सुबह सूरज भाई दिखे नहीं आज। बादलों की आड़ में सुबह की नींद -मलाई मार रहे होंगे। हमने भी कहा कल्लेव मजे थोड़ी देर और। कब तक सो्ओगे? अभी किरणें आती होंगी। हिलाडुलाकर जगा देंगी -पापा, चलो जल्दी से धरती पर। वहां कलियां, फ़ूल, भौंरे मेरा वेट कर रहे होंगे। क्या पता किरण ने किसी कली से वायदा किया हो -कल जब मैं आऊं तब ही खिलना मेरे सामने। मैं तुमको फ़ूल बनते देखना चाहती हूं। सूरज भी कुनमुनाकर उठे होंगे क्योंकि थोड़ा आगे जाने पर देखा कि आसमान उजाले का हूटर बजाते हुये हल्ला मचा रहा था- सावधान, होशियार, खबरदार अंधकार का संहार करने वाले, प्रकाश का पोषण करने वाले समस्त संसार के जीवन के प्रतीक श्री 1008 सूरज महाराज पधार रहे हैं।
आगे वह रोज सुबह दिखने वाली महिला मिली। बात हुई। पता चला कि मुंबई की किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करती थी। शादी के बाद जबलपुर रहना हुआ। पति वकील है। मूलत: बिहार की रहने वाली है। कल जो लिखा था उसके बारे में वह दिखाया। उसकी सुबह की घुमाई की तारीफ़ भी। बाद में यह सोचा कि वह महिला मुम्बई की नौकरी छोड़कर यहां जबलपुर में फ़िर से पढ़ाई/रिसर्च कर रही है। मातृसत्तात्मक व्यवस्था होती तो उसका पति मुम्बई में कोई काम करता मार्निंग वाक कर रहा होता।
सुबह-सुबह पहाड़ की तलहटी में रहने वाली औरतें नहाने के लिये राबर्टसन लेक की तरफ़ जा रहीं थी। आज जाकर देखा तो झील के बगल में छोटा सा तालाब बना है। काई, पत्ते, जलकुम्भी और अन्य गंदगी से पटे हुये तालाब में जैसे झील ने थोड़ा पानी उलीच दिया हो- लेओ तुम भी मजे करो। उसी में कामगार महिला-पुरुष नहा कपड़े धो रहे थे, नहा रहे थे।
मोड़ पर बैठे लोगों से बात हुई। पता चला कि झील के आसपास बने सब घर अवैध हैं। लोग आये, ले-देकर जमीन पर कब्जा किया। बस गये। स्थानीय नेताओं ने भी अपना वोटबैंक बनाने के लिये आम आदमी का सहयोग किया। पहले झील को सिकोड़ा, खतम करने की कगार पर लाये अब फ़िर झील बचाने के लिये आंदोलन होगा। फ़िर मेराज फ़ैजाबादी का शेर याद आया:
अतिक्रमण का वैसे देखा जाये तो अतिक्रमण की शुरुआत तो दुनिया बनने से ही हुई। बिग बैंग सिद्धांत की माने तो एक बिन्दु से शुरु होकर तारे, आकाशगंगाये, ग्रह, नछत्र, ब्लैक होल, धूमकेतु सब ब्रह्मांड में पसरते जा रहे हैं। इन लोगों ने किस नगर निगम से अपने लिये नक्शा पास कराया है।
पहाड़ की तरफ़ गये। देखा एक आदमी हाथ के सहारे रोटिया बना रहा था। आटे को दोनों हाथों की थपकियों के वात्सल्य से बड़ा करते हुये। बताया कि मोटी रोटी का स्वाद अच्छा होता है। लोग इसको सोंधी रोटी कहते हैं। लेकिन सोंधी रोटी की रचना प्रक्रिया कितनी कष्टकर है। घर से विस्थापित होना, चकला बेलन का अभाव और भी तमाम कष्ट। बगल के चूल्हे में मेरे सामने एक महिला दो बटलोई में पानी सर पर रखे वहां आई। पानी भरी बटलोई जमीन पर रखी और संग की दूसरी औरत के साथ खाना बनाने में जुट गयी। दूसरी औरत सब्जी काटकर उसको धो रही थी।
हम फ़ोटो खींचकर उनसे बतिया रहे थे कि सड़क से एक आदमी ने मुझे बुलाया। उसने मुझे पत्रकार समझकर सूचना दी - अभी-अभी व्हीकल मोड़ पर एक एक्सीडेंट हो गया है। एक आदमी मर गया। दूसरा सीरियस है। व्हीकल मोड़ पास ही है। मैं उधर की तरफ़ चल दिया।
