इसके पहले नहीं दिखे थे इतने पक्षी। कुछ पक्षी समुद्र की लहरों के ऊपर गोल घेरे में ऐसे बैठे थे मानों समुद्र पर गोल मेज सम्मेलन कर रहे हों।

कन्नौज के शाहनवाज खान बीच पर चाय बेंचते दिखे। इसके पहले शानू मिले थे वो भी कन्नौज के ही थे। लगता है पूरा कन्नौज इत्र बेंचना छोड़कर गोवा में चाय बेंचने निकल पड़ा।

वहीँ डेनमार्क निवासी जॉन और लीसा मिले। जॉन अपने कैमरे से समुद्र तट की फोटोग्राफी कर रहे थे। लीसा अपने 'नयन कैमरों' का उपयोग करते हुए दृश्य देख रहीं थीं।

लीसा गेंदे की फूल की माला पहने हुयीं थीँ। अच्छी लग रहीं थीं। उनसे बात करते हुए डेनमार्क के बारे में काफी जानकारी हासिल हुई।


कन्नौज के शाहनवाज कलंगूट पर चाय बेंचते हुए
लीसा और जॉन अक्सर भारत आते रहते हैं।यह उनका दसवां दौरा है गोवा का। गोवा के अलावा दिल्ली और मुम्बई भी घूमा है उन्होंने। दिल्ली और मुम्बई के मुकाबले गोवा अच्छा और साफ़-सुधरा लगता है।

डेनमार्क में आजकल तापमान शून्य से दस डिग्री नीचे है। हम यहां 4 /5 डिग्री में कंपकपाये जा रहे हैं। 15 डिग्री और नीचे क्या हाल होंगे, सोचकर ही कँपकँपी छूट रही।

जॉन 69 साल के और लीसा 71 की हैं। रितायर्ड हैं दोनों। पेंसनर। लीसा अपराधियों की काउंसलिंग करके उनको सुधारने का काम करती थीँ। मैंने पूछा कि कितने लोग सुधरे काउंसलिंग से तो बोलीं- ' ज्यादा नहीं। कम लोग ही सुधर पाये। बहुत मुश्किल और समय खपाऊ काम है।'

उन्होंने हमसे पूछा कि क्या भारत में भी इस तरह की अपराधियों को सुधारने की व्यवस्था है। हमने बताया किशोर अपराधियों के लिए सुधार गृह (जहां से निकलने के बाद बच्चा पक्का अपराधी बनकर निकलता है) की व्यवस्था है। बड़ी उम्र के लोगों के लिए कोई इंतजाम नहीं है।

शायद डेनमार्क की आबादी कम है इसलिए ऐसी व्यवस्था वहां सम्भव है--लीसा ने कहा।

लीसा की बेटी पत्रकार है और दामाद कार बेचने का धंधा करता है। लीसा को चित्रकारी का शौक है। जॉन को फोटोग्राफी का।

डेनमार्क छोटा देश है। आमतौर पर खुशहाल। लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न से हैं। सामाजिक सम्बन्ध भी ठीक-ठाक हैं। समस्याएं पूछने पर बोलीं-'समस्याएं तो हर समाज में होती हैं, हमारे यहां भी हैं, पर ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं हमारे यहां।'


कलंगूट बीच पर चाय की चुस्की
दिल्ली में देखी गरीबी का जिक्र किया लीसा ने। हमने सोचा अच्छा हुआ कि बस्तर, विदर्भ, बुन्देलखण्ड, उड़ीसा नहीं गयीं वरना क्या हाल होता इनका।

70 पार के डेनमार्क दम्पति एकदम चुस्त-दुरस्त दिख रहे थे। अपनी उम्र नहीं बताती तो यह अंदाज लगाना मुश्किल था कि लीसा की उम्र 71 साल होगी।

उनका फोटो खींचा। देखकर खुश हुए तो हमने उनका ईमेल आई डी माँगा ताकि उनको फोटो भेज दें। लीसा ने अपना कार्ड दिया। उसमें उनका ईमेल पता, साइट का यु आर एल (www.lisejuhl.dk) दिया है। कमरे पर आकर फोटो भेजने के बाद हम लीसा की साइट देखते हैं। उसमें गोवा के कुछ किस्से भी हैं। लेकिन समझ नहीं आये। कुछ चित्र भी हैं लीसा के बनाये हुए।


ज्वॉयसिल (दांये) अपनी साथिन के साथ
होटल से विदा लेते हुए काउंटर पर काम करने वाले ज्वॉयसिल का फोटो लेते हैं। काउंटर के पास में ही कमरा होने के कारण चाबी काउंटर में जमा करते हुये दिन में कई बार बात होती रही ज्वॉयसिल से। 31 साल की है वो। 7 साल से होटल में काम कर रही है। पति अबूधाबी गया है कमाने के लिए। साल में एकाध महीने के लिए आता है।

यह कमाने का चक्कर भी मजेदार है। कमाई के लिए कन्नौज का लड़का गोवा में चाय बेंचता है। गोवा का लड़का परिवार छोड़कर अबूधाबी में खटता है जाकर। अबूधाबी वाले शायद कहीं और जाकर पसीना बहाते हों। वहां के लोग कहीं और.....।

गोवा से टी शर्ट और घुटन्ना वाले मौसम का हफ्ता भर आनंद उठाने के बाद अब फिर रजाई कम्बल वाले मौसम की शरण में आ गए--जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै।

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