Tuesday, November 03, 2015

'क्या करते हो? कोई देख लेगा

सुबह उठे तो सोचते रहे कि आज किधर की तरफ हैंडल मोड़ा जाए साईकल का। फिर अचानक याद आया तालाब। और हम फ़ौरन निकल लिए।

नदी, झील, तालाब, हम भरसक खत्म करते जा रहे हैं। वो हमारे आसपास से सिकुड़ते जा रहे हैं। इसीलिये जैसे ही वो जेहन में जैसे ही नदी और झील की याद उभरती है, उनके पास जाने का मन करता है। कुछ ऐसे ही जैसे घर की याद आते ही वहां जाने के लिये मन करता है।


दो महिलाएं साथ जाती हुई बतिया रहीं थीं। एक के हाथ में पालीथीन में ताजे तोड़े हुए चांदनी के फूल थे। पालीथीन को तर्जनी ऊँगली पर नचाती, घुमाती हुई वह अपनी सहेली से बतियाती चली जा रही थी।
एक जगह एक गढ्ढे के पास एक आदमी बोरी में भरकर मिटटी अपनी साईकल पर लाद रहा था। डंडे के नीचे कैंची के बीच की जगह पर बोरी जमाकर रख रहा था। गढढे में एक महिला कुदाल लिए मिट्टी खोदकर एक स्टील की प्लेट से बोरी में भर रही थी। आदमी ने बताया कि वह चबूतरा बनाने के लिए मिटटी इकट्ठा कर रहा है। आदमी से बात करते हुए हमने देखा कि मिट्टी खोदती महिला ने खड़े होकर सर पर पल्लू रखा और फिर मिटटी बोरी में भरने लगी।


वहीं एक जगह खड़े होकर देखा कि बिजली के तारों पर कुछ पक्षी चहचहा रहे थे। सूरज भाई पूरब की तरफ निकल रहे थे पर आसमान दूसरी तरफ भी लाल कर रहे थे। शायद वे भी जनरल डिब्बे के यात्रियों की तरह उधर अपना रुमाल रखकर आसमान में जगह पर कब्जा कर रहे थे जिधर उनको शाम को जाना था।

एक दूसरे तार पर दो पक्षी एक दूसरे दूर बैठे हुए थे। उनके बीच पसरे अबोले को देखकर लगा कि पक्का ये लोग मियां-बीबी हैं। हमारी तरफ उनकी पीठ मतलब पूँछ थी। चोंच दूसरी तरफ। कुछ देर बाद पलट कर वे एक दूसरे की तरफ आये। एक पक्षी ने दूसरी को 'चोंच चुम्बन' दिया। कुछ देर 'चोंचियाने' के बाद दोनों जिस तेजी से एक दूसरे से दूर हुए उसे देखकर लगा कि मादा पक्षी में नर पक्षी की चोंच परे करते हुए कहा होगा-'क्या करते हो? कोई देख लेगा।' क्या पता यह भी कहा हो-'चार चिड़ियों के बाप हो गए। जवानी वाली आदतें नहीं गयी अब तक।' देखते-देखते दोनों पक्षी आसमान में फुर्र से उड़ गए। हवा में तार बहुत देर तक हिलता रहा।

झील के रास्ते में एक जगह सुअर समुदाय इकट्ठा था। एक युवा सूअर दूसरे सूअर के ऊपर चढ़ा हुआ पीछे से उस पर धक्का लगा रहा था। बाकी सूअर इधर-उधर मुंह किये गन्दगी का नाश्ता कर रहे थे। एक बूढ़ा, मोटा सूअर वहां से हटकर दूर की तरफ चला गया। दूर की तरफ जाने की बात से मुझे दुष्यंत कुमार का यह शेर याद आ गया:
लहूलुहान नजारों का जिक्र आया तो
शरीफ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गए।


झील के किनारा शांत था। आज 'तालाब को आराम' दिया गया था। मछुआरे नहीं थे। उनके बैठने की जगह पर कुत्ते अलसाये से लेटे हुए थे। हमको फोटो लेते देखकर थोड़ा आँख खोलकर देखा और फिर मूंदकर सो गए।
एक छोटी चिड़िया झील के पानी के ऊपर आसमान में उड़ रही थी। कभी ऊपर जाती कभी नीचें। कभी लगता लड़खडाई और पानी में गिरी पर फिर चोंच ऊपर की तरफ करके उड़ने लगती। कुछ देर उड़ने के बाद वह किनारे आ गयी और घास पर बैठकर सुस्ताने लगी।