वहां देखा कि एक बुजुर्ग आदमी पेट के बल औंधा पड़ा था। लाश में तब्दील हुआ। सड़क किनारे था। पास ही मझोले ट्रुक के निशान थे। आदमी के मुंह और सर से निकला खून जमीन में फ़ैला हुआ था। देखकर लगा कि आदमी ने गिरने पर दोनों हाथ से जमीन पर रुकने की कोशिश की थी। पैरों के साधारण कपड़े के जूते एक दूसरे से दस-बीस मीटर दूर गिरे पड़े थे।
लोगों ने बताया कि व्हीकल से 10-15 साल पहले रिटायर हुये थे। रोज निकलते थे। बात करते थे। बड़े अनुशासित थे। पास की साइकिल की दुकान पर बैठकर बाते करते थे।
सड़क पर जिस तरह ट्रुक के निशान थे उससे ऐसा लग रहा था कि ट्र्क डाइवर या तो नशे में रहा होगा या फ़िर नींद का झोंका आया होगा। स्टियरिंग बहका होगा और संभलते-संभलते एक आदमी को निपटाकर भाग गया होगा। आगे जाकर शायद अफ़सोस भी किया होगा।
यह अफ़सोस कुछ ऐसा ही रहा होगा जैसा ताकत के नशे में डूबे तमाम देश छोटे-छोटे देशों को बरबाद करके करते होंगे। अरे गलती हुई, बुरा हुआ, समझने में चूक हुई। अमेर्रिका अफ़गानिस्तान को बरबाद करता, ईराक को तबाह करता है और न जाने किन-किन देशों में क्या-क्या करता है और फ़िर आहिस्ते से अफ़सोस पत्र जारी करके दूसरे देश को बरबाद करने के लिये निकल लेता है। ताकत के नशे और सबसे आगे बने रहने की हवस की नींद में डूबा मुल्क गैर इरादतन यह सब करता रहता है।
चाय की दुकान पर हरिराम मिले। 70 पार हरिराम जीसीएफ़ के सर्वेन्ट्स क्वार्टर में रहते हैं। शर्मा जी घर में। बहू शर्मा जी के घर का काम करती है। हरिराम लान में पत्तियां बीन देते हैं। पहले ठेला चलाते थे। चार पहिये वाला। अब थक जाते हैं सो नहीं चलाते। अब कभी-कभी फ़ल तोड़कर बेंचते हैं। एक दिन बेल का फ़ल गिरा घुटने पर तो अब तक दहकता है घुटना। हल्दी लगाने से कुछ आराम है।
शर्मा जी भी दो हैं । पहले वाले शर्मा जी गैया वाले शर्मा जी थे। लड़के की शादी हुई तो 600 रुपये दिये हरिराम को। शादी बाहर हुई नहीं तो और मिलते। अब दूसरे वाले शर्मा जी रहते हैं।
हरिराम का बेटा व्हीकल में ठेकेदारी लगा है। खुद की नौकरी भी लेबरी में लगने वाली थी लेकिन माथे में जो लिखा था वही हुआ। नहीं लगी। जानकारी नहीं थी।
छतरपुर के बक्सुआ के रहने वाले हरिराम ने बताया कि वहां बाहर की कम्पनी को ठेका मिला है खदान की खुदाई का। जो मजूर काम करते हैं उनकी नंगे करके चेकिग होती है। सब कपड़ा हिला के देखत हैं कि कहूं कछु सामान लै तो नाय जात। जंगल हैं सब। लोग सागौनी (सागौन की लकड़ी ) जलाउत हते। अब बैन हुई गयी। बक्सुआ में खूब प्राइवेट फ़क्ट्रियां हैं।
घर है बक्सुआ में हरिराम का। तीस हाथ लम्बा। डबल चिनाई की दीवाल वाला। भाई अकेला है। सब लड़कियन की शादी कद्दई। अब परे-परे खात है। सात पसेरी अनाज मिलत है, शक्कर और सब सामान।
हरिराम की तीन लड़कियां थी। एक बेटा। बेटे की चार लड़कियां। खानदान में इतनी बेटियां होने का आश्चर्य युक्त अफ़सोस हरिराम की बात से पता चल रहा था।
बोले- जब पैसा हो जाते हैं तो दारु भी पी लेते हैं। दूसरे लोग छिपाउत हैं। हम छिपाउत नाई हैं। जब कभी पैसा हुई जात हैं तब पियत हैं।
हरिराम से बात करके कमरे पर आ गये। आज के लिये इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
