सुबह निकले तो देखा बरामदे में बहुत से पतंगे मरे पड़े थे। रात को ट्यूबलाइट से भिड़ते रहे होंगे। कुछ देर में सफाई हो जायेगी। ये कीड़े किसी कूड़ेदान में शरण पाएंगे। पता नहीं इन कीड़ों का संसार कैसा होता है। क्या पता इनके यहाँ इतिहास लिखा जाता है कि नहीं। शहीदों के सम्मान में लोकगीत गाये जाते हैं कि नहीं। अगर ऐसा कुछ होता तो कोई वीर रस का 'पतंगा कवि' इनकी शान में कविता रच चुका होगा जिसका लब्बो लुआब यह होगा कि दुश्मन ट्यूब लाइट की रौशनी का मुकाबला करते हुए ये पतंगे शहीद हुए।
विराट समय के मुकाबले इंसान की औकात की ये कविता पंक्तिया अनायास याद आ गई:
शताब्दियाँ बनकर रह जाती हैंइतिहास की तहरीरऔर उसी इतिहास सेसभ्यताओं के जनाजे निकल जाते हैं।
खैर, सुबह जब निकले तो सूरज भाई अभी निकलने का मूड बना रहे थे पर निकले नहीं थे।
सामुदायिक भवन में कुछ लोग कूड़ा जलाये आग ताप रहे थे। कुर्सियों का ढेर एक के ऊपर एक जमा हुआ था। सबसे ऊँची कुर्सी देखकर लगा कहीं वह भाईयों और बहनों कहते हुए मन की बात न शुरू कर दे।
सामने से तेजी से टहलते आते सरदार जी ने दोनों हाथ सीधे आसमान की तरफ उठाकर नमस्ते किया। हमारे हाथ में साइकिल का हैंडल था सो हम सर हिलाकर नमस्ते किये।
एक महिला सर झुकाये टहलती चली जा रही थी। सड़क पर कूड़ा बटोरता एक लड़का अचनाक बायीं तरफ से दायीं तरफ चला गया। उसके हाथ में एक लकड़ी थी जिससे कोंच-कोच कर वह पहले कूड़े का मुआइना करता फिर काम लायक कूड़ा उठाकार बोरे में भरता।
चाय की दूकान पर जैसे ही हम पहुंचे तो एक बुजुर्ग सज्जन भी वहां आये। अपने एक और मित्र के साथ। उनका एक पैर लड़खड़ा सा रहा था। उसी को लेकर बात शुरू हुई और चाय पीते हुए अपनी पूरी जीवनी उन्होंने 'अनज़िप' कर दी।
किसी इंसान का दुःख उसका वह हिस्सा होता है जहाँ हाथ रखते ही वह व्यक्ति अनायास खुल जाता है।
पता चला कि वो सज्जन जीआईएफ से रिटायर हुए। इसके पहले चांदा में और उसके पहले वीएफजे में नौकरी की। पिता भी फैक्ट्री में ही थे। छह भाई थे। पत्नी ने कुछ दिन नौकरी की फिर दिल की बीमारी के चलते छोड़ दी। एक लड़का है वह अपना काम करता है।
आज सुबह-सुबह सीजीएचएस से दवाई लेने के लिए आये हैं। सुबह 0430 पर निकले थे घर से। नंबर लगाने के लिए। 12 वां नंबर मिला है। दोपहर तक दवा मिल जायेगी। यहाँ डाक्टर सिर्फ दवा देने का काम करते हैं। देंखने के नाम पर मरीज को हाथ तक नहीं लगाते।
चाय के पैसे देने के नाम पर दोनों लोगों में थोड़ी अपनापे वाली बहस हुई। आखिर में उसकी जीत हुई जिसके पास फुटकर पैसे थे।
चलते हुए उनमें से एक ने किसी मंगल के न रहने की खबर दी। दूसरे ने इसे एक सूचना की तरह ग्रहण किया। एक ने कहा-'मंगल खलीफा टाइप था।' दूसरे ने कहा-' हां। खलीफा तो था। हम तुमसे उसके बारे में पूछने ही वाले थे।' इसके अलावा और कोई बात नहीं हुई मंगल के बारे में दोनों के बीच।
मुझे यह लगा कि कोई कितने ही बड़ा खलीफा क्यों न हों लेकिन उसका दुनिया के रंगमंच से विदा होना दूसरों के लिये एक सूचना मात्र से अधिक नहीं होता।
देवेन आया और नमस्ते करके कोने में सुट्टा मारने चला गया। साथ में उसके दो लोग और थे। हमने पूछा कि आज किसने पैसे दिए गांजे के तो वो बोले-'चल जाता है अंकल। कभी कोई दे देता है कभी कोई। किसी ने चिलम के पैसे दे दिए तो किसी ने चाय के। इसी तरह मिली जुली सरकार चलती रहती है।'
देवेन की कोर्ट की अगली तारीख है 4 दिसम्बर को। विरोधी पार्टी को सम्मन दिया गया है। नहीँ आई तो ऐसे ही फैसला सुना दिया जाएगा। इस बीच एक चक्कर दिल्ली का लगाकर आ जाने की सूचना भी दी देवेन ने।
लौटते हुये मोड़ पर दो कुत्ते टहलते दिखे। उनमें से एक विकलांग था। पिछली एक टांग आधी कटी थी। उछल-उछलकर चल रहा था।
दीपा से काफी दिन बाद मिलना हुआ आज। बताया उसने कि दीपावली को जन्मदिन मनाया उसने। पापा के साथ केक काटा। खाया। स्कूल में टॉफ़ी ले गयी थी। अगले हफ्ते से वह 3 में पहुँच जायेगी।
लौटते में झील देखते हुए आये। सूरज भाई झील के एक घुसे नहा रहे थे। चिड़ियाँ झील के बीच के तार पर बैठीं थीं। दूरी के कारण क्या बोल रहीं थी मुझे सुनाई नहीं दे रहा पर जरूर कुछ आपस में गुफ्तगू कर रहीं होंगी।
कमरे पर आकर चाय पीते हुए यह पोस्ट कर रहे हैं। अब तो सही में सुबह हो गयी है।
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