सुबह जब निकले तो सूरज भाई दिखे। गुडमार्निंग करते हुये देखा कि सूरज के दोनों तरफ़ बादल छाये थे। मानों उसकी आंखें बंद कर रखी हों और उसको बता रहे हों रोशनी इधर भेजो, उधर भेजो। सूरज को धृतराष्ट्र जैसा बना दिया हो। लेकिन सूरज देर तक बादलों के कब्जे में न रहा। अंधेरे को तिड़ी-बिडी करके आसमान पर चमकने लगा। पूरी कायनात को अपनी रोशनी से चमकाने लगा।
आज फ़िर वह बच्ची मिली जिससे कल मिले थे। आज सड़क के पार से उसने भी गुडमार्निंग भी की। अब उसका इंतजार रहता है। कभी और बातें होंगी।
व्हीकल मोड़ से आज खमरिया की तरफ़ मुड लिये। गोकुलपुर के एक स्टाप पर दो महिलायें बैठी बतिया रहीं थीं। फ़ोटो खैंची तो देखकर बोली बहुत बढिया है। फ़िर एक जन बोलीं चाय पिला दो। पास में कोई चाय की दुकान नहीं थी और हमारे पास फ़ुटकर पैसे नहीं थे सौ का नोट था। जो देते सो यही बताकर चल दिये आगे। यह सोचा कि कल से फ़ुटकर पैसे जरूर रखा करेंगे। कोई कहे तो चाय के पैसे तो दे ही सकें।
रांझी में थाने के पास चाय की दुकान पर चाय पी। दुकान मालिक वाल्मीकि प्रसाद मिश्र से बतियाये। 52 साल से दुकान लगा रहे हैं। बचपन में आये थे रीवां से जब 10-12 साल के थे। पिता बचपन में नहीं रहे। दो भाई हैं। पिता तब नहीं रहे जब मिसिर जी जब तीन साल के थे और भाई एक महीने का तब पिता नहीं रहे। किसी रिश्तेदार के साथ आये थे। अब 70 साल की उमर है। लेकिन चुस्त, दुरुस्त, चैतन्य।
बताया --"जब आये थे तो यहां सब जंगल था। यहां बिल्डिंगे बनी हैं वहां नाली में सुअर लोटते थे। सामने बीही का जंगल था। खमरिया भर था यहां। ये सब तो धन्ना सेठों की दुकानें हैं वो हमारे सामने बनीं। व्हीकल तो अभी बनी सन 73 में। थाना और स्टेट बैंक भी उसई के बाद बनीं।"
व्हीकल फ़ैक्ट्री बने 42 साल हो गये। उसको मिसिर बताये -’व्हीकल तो अभी बनीं।’ ऐसे ही कोई तारा अरबों वर्ष पुरानी पृथ्वी को देखकर कहता होगा -"जे छोकरिया तो अभै पैदा हुई कल हमारे सामने। देखो कित्ती खबसूरत है मोड़ी।"
मिसिर जी दुकान भले लगाते हैं यहां पर 20 एकड़ जमीन है रीवां में। अभी प्लाट खरीदा 20 लाख का। रहने को अपना मकान है जबलपुर में। एक बेटा है उसके तीन बच्चे हैं। लेकिन बेटा खुद कुछ ज्यादा करता नहीं। कभी-कभी एकाध घंटे दुकान पर बैठता है। हमने कहा -जो बाप का प्यार खुद नहीं मिला वो लड़के को तसल्ली से दे रहे हो।
फ़ोटो खैंचा तो देखकर खुश हुये। साथ का बच्चा बोला- मस्त आई है।
आगे खमरिया की तरफ़ निकले तो एक भाई जी मिले। साइकिल पर ढोलक लादे लिये जा रहे थे। बनाते हैं और खुद बेचते हैं। गांव-गांव जाते हैं। एक ढोलक 400 रुपये करीब की। आज कुंडम के लिये निकले थे। कुंडम मतलब 50 किमी। जब मिले तो 6 बजे थे। बोले - आठ बजे तक तक पहुंच जायेंगे।
साथ चलते हुये बतियाते रहे हम। खमरिया इस्टेट में सुबह डीएससी के जवानों को दौड़ते देखकर पूछा भाईजी ने- ये लोग दौड़ते क्यों हैं? हमने बताया -सेहत बनाते के लिये। दिन भर मेहनत नहीं कर पाते तो सुबह-शाम पसीना बहाते हैं। दौड़ते-धूपते हैं।
ये लोग दौड़ते क्यों हैं? इस सवाल से मुझे श्रीकांत वर्मा की हस्तक्षेप कविता की पंक्तियां याद आ गयीं:
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप -
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से -
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है -
मनुष्य क्यों मरता है?
