कल जब स्टेशन पहुंचे तो अँधेरा हो गया था। ट्रेन समय से चल रही थी। पिछले स्टेशन पर 8 मिनट पहले ही पहुंचकर सुस्ता रही थी।
दो आदमी आपस में गाय के बारे में बात कर रहे थे। इतने विस्तार से गोया 'गाय पर निबन्ध' प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। एक ने कहा-'दूध छूटने पर सब छुट्टा छोड़ देते हैं। अरे भाई जब दूध के लिए पाली है तो बाद में भी निभाओ।' दूसरा बोला-'हमारे इधर तो 'परक' गयी हैं गायें। सबेरे-सबेरे मुंडी... मारती हैं दरवाजे पर। जीभ से कुण्डी हिलाती हैं। भैंस कभी कोई नहीं दिखती सड़क पर।' दोनों लोग इस बात पर एकमत थे कि आजकल कोई मुसलमान गाय नहीं रखना चाहता इस डर से कि पता नहीं कब कोई बवाल कर दे।
एक लड़की लोहे की सन्दूक पर बैठे सन्दूक बजाती जा रही थी।
ट्रेन समय पर आई। बैठकर फिर से चेक किया कि बोगी और सीट वही है न जिसका रिजर्वेशन है। चेक करके जो सांस ली उसके बारे में अब्भी तक तय नहीं कर पाये कि वह सुकून की थी कि सन्तोष की। चैन की या फिर इत्मिनान की। बस यही कन्फर्म है कि वह थी।
डब्बे में भीड़ थी। पूरा भरा। जितनी बर्थ उससे ज्यादा यात्री। शायद इसीलिये टीटी डब्बे में आया नहीँ। उसके करने के लिए कुछ था नहीं डब्बे में। कोई खाली बर्थ थी नहीं अलाट करने के लिए तो काहे को समय बर्बाद करता।
3 टायर स्लीपर कोच होने के चलते डब्बा पूरा गुलजार था। लोग खूब बतिया रहे थे। चुहल कर रहे थे। एसी डब्बे में होते तो ज्यादातर यात्री अब तक कम्बल ओढ़कर लुढ़क गए होते।
एक लड़का फोन पर किसी को प्रेमपूर्ण ढंग से हड़का रहा था-'हम आपको बहुत इज्जत से बता रहे हैं कि गुरसहायगंज की पुलिस जब कलकत्ता पहुंचकर आपसे मेरे मोबाइल के बारे में पूछताछ करे तो हैरान मत होना।हम जिसकी इज्जत करते हैं उससे दो बार जी लगाकर बात करते हैं। इसीलिये आपको जी जीजा जी कहा।'
एक लड़का गैलरी से गुजरा तो उसने शीशे में चेहरा देखा अपना। सर के बाल उँगलियों के कंघे से काढ़े। फाइनली चेहरा एक बार फिर से देखा। फिर से झटककर आगे चला गया।
बगल का लड़का कोलकता का रहने वाला है। लखनऊ आया था काम से तो जबलपुर अपनी बहन से मिलने जा रहा है। नहीं जाएगा तो शिकायत करेगी बहन -'लखनऊ तक आये और मिलने नहीं आये।' आधारताल में रहते हैं जीजाजी उसके।
ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। कुछ देर ज्यादा रुकी रही तो यात्रियों ने उतरकर प्लेटफार्म की दुकान वाले के सब समोसे खरीदकर खा लिए और उसकी सारी चाय पी डाली। समोसे खत्म करने के बाद रेलवे को गरियाना शुरू किया कि गाड़ी कहाँ बीच में खड़ी कर दी ससुरों ने। कुछ देर बाद जब ट्रेन चल दी तो प्लेटफार्म से उचककर लोग ट्रेन में धँस लिए। एक ने कहा -'यार मेरा तो मन किया कि यहीं प्लेटफार्म पर चद्दर तान के सोया जाये।'
कुछ लोगों ने प्लेटफार्म वाले दुकानदार की किस्मत से ईर्ष्या की कि उसके सारे समोसे बिक गए। भला हो कि यह किसी ने नहीं कहा कि दुकानदार की सिग्नल वाले से सेटिंग थी कि वह सिग्नल तब तक नहीं देगा जब तक उसके सब समोसे बिक न जाएँ।
