धीरेन्द्र केसरवानी |
रीवा के रहने वाले धीरेन्द्र 7 साल पहले जबलपुर आये थे। रांझी में रहते हैं। घूम-घूमकर बेंचते है सामान। 200 से 250 रूपये तक रोज कमा लेते हैं। सामान मांग के हिसाब से बेंचते हैं। कई ग्राहक नियमित हैं। कुछ लोग उधार भी लेते हैं। उधारी वसूलना भी एक बवाल है।
धीरेन्द्र सामान से लदी मोपेड लुढ़काते हुए चले जा रहे थे। मोपेड का इंजन रिछाई के पास बैठ गया। स्टार्ट नहीं हो रहा। अब आधारताल तक घसीटते हुए ले जाना पड़ेगा।
मोपेड जब जबलपुर आये थे तब खरीदी थी 6000 रूपये में। उस समय तक 6 साल चल चुकी थी। मतलब कुल उम्र 13 साल है मोपेड की। मोपेड के हाल देखकर लगा कि उसको धीरेन्द्र मोपेड की तरह कम दुपहिया ठेलिया की तरह ज्यादा प्रयोग करते हैं।
अंदाज था कि मरम्मत करानी है मोपेड के इंजन की लेकिन समय न मिलने के कारण करा नहीं पाये। हमने कहा कि पास की दुकान में दिखा लो। इस पर बोले धीरेन्द्र- 'अरे ये खराब कर देगा। आधारताल में ठीक कराएंगे। औजार होते तो हम खुद सुधार लेते।'
समय पर ठीक न कराने पर जिस सवारी पर हम चलते हैं तो बिगड़ जाने पर हमको ही उसको घसीटना पड़ता है।
बात करते-करते हम फैक्ट्री के गेट के पास आ गए थे। धीरेन्द्र वहां से करीब 4 किमी दूर आधारताल की तरफ चले गए मोपेड घसीटते हुए। हम गेट के अंदर फैक्ट्री में जमा हो गए।
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