सामने से सूरज भाई चमकते दिखे। फोटो खींचा तो ऐसा लगा कि किरणों का हाथ फैलाकर हमसे हाथ मिला रहे हों।

कुछ देर झील के पानी को देखते रहे। जितना देख सके देखा बाकी को दूसरे के देखने के लिए छोड़कर वापस लौट लिए।

लौटते में देखा कि एक महिला लोटे में जल लिए सर पर पल्लू डाले कुछ मुस्काती सी चली जा रही थी। शायद मन्दिर जा रही हो। एक आदमी एक पालीथीन में दही लिए पालीथीन हिलाता चला जा रहा था।पालीथीन हिलाने से दही को हड्डी-पसली एक होने का एहसास हो रहा था या झूला झूलने का एहसास यह मैं तय नहीं कर पाया।
वहीं एक चाय की दुकान पर चाय पी। अख़बार में सम्पादकीय पेज पर यशवन्त सिन्हा का लेख देखा। उसमें जार्ज फर्नांडीज के ताबूत घोटाले से सुप्रीम कोर्ट द्वारा 13 अक्टूबर को बरी करने की खबर का जिक्र करते हुए मिडिया की आलोचना की गयी थी कि उसने इस खबर को खबर नहीं बनाया।

यह लगा कि मीडया को कालिख पोतने की खबर में रूचि रहती है। किसी के उजले होने की सूचना मीडिया को मजा नहीं आता। पता नहीं Chanchal Bhu जी ने यह खबर साझा की थी या नहीं। चंचल जी ने जार्ज फर्नांडीज से जुड़े कई संस्मरण साझा किये हैं।

जार्ज फर्नांडीज की बात से याद आया कि मैंने एक बार उनको लंका चौराहे पर किसी उम्मीदवार के समर्थन में भाषण देते सुना था। कुल जमा लोग इतने ही थे कि चौराहे पर लोग आराम से आ जा रहे थे। जार्ज की राजनीति और अन्य बातों के बारे में नहीं पता पर उनकी सादगी, ईमानदारी और बिना तामझाम के जिया सार्वजनिक जीवन अनुकरणीय लगता है।

एक जगह हनुमान मन्दिर के ऊपर श्री सार्वजनिक हनुमान मन्दिर लिखा देखकर सोचा कि कहीँ निजी हनुमान भी होंगे किसी मन्दिर में।

एक महिला सड़क के एक किनारे नल के पानी से पानी भरकर सरपट सड़क पार कर रही थी। उसके एक हाथ में स्टील की गगरिया थी और दूसरे में प्लास्टिक का डब्बा।

आगे सड़क पर जाती एक महिला हर पांचवे कदम पर दांये-बाएं देखते हुए चौकन्नी चाल से जा रही थी। उसकी चाल देखकर लगा कि अपने देश की आधी आबादी को सड़क तक पर चलते हुए कितना सावधान रहना पड़ता है। इसके बावजूद अगर वे पुरुषों की बराबरी कर रहीं हैं तो यह तारीफ़ की बात है।

लौटते में देखा स्कूल के पास एक लड़की पीठ पर बस्ता लादे अपने से 4 फ़ीट की दूरी पर मोटर साइकिल पर बैठे एक लड़के से कुछ बात कर रही थी। बात करते हुए दोनों बच्चे ऐसे बिजली के तारों की तरह लगे जिनसे होकर बिजली गुजर रही हो। यह भी कि दोनों के बीच 4 फिट की दूरी की हवा उनके बीच कुचालक का काम कर रही हो और बीच की दूरी कम होते ही उनके बीच का फ्यूज उड़ जाएगा। फ्यूज उड़ने के डर से ही शायद दोनों सुरक्षित दूरी पर रहकर बात करते रहे।

लौटकर आने के बाद पोस्ट लिखी। अब जा रहे हैं दफ्तर। आप मजे से रहिये। आपका दिन शुभ हो।
 

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