रात होते होते यात्री लोग मुंडी झुकाकर अपने-अपने घर से लाया हुआ खाना टूंगने लगे। खाना खाकर बीच वाली बर्थ को जंजीर से टांगकर लोग अपनी-अपनी बर्थ पर जमा हो गए। जिनके रिजर्वेशन नहीं थे और जो अभी तक सर ऊँचा किये बैठे थे सीटों पर वे अब जहाँ-जहाँ सर झुकाकर नीचे वाली रिजर्व सीटों के पैताने बैठ गए।
रिजर्व सीटों वाले लोग उनको बैठने से मना भले न कर रहे हों पर चद्दर/कम्बल ठीक करने के बहाने जाने/अनजाने पैताने बैठे लोगों को लतियाने लगे। वे लोग बेचारे कुनमुनाकार रिजर्व बर्थ की सवारी की लातों के हिसाब से खुद को एडजस्ट करते रहते।
और रात होने पर कुछ लोग दो सीटों के बीच की जगह पर पसरकर लेट गए और कालान्तर में सो भी गए। कहीं-कहीं दो लोग चिपटकर सोये। उनके चेहरे पर अंतत पीठ टिकाकर सोने के सुकून का झंडा फहरा रहा था।
सुबह आँख खुली तो ट्रेन कटनी पहुँच चुकी थी। मन किया उठकर चाय पी जाए। लेकिन आलस्य ने बरज दिया-'अरे अभी कहाँ। आगे पीना। अभी आराम करो कुछ देर और यार।' हमने भी अपने जिगरी दोस्त आलस्य की बात मान ली और करवट बदलकर फिर से सो गए।
आगे सिहोरा स्टेशन पर चाय वाले ने चाय-चाय का हल्ला मचाया। हल्ला मचते ही हम हड़बड़ाकर उठे। कुछ ज्यादा ही हड़बड़ हुई तो आलस्य बिदककर दूर चला गया। हमने उस समय तो ध्यान नहीं दिया पर जब चाय पीते हुए ध्यान गया तो पुचकारा तो फिर पास आ गया आलस्य। हमने आराम से अलसाते हुए चाय पी। बीच में मन किया कि चाय वाले को कोसें कि वह पनियल, मीठी चाय 10 रूपये में थमाकर चला गया। पर आलस्य ने बरज दिया-'काहे को फालतू में खून जलाओगे? मस्त रहो।' हमने गरियाना स्थगित कर दिया।
आलस्य की संगत इस मामले में बहुत अच्छी है कि वह हिंसाबाद भी रोकती है।
स्टेशन आने वाला जानकर हलके होने के लिए चले। देखा कि एक भैया अपने चौड़े मोबाईल में कोई पत्ते मिलाने वाला खेल खेल रहे थे। अगल-बगल के चार यात्री उनके मोबाईल में मुंडी घुसाये खेल देख रहे थे। पत्तों का जोड़ा बनते ही पत्ते सीन से गायब हो जा रहे थे। ऐसे जैसे प्रेम करने वालों के बीच से रोमांच और प्रेम गायब हो जाता होगा - उनका विवाह होने के बाद।
शौचालय की खिड़की टूटी हुई थी। नीचे पड़े कांच से लग रहा था कि किसी का ताजा शौर्य प्रदर्शन है। कांच टुकड़े-टुकड़े होकर फर्श पर पड़ा था। कुछ कांच के टुकड़े जो क्रांतिकारी टाइप के रहे होंगे वो फ्लश होकर शौचालय के रस्ते बाहर हो गए होंगे। किसी जगह पटरी पर पड़े गिट्टियों की गोद में पड़े अपने घाव सहला रहे होंगे। कोई उनका नाम लेने वाला भी नहीं होगा।
गाड़ी रुकी स्टेशन पर। हम उतरकर मेस में आ गए। अब्बी कमरे पर पहुंचकर सबसे पहला काम चाय मंगाने का किया। चाय आ रही है।
येल्लो देखो सूरज भाई भी आ गए। किरणें, उजाला, रौशनी, उजास अपने संगी-साथियों के साथ धड़धड़ाकर कमरे में घुस आये। कमरा पूरा गुलजार हो गया इत्ते दिन बाद सबसे मिलकर। हमको भूल ही गया निगोड़ा। हम सूरज भाई के साथ बतियाते हुए चाय पी रहे हैं। आप भी आइये फटाक देना वर्ना चाय ठण्डी हो जायेगी।
