बिना कैमरे के वीडियोग्राफी से करती हुई महिला सैलानी |
बीच पर एक महिला समुद्र के सामने घुटने, हथेलियाँ आँखों के सामने किये चेहरा दांये-बाएं घुमा रही थी। उसकी तल्लीनता से लगा कि शायद समुद्र की वीडियोग्राफी कर रही हो। सामने से गुजरने पर पर देखा कि उसके हाथ में कोई कैमरा नहीं था। वह खाली हाथ थी। शायद कोई कसरत कर रही हो।
समुद्र स्नान और सूर्य स्नान एक साथ करते हुए सैलानी |
बीच पर एक महिला कुछ आयताकार लकड़ियाँ खींचकर पास-पास एक दूसरे के समांतर रख रही थी। रेत पर रखी गयी इन लकड़ियों के ऊपर नाव रखी जानी थी। दूर से देखने पर लगा कि लकड़ियाँ काली हैं मतलब जली हुई हैं। लेकिन पास से देखने पर पता चला कि लकड़ियों का कालापन उनके जलने के चलते नहीं बल्कि उन पर चढ़ी हुई रबर के कारण हैं। रबर से लकड़ी और नाव दोनों की उम्र बढ़ती होगी।
बीच पर एक लड़की हमारी ही तरह इधर-उधर घूमती फोटो ले रही थी। पूछा तो बताया रूस से आई है। इसके आगे की बातचीत के हम लोगों के बीच भाषा की दीवार खड़ी हो गयी। वह बीच के किनारे बने ढाबे की तरफ चली गयी।
सूरज भाई भी लगता है हमारे साथ ही आ गए हैं बीच पर। |
समुद्र के किनारे खड़े हुए हम लहरों का तेजी से तट की तरफ आना और तट पर पहुंचकर आराम से बालू को धोते और समतल करते देखते रहे। लहरें एक के पीछे एक करके आतीं। एक दूसरे को धकियाते हुए तट तक पहुंचती। तट पर पहुंचते हुए अचानक कोई नई लहर सब लहरों के ऊपर चढ़कर सबसे पहले तट पर पहुंचकर शांत हो जाती। कुछ ऐसे ही जैसे जब कोई आंदोलन शुरू से लेकर आगे बढ़ने और खत्म होने तक आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बदलते रहते हैं।
बीच पर योगासन करते हुये सैलानी |
सूरज भाई शायद इन सैलानियों की सुविधा के लिये ही उत्तर भारत छोड़कर यहां डटे हुए हैं |
हमारे साथ के लोग डॉल्फ़िन देखने के लिये चले गए। हम लौट लिये।कपड़े सब भीग गए थे। समुद्र ने विदा करते हुए एक-एक मुट्ठी रेत मेरे बरमूडा की दोनों जेबों में उपहार के रूप में डाल दी थी। लहरों ने भी अपने साथ लाई रेत कपड़ों और शरीर में लपेटकर विदा किया।
लौटते हुए देखा एक लड़की समुद्र में बहुत आगे जाकर नहा रही थी। उसको लहरों के साथ ऊपर नीचे होते, तैरते देखकर लगा काश हमको भी तैरना आता तो हम भी समुद्र में तैरते। लेकिन कन्धे का जोड़ उतर जाने के डर के चलते ऐसे कई काम नहीं कर पाते जिनको करने का मन होता है।
निधीश रहवासी खजुराहो |
वहीं ढाबे पर तख्त जमाते, गद्दे लगाते, छाता सटाते निधीश से मुलाकात हुई। खजुराहो के रहने वाले निधीश छह महीने गोवा के होटलों में नौकरी करते हैं। इसके बाद मुम्बई चले जाते हैं काम की तलाश में। यहां 15000 रूपये मिलते हैं। रहने और खाने की सुविधा अलग से। 30 साल उमर है हरीश की। अभी तक कुंवारे हैं।
निधीश ने बताया कि विदेशी सैलानी शाम तक धूप में सुस्ताते हैं। 800 से 1000 रूपये तक का खाना खाते हैं। शाम को चले जाते हैं। फिर शाम को ड्रिंक करते हैं, मस्ती मारते हैं।
हम भी समुद्र स्नान के लिए कूद पड़े समुद्र में |
जितना तुम्हारी महीने भर की तनख्वाह है उतना तो ये सैलानी एक दिन में खर्च कर देते होंगे। इस पर निधीश ने कहा-' अपने यहां सब करप्शन बहुत है।हर जगह तो करप्शन है। इसीलिये सब समस्याएं हैं।'
बात करते हुए हम लोगों का क्लास का समय हो गया। हम लोग वापस आ गए। समुद्र तट को सूरज भाई और सैलानियों के हवाले करके।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207164065513454
No comments:
Post a Comment