अग्वाद का क़िला का वर्णन |
यह किला 1612 में बनाया गया। जहाजों को पानी देने के लिये बनाये इस किलें में 23.76 गैलन पानी जमा किया जा सकता थी। जहाजों के प्रकाश स्तम्भ के रूप में इसका उपयोग होता था। वहां दी गयी सूचना के अनुसार पहले प्रकाश का उत्सर्जन 7 मिनट में एक बार होता था। 1964 में 30 सेकेंड में एक बार होने लगा और फ़िर 1976 में बंद कर दिया गया।
किले पर पहुंचते ही अलग-अलग जगह खड़े होकर लोग धड़ाधड़ फ़ोटोबाजी में जुट गये। मोबाइल में कैमरे के साइड इफ़ेक्ट हैं यह कि अब हम लोग किसी चीज को देखते बाद में हैं, उसका फ़ोटो पहले खींचते हैं। फ़ोटो भी खींचते ही घर वालों, दोस्तों को फ़ार्वर्ड करते हैं और फ़िर मोबाइल में मेमोरी की समस्या होने पर डिलीट कर देते हैं।
राजीव कुमार के साथ अनूप शुक्ल |
अग्वाद के किले से निकलकर हम लोग अंजना बीच देखने गये। वहां पहुंचने तक शाम हो चली थी। लेकिन काम भर का उजाला बाकी था।
अंजना बीच पथरीली चट्टानों वाला बीच है। यहां रेत नहीं है। चट्टाने हैं बस। उनपर बैठकर, खड़े होकर फ़ोटो खिंचाकर चल देने वाला बीच। हमारे साथ के लोग नीचे बीच की चट्टानों पर उतरकर अपने साथियों के साथ कैमरा चमकाने लगे। हम ऊपर से ही नजारे देखने लगे। सूरज भाई अपनी दुकान समेटकर वापस जाने की तैयारी कर चुके थे। क्षितिज पर समुद का काला पानी और सूरज की लालिमा अलग-अलग नजर आ रही थी।
इलेनार (22) और आरोन (28) |
इलेनार के पीठ पर रखे बैग की तरफ़ इशारा करते हुये आरोन ने बताया कि यह बैग भी बना लेती है और यह बैग इसने ही बनाया है।
इसके पहले भी भारत आ चुका है आरोन, कुछ दिन पहले थाईलैंड भी गया था लेकिन इलेनार के साथ घूमने का यह पहला मौका है।
इलेनार और आरोन -प्यारा जोड़ा |
इसके बाद उसने कहा-’ हर जगह अच्छे-बुरे लोग होते हैं। यह अच्छी बात है कि हमको अभी तक सब लोग अच्छे ही मिले।’
हम लोगों के बारे में भी उसने तमाम सारे सवाल पूछे। रोजमर्रा के सामान कहां मिल सकते हैं इसके बार में जानकारी मांगी। हमको जैसा समझ आया हमने बताया। इसके बाद वे बाय-बाय करके चले गये। हम भी अपने साथियों की टोली में शामिल हो गये। वे सब बीच नीचे से ऊपर की ओर वापस आ रहे थे।
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