29 अक्तूबर, 2009 को अजित वडनेरकर से पहली मुलाकात हुई थी इलाहाबाद में पहले राष्ट्रीय ब्लॉगिंग सम्मेलन में। चाय की दुकानों पर गपशप और फ़िर माचिस को तबले की तरह बजाते हुये राग भोपाली ने सुनाया था:
जब से हम तबाह हो गये
तुम जहांपनाह हो गये।
अगले ही दिन अजित भाई दिल्ली निकल लिये थे। राजकमल प्रकाशन वालों को ’शब्दों का सफ़र’ की पांडुलिपि देने। फ़िर किताब छपी। एक लाख रुपये का इनाम मिला और मजाक-मजाक में आज ’शब्दों के सफ़र’ के तीसरे भाग के छपने की तैयारी हो रही है। इस बीच भोपाली भाई भोपाल से महाराष्ट्र (अकोला ) होते हुये बनारस पहुंच गये ’अमर उजाला’ के सम्पादक होकर। एक सूबे के राजधानी से बनारस जिसके बारे में बीएचयू के एक कुलपति कहा करते थे- ”बनारसी इज ए सिटी व्हिच है रिफ़्यूज्ड टु माडर्नाइज्ड इटसेल्फ़"( मतलब भाग बोस डी के हमको नहीं होना आधुनिक-फ़ाधुनिक) पहुंचने का उनका अनुभव कैसा रहा यह तो वे खुद बतायेंगे कभी विस्तार से लेकिन बनारसी तो अपने शहर के बारे में कहते ही हैं:
जो मजा है गुरु बनारस में
वो न पेरिस में न फ़ारस में।
बनारस में मजे की बात भी अजित जी ही बतायेंगे लेकिन हमारी कल उनसे मुलाकात हुई तो बहुत मजा आया। इसके पहले जब भी वो जबलपुर होकर गुजरे तो हम या तो जबलपुर से बाहर रहे या फ़िर मिलने की पहुंच से बाहर। इस बार संयोग रहा कि मुलाकात हुई।
गाड़ी के आते ही पानी बरसने लगा। मानो देवगण हमारे मुलाकात पर प्रमुदित होकर आसमान से जलवर्षा करने लगे हों। खूब सारी बातें थीं खर्चा करने को सो प्लेटफ़ार्म पर रिमझिम बारिश का आनन्द लेते हुये बतियाते रहे जिसका सिलसिला ट्रेन के चलने और फ़िर तेज होने तक जारी रहा। आनन्द आया। आप भी देखिये फोटो और आनन्दित होइये।
http://chitthacharcha.blogspot.in/2009/10/blog-post_23.html
इसमें देखिये हिन्दुस्तान अकादमी दिल्ली में 2009 में हुये ब्लागिग सम्मेलन की झलकियां और नीचे वाली लिंक में सुनिये अजित वडनेरकर का माचिस के तबले पर गाया गीत
http://raviratlami.blogspot.in/2009/10/blog-post_26.html
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