सुबह खबर देखी टेलीविजन में कि आज का दिन एक सेकेण्ड बड़ा होगा। धरती की अपनी धुरी पर घूमने की गति कुछ कम हुई है। घड़ी और धरती का तालमेल बिठाने को दिन एक सेकेण्ड बड़ा किया जाएगा।
वो तो कहो धरती पर बस नहीं वरना कोई सरकार अध्यादेश जारी करती कि घड़ियां जैसी की तैसी रहेंगी, धरती को आज के दिन अपनी धुरी पर जल्दी घूमना होगा और एक सेकेण्ड पहले अपना चक्कर पूरा करना होगा। चक्कर पूरा करके ठीक आधी रात की सेल्फ़ी लेकर सब जगह अपलोड करनी होगी।
धरती की गति धीमी क्यों हुई इस पर क्या कहा जाए? धरती का वजन तो बढ़ा नहीं। सामानों का केवल रूप परिवर्तन हुआ। डायनोसोर थे सो चट्टानों में बदल गए, पेड़ पौधे थे वो कटकुट कर ठिकाने लग गए, फर्नीचर, कोयले,कार्बन डाइऑक्साइड में बदल गए। जो भी बदलाव हुआ, भले ही देखने में खराब लगे हमें लेकिन उससे धरती का वजन तो बढ़ा नहीं होगा। जो आबादी बढ़ी वह भी तो यहीं का खा-पीकर बढ़ी होगी। उससे वजन थोड़ी बढ़ा होगा धरती का।
उलटे कुछ कम ही हुआ होगा धरती का वजन। इतने उपग्रह भेजे गए अंतरिक्ष में, इतने यान टहल रहे हैं धरती की वजन परिधि से बाहर निकलकर। इससे तो धरती का वजन कम ही हुआ होगा। धरती कुछ स्लिम ,ट्रिम ही हुई होगी ।
कहने को तो कोई कह सकता है कि धरती पर पाप बढ़ रहा है। अपराध बढ़ रहे हैं जमीन पर। इससे धरती का मन दुखी हो गया होगा। इसीलिये वह अनमनी हो गयी होगी यह सोचते हुए कि बताओ हमारे यहां के लोग इतने गड़बड़ हो कर रहें। दुनिया के हर अपराध पर धरती सेकेण्ड के करोडवें, अरबवें,खरबवें सेकेण्ड के लिए ठिठक जाती होगी। उसी से उसको अपनी धुरी पर घूमने में समय कुछ ज्यादा लगता होगा।
लेकिन देखा जाए तो धरती में प्यार भी तो बढ़ रहा है। दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके मन में इतना प्यार है जितना पहले कभी नहीं रहा। इतना स्नेह है लोगों के मन में कि उसमें कई पृथ्वियां ऐसे डुबकियां लगाती रहें जैसे किसी झील में मछलियाँ, जैसे किसी हलवाई की दूकान में रसमलाइयां, जैसे किसी प्रेम डूबे जोड़े की आँखों में तितलियाँ। धरती इन खूबसूरत नजारों को देखने में डूब जाती होगी और अपनी धुरी पर घूमना भूल जाती होगी। जब याद आता होगा तब -हाय अल्ला, ओरी मोरी मैय्या करती सरपट दौड़ती होगी लेकिन कुछ देर तो हो ही जाती होगी न। वही धरती के कम होने का कारण बनती होगी।
सच पूछा जाए तो इस डम्प्लॉट दुनिया में एक सेकेण्ड की क्या गिनती है। जहां 300000 किमी प्रति सेकेण्ड की रफ़्तार से की प्रकाश गति से भागते हुए भी अगर कोई चले तो भी अरबों-खरबों वर्षों तक टहलते हुए भी दुनिया का कोई ओर-छोर न मिले। ऐसे में एक सेकेण्ड इधर-उधर होना क्या मायने रखता है भला।
धरती को तो शायद पता भी न चला हो कि उसकी गति पर कोई निगाह रखते हुए अपनी घड़ियां ठीक कर रहा है।वह तो अपनी धुरी पर अविराम घूमती रहती है करोड़ों अरबों वर्षों से। उसको इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि आदमी अपनी घड़ी तेज करता है धीमी, कैलेंडर का पन्ना बदलता है या प्रधानमंत्री।
यह तो हम इंसान हैं जो धरती को अपनी बपौती समझ गदर काटते रहते हैं। अपने को सबसे बुद्धिमान प्रजाति समझते हुए दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफियां करता रहता है। जिस धरती पर रहता है उसी को बर्बाद करने की हरकतें करता रहता है। उसके बाद स्यापा करता और धरती के नष्ट होने का स्यापा करता है।
सच कहा जाए तो धरती इंसान की धरती विरोधी हरकतों के चलते धरती थोड़ी नष्ट होगी। गर्मी बढ़ने पर समुद्र का स्तर बढ़ेगा तो शहर डूबेंगे, आदमी तबाह होगा। धरती तो ऐसे ही अपनी धुरी पर घूमती रहेगी। हो सकता है आज से सैकड़ों साल बाद कोई और उन्नत प्रजाति के लोग धरती के बारे में अपनी राय बनाते हुए लिखें कि पहले धरती पर डायनासोर रहते थे जो किसी उल्कापिंड के चलते खत्म हुए। उसके बाद इंसान बुद्धिमान प्राणी थे। उन्होंने अपनी बुद्गिमानी और लालच के चलते ही धरती का वातावरण इतना बर्बाद कर लिया कि निपट गए।
ओह हम भी किधर टहला रहे हैं आपको। एक सेकेण्ड के हिसाब किताब का किस्सा घण्टे भर से सुना रहे हैं। ये अच्छी बात नहीं है न। लेकिन इतनी खराब भी नहीं है न। अरे गुस्सा मती होइए। सरिता शर्मा जी की यह कविता पर फरमाइए वह जिसे हिंदी में मुलाहिजा कहते हैं:
पहले कमरे की खिड़कियां खोलो
फिर हवाओं में खुशुबुएं घोलो
सह न पाउंगी तल्खियां इतनी
मुझसे बोलो तो प्यार से बोलो।
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
बहुत बढ़िया सामयिक चिंतन ..
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