आपका दिन मंगलमय हो। हफ्ते की शुरुआत चकाचक हो। जय हो।
दो आदमी आपस में गाय के बारे में बात कर रहे थे। इतने विस्तार से गोया 'गाय पर निबन्ध' प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों। एक ने कहा-'दूध छूटने पर सब छुट्टा छोड़ देते हैं। अरे भाई जब दूध के लिए पाली है तो बाद में भी निभाओ।' दूसरा बोला-'हमारे इधर तो 'परक' गयी हैं गायें। सबेरे-सबेरे मुंडी... मारती हैं दरवाजे पर। जीभ से कुण्डी हिलाती हैं। भैंस कभी कोई नहीं दिखती सड़क पर।' दोनों लोग इस बात पर एकमत थे कि आजकल कोई मुसलमान गाय नहीं रखना चाहता इस डर से कि पता नहीं कब कोई बवाल कर दे।
एक लड़की लोहे की सन्दूक पर बैठे सन्दूक बजाती जा रही थी।
ट्रेन समय पर आई। बैठकर फिर से चेक किया कि बोगी और सीट वही है न जिसका रिजर्वेशन है। चेक करके जो सांस ली उसके बारे में अब्भी तक तय नहीं कर पाये कि वह सुकून की थी कि सन्तोष की। चैन की या फिर इत्मिनान की। बस यही कन्फर्म है कि वह थी।
डब्बे में भीड़ थी। पूरा भरा। जितनी बर्थ उससे ज्यादा यात्री। शायद इसीलिये टीटी डब्बे में आया नहीँ। उसके करने के लिए कुछ था नहीं डब्बे में। कोई खाली बर्थ थी नहीं अलाट करने के लिए तो काहे को समय बर्बाद करता।
3 टायर स्लीपर कोच होने के चलते डब्बा पूरा गुलजार था। लोग खूब बतिया रहे थे। चुहल कर रहे थे। एसी डब्बे में होते तो ज्यादातर यात्री अब तक कम्बल ओढ़कर लुढ़क गए होते।
एक लड़का फोन पर किसी को प्रेमपूर्ण ढंग से हड़का रहा था-'हम आपको बहुत इज्जत से बता रहे हैं कि गुरसहायगंज की पुलिस जब कलकत्ता पहुंचकर आपसे मेरे मोबाइल के बारे में पूछताछ करे तो हैरान मत होना।हम जिसकी इज्जत करते हैं उससे दो बार जी लगाकर बात करते हैं। इसीलिये आपको जी जीजा जी कहा।'
एक लड़का गैलरी से गुजरा तो उसने शीशे में चेहरा देखा अपना। सर के बाल उँगलियों के कंघे से काढ़े। फाइनली चेहरा एक बार फिर से देखा। फिर से झटककर आगे चला गया।
बगल का लड़का कोलकता का रहने वाला है। लखनऊ आया था काम से तो जबलपुर अपनी बहन से मिलने जा रहा है। नहीं जाएगा तो शिकायत करेगी बहन -'लखनऊ तक आये और मिलने नहीं आये।' आधारताल में रहते हैं जीजाजी उसके।
ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। कुछ देर ज्यादा रुकी रही तो यात्रियों ने उतरकर प्लेटफार्म की दुकान वाले के सब समोसे खरीदकर खा लिए और उसकी सारी चाय पी डाली। समोसे खत्म करने के बाद रेलवे को गरियाना शुरू किया कि गाड़ी कहाँ बीच में खड़ी कर दी ससुरों ने। कुछ देर बाद जब ट्रेन चल दी तो प्लेटफार्म से उचककर लोग ट्रेन में धँस लिए। एक ने कहा -'यार मेरा तो मन किया कि यहीं प्लेटफार्म पर चद्दर तान के सोया जाये।'
कुछ लोगों ने प्लेटफार्म वाले दुकानदार की किस्मत से ईर्ष्या की कि उसके सारे समोसे बिक गए। भला हो कि यह किसी ने नहीं कहा कि दुकानदार की सिग्नल वाले से सेटिंग थी कि वह सिग्नल तब तक नहीं देगा जब तक उसके सब समोसे बिक न जाएँ।