बोले- हमारी तो जिन्दगी ही दौड़ धूप में गुजर गयी। 27 साल की उमर के आदमी के मुंह से जिन्दगी गुजर गयी सुनकर दुख हुआ। हमने कहा- हौसला रखो। बोले -फ़ौसले के सहारे ही तो जिन्दगी चल रही है।
आगे फ़िर चाय की दुकान पर हमने साथ चाय पी। बात की। पता चला चार बच्चे हैं हिकमत अली के। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव मिर्जापुर के रहने वाले हैं। पिता ने यही काम सिखाया उसी से गुजर-बसर कर रहे हैं। चार बच्चे हैं। एक बच्चा बीमार रहा। उसको पेशाब सही जगह से नहीं होती थी। प्राइवेट में इलाज कराया। दस हजार लग गये। अब कुछ ठीक है। लेकिन अभी फ़िर दो टांके खुल गये हैं। डाक्टर बोला है कि ले आओ देख लेंगे।
पत्नी भी बीमार रहती है। खाते ही लेटरीन होने की बीमारी है। चार बच्चे हैं। सब सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। हमने कहा- 27 साल की उमर में चार बच्चे? आपरेशन काहे नहीं करवाते? बोले जल्दी शादी हो गयी थी। अब आपरेशन करा दिया है बीबी का।
ढोलक पर बकरे या बकरी का चमड़ा चढ़ता है। बकरी की खाली मोटी होती है। लकड़ी का ढांचा बाहर से आता है। बाकी बनाने का काम खुद करते हैं।
चाय वाले के पास दूध नहीं था सो काली चाय ही पी। नाश्ता कराने का मन था हिकमत अली को लेकिन कुछ था नहीं दुकान पर। दस रुपये दिये कि आगे नाश्ता कर लेना। मुफ़्तिया माताजी को फ़ुटकर न होने के कारण चाय के पैसे न दे पाने का अफ़सोस खत्म हो गया।
लौटते में खमरिया के जंगल हरे-भरे पेड़ हिलते-डुलते हुये नमस्ते करते मिले। एक पेड़ अपनी डाल ऐसे जमीन से घुमाकर सटाये खड़े थे मानो अपनी मसल्स दिखा रहे हों।
बजरंग नगर की एक दुकान के बाहर एक कुत्ता फ़र्श पर गंदगी कर गया था। दुकान वाला एक कांच के टुकड़े को चम्मच की तरह इस्तेमाल करते हुये सावधानी से दुकान के सामने की गन्दी को बीच सड़क पर डाल रहा था। दुकान साफ़ कर रहा था। सड़क गंदी कर रहा था।
सड़क किनारे नलों में पानी आ रहा था। 6 से साढे सात तक सुबह आता है पानी और शाम को आधा घंटे। जगह-जगह प्लास्टिक की बाल्टियों , डब्बों में लोग नलों के नीचे पानी भरने में भरने में लगे हुये थे।
अले बाप ले। आथ बद गये। थुबह हो गयी। तलें फ़ैक्तली के लिये तैयाल होना है।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो। हौसला बना रहे।
फ़ेसबुक पर टिप्पणियां
आज फ़िर वह बच्ची मिली जिससे कल मिले थे। आज सड़क के पार से उसने भी गुडमार्निंग भी की। अब उसका इंतजार रहता है। कभी और बातें होंगी।