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आगे वह रोज सुबह दिखने वाली महिला मिली। बात हुई। पता चला कि मुंबई की किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में काम करती थी। शादी के बाद जबलपुर रहना हुआ। पति वकील है। मूलत: बिहार की रहने वाली है। कल जो लिखा था उसके बारे में वह दिखाया। उसकी सुबह की घुमाई की तारीफ़ भी। बाद में यह सोचा कि वह महिला मुम्बई की नौकरी छोड़कर यहां जबलपुर में फ़िर से पढ़ाई/रिसर्च कर रही है। मातृसत्तात्मक व्यवस्था होती तो उसका पति मुम्बई में कोई काम करता मार्निंग वाक कर रहा होता।
सुबह-सुबह पहाड़ की तलहटी में रहने वाली औरतें नहाने के लिये राबर्टसन लेक की तरफ़ जा रहीं थी। आज जाकर देखा तो झील के बगल में छोटा सा तालाब बना है। काई, पत्ते, जलकुम्भी और अन्य गंदगी से पटे हुये तालाब में जैसे झील ने थोड़ा पानी उलीच दिया हो- लेओ तुम भी मजे करो। उसी में कामगार महिला-पुरुष नहा कपड़े धो रहे थे, नहा रहे थे।
मोड़ पर बैठे लोगों से बात हुई। पता चला कि झील के आसपास बने सब घर अवैध हैं। लोग आये, ले-देकर जमीन पर कब्जा किया। बस गये। स्थानीय नेताओं ने भी अपना वोटबैंक बनाने के लिये आम आदमी का सहयोग किया। पहले झील को सिकोड़ा, खतम करने की कगार पर लाये अब फ़िर झील बचाने के लिये आंदोलन होगा। फ़िर मेराज फ़ैजाबादी का शेर याद आया:
पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेचना
फ़िर जलते हुये शहरों में पानी बेचना।
अतिक्रमण का वैसे देखा जाये तो अतिक्रमण की शुरुआत तो दुनिया बनने से ही हुई। बिग बैंग सिद्धांत की माने तो एक बिन्दु से शुरु होकर तारे, आकाशगंगाये, ग्रह, नछत्र, ब्लैक होल, धूमकेतु सब ब्रह्मांड में पसरते जा रहे हैं। इन लोगों ने किस नगर निगम से अपने लिये नक्शा पास कराया है।
पहाड़ की तरफ़ गये। देखा एक आदमी हाथ के सहारे रोटिया बना रहा था। आटे को दोनों हाथों की थपकियों के वात्सल्य से बड़ा करते हुये। बताया कि मोटी रोटी का स्वाद अच्छा होता है। लोग इसको सोंधी रोटी कहते हैं। लेकिन सोंधी रोटी की रचना प्रक्रिया कितनी कष्टकर है। घर से विस्थापित होना, चकला बेलन का अभाव और भी तमाम कष्ट। बगल के चूल्हे में मेरे सामने एक महिला दो बटलोई में पानी सर पर रखे वहां आई। पानी भरी बटलोई जमीन पर रखी और संग की दूसरी औरत के साथ खाना बनाने में जुट गयी। दूसरी औरत सब्जी काटकर उसको धो रही थी।
हम फ़ोटो खींचकर उनसे बतिया रहे थे कि सड़क से एक आदमी ने मुझे बुलाया। उसने मुझे पत्रकार समझकर सूचना दी - अभी-अभी व्हीकल मोड़ पर एक एक्सीडेंट हो गया है। एक आदमी मर गया। दूसरा सीरियस है। व्हीकल मोड़ पास ही है। मैं उधर की तरफ़ चल दिया।
वहां देखा कि एक बुजुर्ग आदमी पेट के बल औंधा पड़ा था। लाश में तब्दील हुआ। सड़क किनारे था। पास ही मझोले ट्रुक के निशान थे। आदमी के मुंह और सर से निकला खून जमीन में फ़ैला हुआ था। देखकर लगा कि आदमी ने गिरने पर दोनों हाथ से जमीन पर रुकने की कोशिश की थी। पैरों के साधारण कपड़े के जूते एक दूसरे से दस-बीस मीटर दूर गिरे पड़े थे।
लोगों ने बताया कि व्हीकल से 10-15 साल पहले रिटायर हुये थे। रोज निकलते थे। बात करते थे। बड़े अनुशासित थे। पास की साइकिल की दुकान पर बैठकर बाते करते थे।