रात होते होते यात्री लोग मुंडी झुकाकर अपने-अपने घर से लाया हुआ खाना टूंगने लगे। खाना खाकर बीच वाली बर्थ को जंजीर से टांगकर लोग अपनी-अपनी बर्थ पर जमा हो गए। जिनके रिजर्वेशन नहीं थे और जो अभी तक सर ऊँचा किये बैठे थे सीटों पर वे अब जहाँ-जहाँ सर झुकाकर नीचे वाली रिजर्व सीटों के पैताने बैठ गए।
रिजर्व सीटों वाले लोग उनको बैठने से मना भले न कर रहे हों पर चद्दर/कम्बल ठीक करने के बहाने जाने/अनजाने पैताने बैठे लोगों को लतियाने लगे। वे लोग बेचारे कुनमुनाकार रिजर्व बर्थ की सवारी की लातों के हिसाब से खुद को एडजस्ट करते रहते।
और रात होने पर कुछ लोग दो सीटों के बीच की जगह पर पसरकर लेट गए और कालान्तर में सो भी गए। कहीं-कहीं दो लोग चिपटकर सोये। उनके चेहरे पर अंतत पीठ टिकाकर सोने के सुकून का झंडा फहरा रहा था।
सुबह आँख खुली तो ट्रेन कटनी पहुँच चुकी थी। मन किया उठकर चाय पी जाए। लेकिन आलस्य ने बरज दिया-'अरे अभी कहाँ। आगे पीना। अभी आराम करो कुछ देर और यार।' हमने भी अपने जिगरी दोस्त आलस्य की बात मान ली और करवट बदलकर फिर से सो गए।
आगे सिहोरा स्टेशन पर चाय वाले ने चाय-चाय का हल्ला मचाया। हल्ला मचते ही हम हड़बड़ाकर उठे। कुछ ज्यादा ही हड़बड़ हुई तो आलस्य बिदककर दूर चला गया। हमने उस समय तो ध्यान नहीं दिया पर जब चाय पीते हुए ध्यान गया तो पुचकारा तो फिर पास आ गया आलस्य। हमने आराम से अलसाते हुए चाय पी। बीच में मन किया कि चाय वाले को कोसें कि वह पनियल, मीठी चाय 10 रूपये में थमाकर चला गया। पर आलस्य ने बरज दिया-'काहे को फालतू में खून जलाओगे? मस्त रहो।' हमने गरियाना स्थगित कर दिया।
आलस्य की संगत इस मामले में बहुत अच्छी है कि वह हिंसाबाद भी रोकती है।
स्टेशन आने वाला जानकर हलके होने के लिए चले। देखा कि एक भैया अपने चौड़े मोबाईल में कोई पत्ते मिलाने वाला खेल खेल रहे थे। अगल-बगल के चार यात्री उनके मोबाईल में मुंडी घुसाये खेल देख रहे थे। पत्तों का जोड़ा बनते ही पत्ते सीन से गायब हो जा रहे थे। ऐसे जैसे प्रेम करने वालों के बीच से रोमांच और प्रेम गायब हो जाता होगा - उनका विवाह होने के बाद।
शौचालय की खिड़की टूटी हुई थी। नीचे पड़े कांच से लग रहा था कि किसी का ताजा शौर्य प्रदर्शन है। कांच टुकड़े-टुकड़े होकर फर्श पर पड़ा था। कुछ कांच के टुकड़े जो क्रांतिकारी टाइप के रहे होंगे वो फ्लश होकर शौचालय के रस्ते बाहर हो गए होंगे। किसी जगह पटरी पर पड़े गिट्टियों की गोद में पड़े अपने घाव सहला रहे होंगे। कोई उनका नाम लेने वाला भी नहीं होगा।
गाड़ी रुकी स्टेशन पर। हम उतरकर मेस में आ गए। अब्बी कमरे पर पहुंचकर सबसे पहला काम चाय मंगाने का किया। चाय आ रही है।
येल्लो देखो सूरज भाई भी आ गए। किरणें, उजाला, रौशनी, उजास अपने संगी-साथियों के साथ धड़धड़ाकर कमरे में घुस आये। कमरा पूरा गुलजार हो गया इत्ते दिन बाद सबसे मिलकर। हमको भूल ही गया निगोड़ा। हम सूरज भाई के साथ बतियाते हुए चाय पी रहे हैं। आप भी आइये फटाक देना वर्ना चाय ठण्डी हो जायेगी।
आपका दिन मंगलमय हो। हफ्ते की शुरुआत चकाचक हो। जय हो।
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