व्हीकल मोड़ से आज खमरिया की तरफ़ मुड लिये। गोकुलपुर के एक स्टाप पर दो महिलायें बैठी बतिया रहीं थीं। फ़ोटो खैंची तो देखकर बोली बहुत बढिया है। फ़िर एक जन बोलीं चाय पिला दो। पास में कोई चाय की दुकान नहीं थी और हमारे पास फ़ुटकर पैसे नहीं थे सौ का नोट था। जो देते सो यही बताकर चल दिये आगे। यह सोचा कि कल से फ़ुटकर पैसे जरूर रखा करेंगे। कोई कहे तो चाय के पैसे तो दे ही सकें।
रांझी में थाने के पास चाय की दुकान पर चाय पी। दुकान मालिक वाल्मीकि प्रसाद मिश्र से बतियाये। 52 साल से दुकान लगा रहे हैं। बचपन में आये थे रीवां से जब 10-12 साल के थे। पिता बचपन में नहीं रहे। दो भाई हैं। पिता तब नहीं रहे जब मिसिर जी जब तीन साल के थे और भाई एक महीने का तब पिता नहीं रहे। किसी रिश्तेदार के साथ आये थे। अब 70 साल की उमर है। लेकिन चुस्त, दुरुस्त, चैतन्य।
बताया --"जब आये थे तो यहां सब जंगल था। यहां बिल्डिंगे बनी हैं वहां नाली में सुअर लोटते थे। सामने बीही का जंगल था। खमरिया भर था यहां। ये सब तो धन्ना सेठों की दुकानें हैं वो हमारे सामने बनीं। व्हीकल तो अभी बनी सन 73 में। थाना और स्टेट बैंक भी उसई के बाद बनीं।"
व्हीकल फ़ैक्ट्री बने 42 साल हो गये। उसको मिसिर बताये -’व्हीकल तो अभी बनीं।’ ऐसे ही कोई तारा अरबों वर्ष पुरानी पृथ्वी को देखकर कहता होगा -"जे छोकरिया तो अभै पैदा हुई कल हमारे सामने। देखो कित्ती खबसूरत है मोड़ी।"
मिसिर जी दुकान भले लगाते हैं यहां पर 20 एकड़ जमीन है रीवां में। अभी प्लाट खरीदा 20 लाख का। रहने को अपना मकान है जबलपुर में। एक बेटा है उसके तीन बच्चे हैं। लेकिन बेटा खुद कुछ ज्यादा करता नहीं। कभी-कभी एकाध घंटे दुकान पर बैठता है। हमने कहा -जो बाप का प्यार खुद नहीं मिला वो लड़के को तसल्ली से दे रहे हो।
फ़ोटो खैंचा तो देखकर खुश हुये। साथ का बच्चा बोला- मस्त आई है।
आगे खमरिया की तरफ़ निकले तो एक भाई जी मिले। साइकिल पर ढोलक लादे लिये जा रहे थे। बनाते हैं और खुद बेचते हैं। गांव-गांव जाते हैं। एक ढोलक 400 रुपये करीब की। आज कुंडम के लिये निकले थे। कुंडम मतलब 50 किमी। जब मिले तो 6 बजे थे। बोले - आठ बजे तक तक पहुंच जायेंगे।
साथ चलते हुये बतियाते रहे हम। खमरिया इस्टेट में सुबह डीएससी के जवानों को दौड़ते देखकर पूछा भाईजी ने- ये लोग दौड़ते क्यों हैं? हमने बताया -सेहत बनाते के लिये। दिन भर मेहनत नहीं कर पाते तो सुबह-शाम पसीना बहाते हैं। दौड़ते-धूपते हैं।
ये लोग दौड़ते क्यों हैं? इस सवाल से मुझे श्रीकांत वर्मा की हस्तक्षेप कविता की पंक्तियां याद आ गयीं:
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप -
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से -
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है -
मनुष्य क्यों मरता है?
