तेरे मेरे बीच ये
कैसा बन्धन है अन्जाना।
मसाला चबाते हुए मोबाइल धारी के मोबाइल से यही गाना बज रहा था। गाना सुनते हुए वह उठा और बगल की दूकान से बिस्कुट का पैकेट ले आया। खोलकर आसपास के कुत्तों के लिए जमीन पर डालने लगा। कुत्ते जमीन पर पड़े बिस्कुट अपनी पूंछ हिलाते हुए खाने लगे। पूँछ हिलाने के बहाने वे शायद कहना चाहते हों -'ये दिल मांगे मोर।'
दूकान पर एक आदमी समोसे के लिए आलू काट रहा था। छिलके समेत। हमने टोंका कि छिलके सहित क्यों काट रहे। छील क्यों नहीं लेते। वह बोला-'छिलके में विटामिन होते हैं। छिलका निकालना अमीरों के चोंचले हैं।'
उनकी बात का समर्थन करते हुए जलेबी बनाते हुए भट्ठी पर तैनात भाईजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा-'आज लोगों को गैस की बीमारी इसीलिये हो रही है क्योंकि सब लोग गैस पर बना खाना खाते हैं।' भट्ठी में उनकी लकड़ी का चैला सुलग रहा था। लकड़ी में ही सब सामान बनाते हैं वो। आठ रुपये किलो आती है लकड़ी आज के दिन।
35 साल से दुकान है उनकी। बताया कि फैक्ट्रियों में लोग अब रहे कहाँ सब खाली हो गयीं। लोग रिटायर हो गए। नई भर्ती हुई नहीं।इस बीच समोसा काटने वाले भाई जी ने बयान जारी किया कि हम सब स्लो प्वाइजन तो खा ही रहे हैं। सब्जी में, अन्न में सबमें तो कीट नाशक मिले हैं।
जीआईएफ के मेन गेट के सामने की पुलिया पर कुछ फैक्ट्री खुलने के इंतजार में बैठे थे। गेट खुले तो ये अंदर घुसें। फैक्ट्री खुलने के एक घण्टा पहले गेट पर हाजिर हैं ड्यूटी के लिए। है कोई अखबार इसका नोटिस लेने वाला ? इस कर्तव्य परायणता की चरचा की फुर्सत कहां मीडिया को। Amit Chaturvedi का चतुर्वेदी चैनल भी दुनिया भर की खबर कवर करने में व्यस्त रहता है। अपनी खबर सुनाने की फुरसत ही नहीं उसको।
पुलिया पर कुछ बच्चियां बैठी थीं। एक बच्ची हवा में उड़ते सफेद आकृति को उचककर पकड़ने की कोशिश कर रही थी। हर बार वह आकृति इधर-उधर होती जाती थी।बच्ची का उचककर उसको पकड़ने की कोशिश जारी थी।
कल शाम को साइकिल चलाने के लिए निकले। खमरिया के आगे अँधेरे में 'कृपया धीरे चलें' का बोर्ड लगा था। हमको भिड़ने के पहले तक दिखा नहीं तो उससे जा भिड़े। भिड़ने के ऐन पहले कुछ आभास सा हुआ तो ब्रेक मार दिए। फिर भी भिड़ तो गए ही। हैंडल 30 डिग्री करीब मुड़ गया। उसको सीधा करके चले तो गाड़ी खटरखट करती रही। ब्रेक भी लगना बन्द। आगे कुछ देर तक पैरों को ब्रेक के रूप में प्रयोग किया गया।
आगे मोड़ पर एक साइकिल की दुकान पर दिखाया। दूकान पर अँधेरा था। चाँद की रौशनी में साईकिल मेकेनिक ने ब्रेक ठीक किये। खटरखट खत्म की। हिदायत भी दी की इसको दूकान पर दिखा लेना। पैसे मांगे पांच रूपये।
पांच रूपये फुटकर थे नहीं। हमने कहा अभी चाय की दुकान से आते हैं फुटकर लेकर। उसने कहा -'हाँ ले आओ। चाय,पान, बीड़ी, सिगरेट ले लेना। छुट्टे मिल जाएंगे।' साइकिल मेकेनिक को यह भरोसा था कि हम चाय पीते हैं तो पान बीड़ी सिगरेट तो खाते ही होंगे। यह कुछ इस तरह का भरोसा है जैसे आम लोग धारणा रखते हैं कि आदमी सरकारी नौकरी करता है तो ऊपर की कमाई तो करता ही होगा।
चाय की दूकान पर चाय वाले से बोले चाय के पैसे रख लो। पांच रूपये दे दो। बाकी बाद में दे देना। चायवाला कत्था गर्म कर रहा था। बोला-'बहुत जरूरी काम कर रहे हैं। जरा रुक जाइए।'
जरूरी काम करके उसने पांच रूपये दिए और फिर बढ़िया चाय। साइकिल फर्राटे से चल रहे थी।लेकिन हमने कसम खाई वहीं चाय की दूकान पर कि अब रात में साइकिल न चलाएंगे।
टेलीविजन बता है कि 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' की कमाई सौ करोड़ पार हो गयी। अखबार कह रहा है कि प्रदेश की 'बैकवर्ड रीजन ग्रांट फंड' योजना के तहत चार हजार संविदा कर्मियों की नौकरी जुलाई से खत्म हो जायेगी। पता नहीं इन खबरों का आपस में कोई सम्बन्ध है कि नहीं। लेकिन चार हजार जिन लोगों की नौकरी जायेगी उनके परिवार तो प्रभवित ही होंगें जिनकी नौकरी गयी।
एक और खबर है अख़बार में। राजगढ़ की पंचायत पड़ाना के जितेंद्र गुर्जर के पिता मवेशी चराते थे। उनको भी दिन भर मजूरी करनी पड़ती थी। रात में पढ़ाई करते थे। अब वे पुलिस सेवा में सब इंस्पेक्टर के पद पर चुने गए।
खबर पढ़कर यही लगा कि मेहनत और लगन तमाम साधनों की तमाम कमियों को पूरा करके सफलता की मंजिल तक पहुंचा देती हैं। है न !
सप्ताह की शुरुआत आपकी चकाचक हो। मजेदार हो। जय हो।
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