बहराइच के कमलेश सबेरे का खाना खाते हुए |
सोचा आगे देखे। एक दूकान पर काम करते बच्चे ने हाथ घुमाकर बताया कि उधर है। घूमकर आये तो सब दुकानें बन्द मिलीं। सामने की पट्टी पर एच ए एल का गेट खुला था। तमाम बच्चे अगल-बगल बैठे थे। शायद कोई इम्तहान है। कोई इंटरव्यू भी हो सकता है।
सड़क पर ही तमाम लोग ईंटों के चूल्हे बनाते रोटी बनाते दिखे। 8-10 चूल्हे अलग-अलग जल रहे थे। सड़क पर बने चूल्हों में सिंकी रोटियों को सिंक जाने के बाद सड़क पर ही ईंटो के सहारे खड़ा करते जा रहे थे बनाने वाले। फिर प्लास्टिक की छोटी डलिया कम थाली ज्यादा में रखते जा रहे थे। आलू और कुछ कुछ और की सूखी सब्जी।
सड़क पर जब किसी नाई की दूकान नहीं मिली तो फिर घूमकर उसी जगह आ गए जहां
पहले पूछा था। अबकी बार एक दूकान के बरामदे पर रोटी खाते कमलेश से पूछा तो
बताया -'हियन है दूकान आगे। मुला अबहिन खुली नाय हुईहै। 9 बजे खुलति है।'
कमलेश बहराइच के एक गाँव के रहने वाले हैं। गाँव कई लोगों के साथ दिहाड़ी पर काम करने आये हैं। 10-12 साल से आते जाते रहते हैं। ईंटा-गारा मजूर काम करते हैं। आजकल 280 रुपया दिहाड़ी मिल रही है।
कुछ लोग एचएएल में मजूरी करते हैं।ठेकेदार ठेका लेते हैं । मजूर बाजार से लाते हैं। ठेकेदार कोई भी हो मजूर वही रहते हैं। जैसे सरकार किसी की भी हो जनता वही रहती है।
गाँव में 10 बीघा खेती है। खेती के समय गांव चले जाते हैं। जब वहां काम
नहीं होता तो शहर आ जाते हैं। गाँव में परिवार है। बच्चे पढ़ते हैं। सामान
के नाम पर कुछ कपड़े और कुछ बर्तन। यहीं दूकान के बाहर सो जाते हैं।
प्लास्टिक के बर्तन के फायदे बताते हुए कहते हैं--10 रुपया की है।
हिराय-बहाय (खोने-बह जाने) की चिंता नाय।
नहाना-धोना सरकारी नल पर या जहां काम करते हैं वहीं कर लेते हैं। दुष्यंत कुमार कहते ही थे:
सही ही है। बहराइच का आदमी मजूरी करने लखनऊ आता है। लखनऊ का मुम्बई, बंगलौर, गुड़गांव जाता है। फिर वहां से और आगे यूरोप,अमेरिका लन्दन न्यूयार्क जाता है। पैसा सबको दौड़ाता है।
यह पैसा ही तो है जो सबको नचाता है।योजनाओं में घपले करवाता है। करोंडो जिसके पास है उसको अरबों का लालच लगवाता है। दंद-फन्द करवाता है। फिर भगोड़ा बनवाता है। सरकारें हिलाता है।
पता नहीं लखनऊ के स्मार्ट सिटी बनने की योजना है कि नहीं। लेकिन जब बनेगा तो उसमें कमलेश जैसे लोगों के लिए कुछ होगा कि नहीं? जब स्मार्ट सिटी बन जाएगा लखनऊ तब सड़क पर ईंटों का चूल्हा बनाकर रोटी सेंकने की अनुमति होगी कि नहीं।
इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। वैसे भी अभी तो सरकार,विपक्ष और मीडिया आईपीएल के लफ़ड़े से निपटने में लगी है। इस चुनौती से सबको मिलकर एकजुटता के साथ निपटना जरूरी हैं नहीं तो लफड़ा हो सकता है।
कमलेश बहराइच के एक गाँव के रहने वाले हैं। गाँव कई लोगों के साथ दिहाड़ी पर काम करने आये हैं। 10-12 साल से आते जाते रहते हैं। ईंटा-गारा मजूर काम करते हैं। आजकल 280 रुपया दिहाड़ी मिल रही है।
कुछ लोग एचएएल में मजूरी करते हैं।ठेकेदार ठेका लेते हैं । मजूर बाजार से लाते हैं। ठेकेदार कोई भी हो मजूर वही रहते हैं। जैसे सरकार किसी की भी हो जनता वही रहती है।
कमलेश के साथ रामसेवक |
नहाना-धोना सरकारी नल पर या जहां काम करते हैं वहीं कर लेते हैं। दुष्यंत कुमार कहते ही थे:
न हो कमीज तो पावों से पेट ढँक लेंगेगाँव में 10 बीघा जमीन है फिर काहे मजूरी करन आवत हौ शहर? हमारे इस बेवकूफी के सवाल पर कमलेश ने कहा-'घर माँ फालतू बईठ के का करी।सबै आवत हैं पैसा के खातिर। हम बहराइच ते हियन आयेन। हियाँ के लोग और आगे जाते हैं।'
बहुत मुनासिब हैं ये लोग इस सफर के लिए।
सही ही है। बहराइच का आदमी मजूरी करने लखनऊ आता है। लखनऊ का मुम्बई, बंगलौर, गुड़गांव जाता है। फिर वहां से और आगे यूरोप,अमेरिका लन्दन न्यूयार्क जाता है। पैसा सबको दौड़ाता है।
यह पैसा ही तो है जो सबको नचाता है।योजनाओं में घपले करवाता है। करोंडो जिसके पास है उसको अरबों का लालच लगवाता है। दंद-फन्द करवाता है। फिर भगोड़ा बनवाता है। सरकारें हिलाता है।
पता नहीं लखनऊ के स्मार्ट सिटी बनने की योजना है कि नहीं। लेकिन जब बनेगा तो उसमें कमलेश जैसे लोगों के लिए कुछ होगा कि नहीं? जब स्मार्ट सिटी बन जाएगा लखनऊ तब सड़क पर ईंटों का चूल्हा बनाकर रोटी सेंकने की अनुमति होगी कि नहीं।
इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। वैसे भी अभी तो सरकार,विपक्ष और मीडिया आईपीएल के लफ़ड़े से निपटने में लगी है। इस चुनौती से सबको मिलकर एकजुटता के साथ निपटना जरूरी हैं नहीं तो लफड़ा हो सकता है।
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