बोले- हमारी तो जिन्दगी ही दौड़ धूप में गुजर गयी। 27 साल की उमर के आदमी के मुंह से जिन्दगी गुजर गयी सुनकर दुख हुआ। हमने कहा- हौसला रखो। बोले -फ़ौसले के सहारे ही तो जिन्दगी चल रही है।
आगे फ़िर चाय की दुकान पर हमने साथ चाय पी। बात की। पता चला चार बच्चे हैं हिकमत अली के। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव मिर्जापुर के रहने वाले हैं। पिता ने यही काम सिखाया उसी से गुजर-बसर कर रहे हैं। चार बच्चे हैं। एक बच्चा बीमार रहा। उसको पेशाब सही जगह से नहीं होती थी। प्राइवेट में इलाज कराया। दस हजार लग गये। अब कुछ ठीक है। लेकिन अभी फ़िर दो टांके खुल गये हैं। डाक्टर बोला है कि ले आओ देख लेंगे।
पत्नी भी बीमार रहती है। खाते ही लेटरीन होने की बीमारी है। चार बच्चे हैं। सब सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। हमने कहा- 27 साल की उमर में चार बच्चे? आपरेशन काहे नहीं करवाते? बोले जल्दी शादी हो गयी थी। अब आपरेशन करा दिया है बीबी का।
ढोलक पर बकरे या बकरी का चमड़ा चढ़ता है। बकरी की खाली मोटी होती है। लकड़ी का ढांचा बाहर से आता है। बाकी बनाने का काम खुद करते हैं।
चाय वाले के पास दूध नहीं था सो काली चाय ही पी। नाश्ता कराने का मन था हिकमत अली को लेकिन कुछ था नहीं दुकान पर। दस रुपये दिये कि आगे नाश्ता कर लेना। मुफ़्तिया माताजी को फ़ुटकर न होने के कारण चाय के पैसे न दे पाने का अफ़सोस खत्म हो गया।
लौटते में खमरिया के जंगल हरे-भरे पेड़ हिलते-डुलते हुये नमस्ते करते मिले। एक पेड़ अपनी डाल ऐसे जमीन से घुमाकर सटाये खड़े थे मानो अपनी मसल्स दिखा रहे हों।
बजरंग नगर की एक दुकान के बाहर एक कुत्ता फ़र्श पर गंदगी कर गया था। दुकान वाला एक कांच के टुकड़े को चम्मच की तरह इस्तेमाल करते हुये सावधानी से दुकान के सामने की गन्दी को बीच सड़क पर डाल रहा था। दुकान साफ़ कर रहा था। सड़क गंदी कर रहा था।
सड़क किनारे नलों में पानी आ रहा था। 6 से साढे सात तक सुबह आता है पानी और शाम को आधा घंटे। जगह-जगह प्लास्टिक की बाल्टियों , डब्बों में लोग नलों के नीचे पानी भरने में भरने में लगे हुये थे।
अले बाप ले। आथ बद गये। थुबह हो गयी। तलें फ़ैक्तली के लिये तैयाल होना है।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो। हौसला बना रहे।
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- Renu Trivedi Mishra good morning smile इमोटिकॉन
- अविनाश वाचस्पति मुन्नाभाई ##अंत
न होता स्मार्ट फ़ोन
न सोशल मिडिया ...और देखें - कुलदीप वर्मा आप भारत के समाज के उस पहलु से अवगत कराते हैं जो कही मैं भी जी रहा हूँ आप भी जी रहे हैं। 90% ज़िन्दगी यही हैं।
कहि कोई ऐसा ही चाय वाला या ढोलकी वाला हिकमत अली हमारी ज़िन्दगी की कहानी का भी हिस्सा हैं। ...और देखें - Vijay Wadnere ...फ़ौसले के सहारे हिकमत अली की जिंदगी चल रही है...
और हमारे सहारे ये सुधारकार्य!!...और देखें - अनूप शुक्ल जय हो। धन्यवाद। सुधार कार्य का सिलसिला जारी रहे। smile इमोटिकॉन
- Mohit Malik आपका भी दिन शुभ हो. smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल हो गया। smile इमोटिकॉन
- राजेश सेन जोरदार !!
- अनूप शुक्ल आभार। smile इमोटिकॉन
- Ram Singh लेखा लेखी की है नही देखा देखी की ही है बात
अनूप शुक्ल पहुंचा रहे अपने अपनों की सोगात
गोकल पुर , राझीं ,खमरिया के लोगन के प्यारे...और देखें - अनूप शुक्ल बहुत सुंदर लिखा। smile इमोटिकॉन
- Mithlesh Nagar आपकी पोस्ट का हर सुबह इन्तजार रहता है
- अनूप शुक्ल आभार है । smile इमोटिकॉन
- Nirmal Gupta बहुत सुंदर हस्तक्षेप .
