Monday, June 08, 2015

महेशजी से मिलना

Mahesh Shrivastava जी से मिलना हुआ। महेश जी हमारे लिखे की इतनी तारीफ़ करते हैं कि कभी-कभी बढ़िया लेखक होने का भरम होने लगता है। कल विजयदान देथा की कहानी सराय नाटक देखने गए शहीद स्मारक पेक्षागृह।वहीं पास ही महेश जी का घर है। नाटक देखने के बाद अपने साथियों Ajai Kumar Rai और Rajiv Agarwal के साथ मिलने पहुंच गए।

महेश जी के पास स्मृतियों का अद्भुत खजाना है। बाबा ने 1938 में घर बनवाया। उन समय इस इलाके में हैजा के रोगियों के इलाज के लिए मेडिकल कैम्प लगते थे। जो लोग इलाज के दौरान बच नहीं पाते थे उनकी हड्डियों को जमीन में गाड़ दिया जाता था। कोई यहां (राइट टाउन) में आना नहीं चाहता था।

परसाई जी पास ही रहते थे। टहलते हुए पिता डॉ बी.एल. श्रीवास्तव के पास मिलने आते थे।कुछ देर साथ बैठते थे।उनसे जुडी कई यादें साझा की महेश जी ने।

साहित्यप्रेमी महेश जी कवितायें भी लिखते हैं। इससे अलग सुरेंद्र मोहन पाठक के घनघोर पाठक हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास हमने भी बचपन में पढ़े हैं। जिस रोचकता से महेश जी ने पाठक जी के उपन्यासों के किस्से सुनाये उससे उनको फिर से पढ़ने का मन बन गया।

महेशजी ने बीएचयू में अपराधशास्त्र की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया था। वो तो कहो कि पढ़ाई अधूरी रही वरना आज कहीं अपराध विशेषज्ञ होते। बाद में पीएचडी पूरी करके जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय में काम पर लगे।
महेश जी के पुत्र डॉ रचित दांतों के डॉक्टर हैं। उनका क्लीनिक बनवाने के लिए मकान के एक हिस्से को तुड़वाने का ठेका पहले जिस ठेकेदार को दिया गया था वह काम अधूरा छोड़कर चला गया यह बोलकर कि एडवांस का पैसा भी ले लीजिए वापस हमसे न टूटेगा ये मकान।

महेश जी के घर में 90 साल की माताजी के अलावा सबके नाम के आगे डॉक्टर लगा है लेकिन सबसे बढ़िया डॉक्टर उनकी पत्नी जी हैं जिन्होंने हमारे आने की खबर पर इतना बढ़िया और भरपूर नाश्ता कराया कि फिर खाना नहीं खाया गया। वो आँख की डॉक्टर हैं लेकिन पाकशास्त्र की लगता है डबल डॉक्टर हैं।

महेशजी से मिलना एक ऐसे व्यक्ति से मिलना रहा जो स्वयं दुनियावी अनुभव से भरपूर है। घनघोर पाठक हैं। मिलकर लगा कि पहले क्यों न मिले।

फोटो हमारी खींची डॉ रचित ने। महेशजी मजे लेते हुए बोले- इस फोटो का कैप्शन होना चाहिए -'भक्त के साथ भगवान।'

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