सड़क पर जिस तरह ट्रुक के निशान थे उससे ऐसा लग रहा था कि ट्र्क डाइवर या तो नशे में रहा होगा या फ़िर नींद का झोंका आया होगा। स्टियरिंग बहका होगा और संभलते-संभलते एक आदमी को निपटाकर भाग गया होगा। आगे जाकर शायद अफ़सोस भी किया होगा।
यह अफ़सोस कुछ ऐसा ही रहा होगा जैसा ताकत के नशे में डूबे तमाम देश छोटे-छोटे देशों को बरबाद करके करते होंगे। अरे गलती हुई, बुरा हुआ, समझने में चूक हुई। अमेर्रिका अफ़गानिस्तान को बरबाद करता, ईराक को तबाह करता है और न जाने किन-किन देशों में क्या-क्या करता है और फ़िर आहिस्ते से अफ़सोस पत्र जारी करके दूसरे देश को बरबाद करने के लिये निकल लेता है। ताकत के नशे और सबसे आगे बने रहने की हवस की नींद में डूबा मुल्क गैर इरादतन यह सब करता रहता है।
चाय की दुकान पर हरिराम मिले। 70 पार हरिराम जीसीएफ़ के सर्वेन्ट्स क्वार्टर में रहते हैं। शर्मा जी घर में। बहू शर्मा जी के घर का काम करती है। हरिराम लान में पत्तियां बीन देते हैं। पहले ठेला चलाते थे। चार पहिये वाला। अब थक जाते हैं सो नहीं चलाते। अब कभी-कभी फ़ल तोड़कर बेंचते हैं। एक दिन बेल का फ़ल गिरा घुटने पर तो अब तक दहकता है घुटना। हल्दी लगाने से कुछ आराम है।
शर्मा जी भी दो हैं । पहले वाले शर्मा जी गैया वाले शर्मा जी थे। लड़के की शादी हुई तो 600 रुपये दिये हरिराम को। शादी बाहर हुई नहीं तो और मिलते। अब दूसरे वाले शर्मा जी रहते हैं।
हरिराम का बेटा व्हीकल में ठेकेदारी लगा है। खुद की नौकरी भी लेबरी में लगने वाली थी लेकिन माथे में जो लिखा था वही हुआ। नहीं लगी। जानकारी नहीं थी।
छतरपुर के बक्सुआ के रहने वाले हरिराम ने बताया कि वहां बाहर की कम्पनी को ठेका मिला है खदान की खुदाई का। जो मजूर काम करते हैं उनकी नंगे करके चेकिग होती है। सब कपड़ा हिला के देखत हैं कि कहूं कछु सामान लै तो नाय जात। जंगल हैं सब। लोग सागौनी (सागौन की लकड़ी ) जलाउत हते। अब बैन हुई गयी। बक्सुआ में खूब प्राइवेट फ़क्ट्रियां हैं।
घर है बक्सुआ में हरिराम का। तीस हाथ लम्बा। डबल चिनाई की दीवाल वाला। भाई अकेला है। सब लड़कियन की शादी कद्दई। अब परे-परे खात है। सात पसेरी अनाज मिलत है, शक्कर और सब सामान।
हरिराम की तीन लड़कियां थी। एक बेटा। बेटे की चार लड़कियां। खानदान में इतनी बेटियां होने का आश्चर्य युक्त अफ़सोस हरिराम की बात से पता चल रहा था।
बोले- जब पैसा हो जाते हैं तो दारु भी पी लेते हैं। दूसरे लोग छिपाउत हैं। हम छिपाउत नाई हैं। जब कभी पैसा हुई जात हैं तब पियत हैं।
हरिराम से बात करके कमरे पर आ गये। आज के लिये इतना ही। बाकी फ़िर कभी।
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- Gautam Kumar मातृसत्तात्मक व्यवस्था : सिर्फ कोरी कल्पना ।
क्या किसी देश में ऐसी व्यवस्था है सर जी ....????? - अनूप शुक्ल कई समाजों में थी यह व्यवस्था। अभी भी कुछ जगह लागू है व्यवस्था।
- Neeraj Mishra आपको पढ़कर जो तसल्ली मिलती है वो बयां करना मुश्किल है.. मैं उस पीढ़ी से हूँ, जिसने बारहवीं तक की पढ़ाई सरस्वती शिशु मंदिर जैसे स्कूल से की.. फिर अचानक से इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेने चले गए.. भागमभाग.. दोनों माहौलों में बिल्कुल अलग महक.. ऐसा लगने...और देखें
- अनूप शुक्ल बहुत प्यारी टिप्पणी। smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल smile इमोटिकॉन