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Parveen Goyal Good morning !! Anoop sir...
- अनूप शुक्ल अब गुड इवनिंग हुई। smile इमोटिकॉन
- Nita Kumar · Sujata Sharma और 2 others के मित्रHumne to subah ko kbhi is najar se dekha hi nahi, bahut khub.
- अनूप शुक्ल पोस्ट पसन्द करने को आभार। smile इमोटिकॉन
- Mazhar Masood सब शुभ हो यह कामना है लेखनी की तुतलाहट अच्छी लगती है ,
- अनूप शुक्ल smile इमोटिकॉन जय हो।
- Sp Singh So natural very pleasant.
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल smile इमोटिकॉन
- Arun Chouksey सुंदर आप का भी दिन शुभ हो ।
- अनूप शुक्ल हो गया। आभार। smile इमोटिकॉन
- महेश मनु · Vineet Kumar और 18 others के मित्रआपकी साईकल यात्रा किसी Travoulage से कम नही. अनुप जी की अनुपम vrittant
- अनूप शुक्ल धन्यवाद महेश जी। smile इमोटिकॉन
- RB Prasad आप की रचना मिला देती है खुद से खुद को .सारे पात्र अपने आस पास ही तो हैं. फर्क इतना है कि हम देख कर भी भूल जाते हैं और आप बतिया कर याद दिला देते हैं. तुतलाहट तो कमाल की है ही.
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। टिप्पणी कमाल की। smile इमोटिकॉन
- Ram Kumar Chaturvedi चाहे कुछ भी होआयुध निर्माणी वालों के दिल और दिमाग से फैक्ट्री निकलती ही नहीं है।हमें रिटायर हुये नौ साल होगये हैं पर दोपहर का खाना खाने से पहले हूटर सुनने का मन होता है।
- अनूप शुक्ल सही है। सुनने की आदत पड़ जाने न सुनने को मिले तो अखरता है। smile इमोटिकॉन
- Jyoti Tripathi अंकल,और सब तो बेहतरीन है पर दो दिनों से आपकी पोस्ट में थोडी तुतलाहट का राज ?
- अनूप शुक्ल वो ऐथेहि है। थीत हो दाएदी जल्दी ही। smile इमोटिकॉन
- Satish Tewari ऐसी बेजोड़ लेखनी और लेखक को शत शत नमन
- Alok Ranjan sundar vrataant, balmik mishra ne prabhavit kiya... shubh din sir
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Satish Tewari सुकुल जी तो ऐस समा बांध देते है कि जैसे सभी दृश्य जैसे TV पर देख रहे हो, धन्य हो दयालु
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Mahesh Shrivastava aaj rasta badal gaya , chehre badal gaye jakhmo ka raag badlato , peeda ke sur badal gaye
- अनूप शुक्ल smile इमोटिकॉन हां, आज खमरिया की तरफ निकल गए थे।
- Shiksha Anuresh Bajpai आपका दिन शुभ हो । wink इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल हो गया। धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Indra Awasthi Zabardast -
- अनूप शुक्ल सच? smile इमोटिकॉन
- Somitra Sanadhya It's a joy to read your flowing, yet simple description of everyday life. I had no plan earlier, but now I have decided to visit iiit-dm sometime. Hopefully we will meet before this year ends. Thanks for your posts. smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल आइये मिलेंगे I IIT Dumna में।यह खुशनुमा एहसास है कि आपको मेरा लिखा पसंद आता है । धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Manoj Yadav Sir hindi typing to hume aati nhi lekin aapki saral hindi hume bhot bhati hai.ek samay tha ki kewal door darshan tha aur usme hume bhot ruchi thi. Aapki cycle ki rochak anubhutiya hume phir se balak bana deta hain.just like u may have read cycle ki sawari and nar se narayan in school dsys.
- Anand Kumar bahoot badhiya sir. aaj phir ek naye anjan chehare ki anjan kahani janne ko mila. suprabhat aur dhanyawad sir
कुलदीप शर्मा अत्रि कांच के टुकड़े की चम्मच
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