Friday, June 05, 2015

एक बार और जाल फेंक रे मछेरे

मेस से बाहर निकलते ही तीन लोग कदम ताल मुद्रा में मार्निंग वाक करते हुये दिखे। बायीं तरफ सूरज भाई आसमान पर किसी स्त्री के माथे पर बिंदिया सरीखे चमक रहे थे।जैसे होमगार्ड का सिपाही डंडा पटकते हुए चौराहे के रेहड़ी वालों को फुटाता है वैसे ही उजाला किरणों का डण्डा फटकारते हुए अन्धकार को भगा रहा था। अँधेरे का पूरा कुनबा 'भाग भाग बोस डी के सूरज आया' कहते हुये आसमान से तिडी- बिड़ी हो गया। कुछ किरणें झील के पानी में उत्तर कर छप्प छैयां करते हुए नहाने लगीं। झील का पानी उनकी संगत के एहसास मात्र से ऐसे चमकने लगा जैसे पूरी फेयर एन्ड लवली पोत ली हो चेहरे पर।


चाय की दूकान पर रमेश मिले। किसी के मोबाइल पर गाने सुनते हुए खुद ही बताने लगे कि उनके मोबाइल में भजन हैं। विदेशी देवियों के। 180 रूपये में 4 जीबी भजन मिलते हैं। कार्ड में भरवाओ तो 50 रूपये में मन चाहे भजन देख लो। सरकारें भले सब तक साफ़ पानी और शिक्षा पहुंचाने में असफल रही हों अश्लील फिल्मों के धंधे वालों की पहुंच आम आदमी तक है।

बिरसा मुंडा चौराहे पर चाय पी आज। चाय की दूकान सुबह 3 बजे शुरू होती है। 9 बजे तक चलती है। इसके बाद दूकानें खुल जाती हैं तो ठेलिया हटानी होती है। चाय वाला चाय बना रहा था, अदरख छील रहा था, पुड़िया दे रहा था, पैसे काट रहा था, हमसे बात कर रहा था और मुस्करा भी रहा था। मल्टीटास्कर। लोग कहते हैं नेपोलियन कई काम एक साथ करता था। सुबह 3 बजे उठकर चाय की ठेलिया लगाने वाले ये भाई नेपोलियन भले न हों लेकिन नेपोलियन से कम भी नहीं।


ग्लास धोने का काम करती महिला एक तसले के पानी में डुबो-डुबो कर ग्लास धो रही थी। ग्लास धुले पानी से ही अगली ग्लास भी धो रहीं थी। कमरे की हवा को कमरे में ही टहलाते एसी की तरह। दो ठेलिया आपस में जुडी थीं। फिर आगे रिक्शे से जुडी थीं। रिक्शे को चलाते हुये दो ठेलियों की दूकान हटा लेते हैं 9 बजे के बाद। दूकान लगाने के लिए पुलिस वालों को पैसा नहीं देना पड़ता। चाय-पानी में निपटा देते हैं।

एक बुजुर्ग ने 2/3 चाय मांगी। मतलब 2 चाय 3 ग्लास में। मतलब 66.67% चाय। मतलब फर्स्ट क्लास चाय। इस लिहाज से हम 10 सीजीपी आई वाली चाय पिए।


दुकान पर कुछ पान मसाले कागज में पाउच में थे। ज्यादातर प्लास्टिक पाउच में ही। सिगरेट खुली बेचना मना हो गया है। लेकिन ग्राहक मांगते हैं तो क्या करे दूकानदार। ग्राहक तो भगवान होता है। भगवान तो किसी भी कानून से ऊप्पर होता है। सेवा करनी पड़ती है।

सड़क पार जाती एक महिला को देखकर चाय पीते हुए एक हॉकर ने दुसरे से कहा-'मौसी जाय रहीं हैं। पाँव पर आओ।' उसने कोई रूचि नहीं दिखाई।हमें लगा कितने संस्कार विमुख होते जा रहे हैं लोग।

आगे कृषि विश्वविद्यालय में कृषि महोत्सव 2015 के अंतर्गत 'राज्य स्तरीय मछुआ सम्मेलन' की सुचना दिखी। कोई मछुआरा या डोंगी न दिखी। जिनका सम्मेलन यहां हो रहा था वे कहीं किसी नदी,झील,तालाब में मछली की तलाश में जाल डाले बैठे होंगे। यहां दीगर लोग उनके प्रतिनिधि के रूप में सम्मेलन में हाजिरी बजा रहे होंगे।

मुझे बुद्धिनाथ मिश्र की कविता याद आई:
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे
जाने किस मछली में बन्धन की चाह हो।


व्हीकल मोड़ से मुड़ते हुए एक महिला सर पर मिटटी के बर्तन धरे आती दिखी। सूरज भाई उसके लिए हवाओं की छन्नी से छानकर वी आई पी धूप सप्लाई कर रहे थे। यह लगा कि प्रकृति अपनी कायनात के सबसे अच्छे उत्पाद सबसे पहले मेहनतकश लोगों को ही देती है।

एक महिला साईकिल से सरपट चली जा रही थी। कहीं काम करती होगी। साइकिल चलाते हुए धोती-पेटीकोट एक दूसरे से अलग से हो जा रहे थे। पेटीकोट का नीचे का कुछ हिस्सा चेन में फंसकर नुच सा गया था। हम बगल से गुजरे तो महिला ने सशंकित निगाहों से देखा और साईकिल तेज कर ली। अपने आसपास को हमेशा सशंकित निगाहों से देखना अपने देश की आम कामकाजी महिला की नियति सी है। हमने साईकिल धीमी कर ली। महिला सरपट चली गयी आगे।

आगे रेलवे क्रासिंग बन्द था।हमने सोचा महिला वहां रुकेगी तो बात करेंगे उससे। लेकिन महिला साईकिल से उतरकर 20 /25 लोगों से आगे निकलते हुए सबसे आगे जाकर खड़ी हो गयी। ट्रेन भी फौरन आ गयी।फाटक खुलते ही वह पार हो गयी। पैडल मारते हुए चली गयी आगे। कामकाजी महिलाओं के पास फालतू बातों के लिए टेम नई होता।

कमरे पर लौटकर आये तो साढ़े सात बज गए थे। चाय मंगाई। पीते हुए यह पोस्ट कर रहे।

आपका दिन शुभ हो। मङ्गलमय हो। जय हो। विजय हो।

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