- Shiksha Anuresh Bajpai इतने लम्बे पोस्ट में एक मिनट भी ऊबन नहीं होती । वरना अधिकतर बडे लेख पहली लाइन पढने के बाद ही आंखे लेख का अंत तलाश करने लगती हैं ।
- अनूप शुक्ल क्या बात है smile इमोटिकॉन
- Virendra Bhatnagar सोते सूर्य को नमस्कार कर जगाने से शुरु होकर कामगार स्ञी- पुरुषों के तलैया स्नान और विस्थापितों की रसोई का वर्णन हमेशा की तरह रोचक लगा लेकिन एक बुज़ुर्ग व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत ने अत्यन्त दुखद एहसास से भर दिया। सुबह के समय ड्राइवरों के ...और देखें
- अनूप शुक्ल आपको याद होगा कि अपने यहां एच ओ गुप्ता एडिशनल डी जी ओ ऍफ़ थे। वे 59 साल के जीएम को भी बेटा बोलते थे। इस लिहाज से हम बच्ची कहते थे। है भी वैसा ही भाव। लेकिन मुलाकात होने के बाद लगा यही सम्बोधन ठीक होगा। smile इमोटिकॉन
- Ram Singh अनूप शुक्ल जी कवियाते कवियाते छायवादी होते चले गुऐ । प्रकृति के पापा सूरज के उदय का मानवीकरण । नए बिम्ब - प्रतिबिंब , उमाऐं , रूपक सभी रोचकता के साथ प्रस्तुत की गई है।
महिला सशक्तिकरण की दाल बघार देते लेखक , राबर्टसन लेक पर हारे - दुखियारों ...और देखें - अनूप शुक्ल बहुत सुंदर प्रतिक्रिया। smile इमोटिकॉन
- Suraj P. Singh bahut sundar... suraj ke bimb adbhut..
- अनूप शुक्ल धन्यवाद।
- अनूप शुक्ल और हम आपके आभारी। smile इमोटिकॉन
- राजेश सेन नींद मलाई ...किरणों का फूल-भौरों से वादा...मातृसत्तात्मक व्यवस्थता....बेहतरीन ! (और हाँ हादसे में मृतक को हमारी शोक-संवेदना !)
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Ajai Rai Adbhut lekhan
- अनूप शुक्ल धन्यवाद । smile इमोटिकॉन
- Rekha Srivastava din to shubh ho gaya.
- अनूप शुक्ल वाह। बधाई। smile इमोटिकॉन
- Devendra Yadav साहित्यिक विधाओं से सजी धजी पोस्ट ज़माने की जमीनी हकीकत को उजागर करती है।पढ़ते हुए डर सताता रहता है कि कहीं कोई एकाग्रता भंग न कर दे।
हार्दिक साधुवाद। - अनूप शुक्ल हार्दिक धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Varun Kumar Pal Kaha ke foto h
- अनूप शुक्ल जबलपुर के फ़ोटो हैं। smile इमोटिकॉन
- Shailendra Kumar Jha ............. gajjab nazar hai..aur phir bayan karne ke andaz...........pranam
- अनूप शुक्ल धन्यवाद है शैलेन्द्र भाई जी। smile इमोटिकॉन
- Alok Ranjan mrit aatma ko eishwar shanti de, sundar vratant... shubh din
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
- Shahnawaz Khan आपको पढ़ना और उसी मे खो जाना रोज की बात हो गयी हैं.....आपको पढ़ना रोचक होता है शुक्रिया आपका
- अनूप शुक्ल बहुत प्यारी टिप्पणी। smile इमोटिकॉन
- Mahesh Shrivastava ise yaha panpathi roti kahate hai , roti ko pani haath me lagakar badhan , ,chahe jo naam ho , bhookh , vivashta se hamesha aage nikli hai , sader
- अनूप शुक्ल आभार। smile इमोटिकॉन
- Sp Singh So natural
- अनूप शुक्ल धन्यवाद। smile इमोटिकॉन
Rashmi Suman ।मातृसत्तात्मक व्यवस्था??
कल्पना से कोसों दूर...
हाँ!! पर बदलाव की बयार चल पड़ी है।।
कल्पना से कोसों दूर...
हाँ!! पर बदलाव की बयार चल पड़ी है।।
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