कल यह सूचना साझा की थी मैंने। भिंड जिले में एक कलेक्टर ने हेडमास्टर को इसलिए निलम्बित कर दिया कि बच्चे ने देश और प्रदेश का नाम भिंड बताया था।
9 मित्रों की प्रतिक्रिया थी कि कलेक्टर ने सही किया। 3 लोगों ने कहा कि निलम्बन ठीक नहीं था। एक मित्र की प्रतिक्रिया थी कि फिर तो कलेक्टर का भी निलम्बन होना चाहिए। Santosh Mishra ने कहा कि कलेक्टर का काम प्रकाशक का होता है।परीक्षक का नहीं। कलेक्टर ने उचित नहीं किया।Anupma Upadhyay और
Ashok Kumar Avasthi दोनों ही शिक्षा क्षेत्र से जुड़े ...हैं। दोनों के हिसाब से ही कलेक्टर का निर्णय ठीक नहीं था।
9 मित्रों की प्रतिक्रिया थी कि कलेक्टर ने सही किया। 3 लोगों ने कहा कि निलम्बन ठीक नहीं था। एक मित्र की प्रतिक्रिया थी कि फिर तो कलेक्टर का भी निलम्बन होना चाहिए। Santosh Mishra ने कहा कि कलेक्टर का काम प्रकाशक का होता है।परीक्षक का नहीं। कलेक्टर ने उचित नहीं किया।Anupma Upadhyay और
Ashok Kumar Avasthi दोनों ही शिक्षा क्षेत्र से जुड़े ...हैं। दोनों के हिसाब से ही कलेक्टर का निर्णय ठीक नहीं था।
मेरी समझ में भी कलेक्टर का निर्णय बहुत बचकाना है। एक बच्चा देश और प्रदेश का नाम नहीं बता पाया इस बात के लिए प्रधानाध्यापक को निलम्बित करना और शिक्षक की वेतनवृद्धि रोकना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता। ऐसे तो फिर कल को कोई सचिव आएगा और किसी सार्वजनिक जगह टूटी हुई सड़क देखकर या कहीं गन्दगी देखकर कलेक्टर को निलम्बित कर देगा।
आईएएस अधिकारियों का यह रवैया बहुत बचकाना है। प्रचार प्रिय अधिकारी अपने साथ पत्रकारों का अमला लेकर चलते हैं। कोई सख्त कदम उठाया और वाह-वाही लूटकर खुश हो लेते हैं।
सरकारी स्कूलों की व्यवस्था आज सबसे खराब स्तर पर है। समाज के सबसे वंचित तबके के ही लोग अपने बच्चे वहां भेजते हैं। बच्चे भी जितना आते हैं उससे ज्यादा नहीं आते हैं। कुछेक स्कूलों में तो एडमिशन सत्र शुरू होने के चार–पांच माह तक चलते रहते हैं। ऐसे में बच्चे क्या पढ़ेंगे और क्या सीखेंगे।
स्कूलों में संसाधन नहीं हैं। अध्यापक नहीं हैं। अधिकारी ग्रांट का पैसा दायें-बाएं करने में लगे रहते हैं।
अध्यापकों का तबादला पैसे के लेन देन से होता है। भ्रष्टाचार का हाल यह है कि अध्यापकों अपनी छुट्टी स्वीकृत कराने और खुद का फंड का पैसा निकालने के लिए बाबू को पैसे देते हैं। नकल के लिए स्कूल नीलाम होते हैं।
अध्यापकों की ड्यूटी कई तरह के काम के लिए अधिकारी लगा देते हैं। कभी चुनाव, कभी फ़ार्म जाँच , कभी छत्रवृत्ति वितरण और कभी कहीँ।कई जगह मिड डे मील की व्यवस्था भी अध्यापक के जिम्में है।
हमारी भतीजी के ससुर अभी पिछले साल जून में रिटायर हुए। प्रधाना अध्यापक थे वे। कक्षा 6,7 और 8 तक स्कूल था। उनके अलावा कोई और मास्टर भी नहीं था स्कूल में। अकेले 3 क्लास को पढ़ाते थे। मिड डे मील का खाना बंटवाना होता था। रिटायरमेंट तक उनके स्कूल में दूसरा अध्यापक नहीँ आया। आखिरी दिन बगल के गाँव के स्कूल के अध्यापक को स्कूल की चाबी सौंपकर घर आये।
अब ऐसे में कोई अधिकारी जाए और बच्चे से कुछ पूछे और फिर मास्टर साहब को सस्पेंड कर दे और समझे कि उसने शिक्षा व्यवस्था सुधार दी तब तो हो चूका।
अध्यापक भी कम दोषी नहीँ हैं इस सब के लिए लेकिन ज्यादा बड़ा दोष ऊपर के लोगों का है जो जानबूझकर या अनजाने में सरकारी शिक्षा को चौपट कर रहे हैं।
निलम्बन तो अध्यापक का वापस हो ही जायेगा और अध्यापक का इन्क्रीमेंट भी बहाल होगा लेकिन दोनों ही काम जिस तरह होंगे उसमें भ्रष्टाचार की भूमिका भी होगी। बाबुओं और अधिकारियों की उस कला में कोई निलम्बित नहीं होगा न किसी का इन्क्रीमेंट रुकेगा। सिर्फ श्रीलाल शुक्ल की बात सही साबित होगी--'हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है जिसे कोई भी लात लगा जाता है।'
कलेक्टर को व्यवस्था देखनी चाहिए कि स्कूल ठीक से चलें। अध्यापक समय से आएं। पढ़ायें।मास्टर के निलम्बन से बच्चे सीख़ने लगते तो फिर तो कलेक्टर के निलम्बन से शहर भी जगमगाने लगेंगे। लेकिन यह सच नहीं है।
आईएएस अधिकारियों का यह रवैया बहुत बचकाना है। प्रचार प्रिय अधिकारी अपने साथ पत्रकारों का अमला लेकर चलते हैं। कोई सख्त कदम उठाया और वाह-वाही लूटकर खुश हो लेते हैं।
सरकारी स्कूलों की व्यवस्था आज सबसे खराब स्तर पर है। समाज के सबसे वंचित तबके के ही लोग अपने बच्चे वहां भेजते हैं। बच्चे भी जितना आते हैं उससे ज्यादा नहीं आते हैं। कुछेक स्कूलों में तो एडमिशन सत्र शुरू होने के चार–पांच माह तक चलते रहते हैं। ऐसे में बच्चे क्या पढ़ेंगे और क्या सीखेंगे।
स्कूलों में संसाधन नहीं हैं। अध्यापक नहीं हैं। अधिकारी ग्रांट का पैसा दायें-बाएं करने में लगे रहते हैं।
अध्यापकों का तबादला पैसे के लेन देन से होता है। भ्रष्टाचार का हाल यह है कि अध्यापकों अपनी छुट्टी स्वीकृत कराने और खुद का फंड का पैसा निकालने के लिए बाबू को पैसे देते हैं। नकल के लिए स्कूल नीलाम होते हैं।
अध्यापकों की ड्यूटी कई तरह के काम के लिए अधिकारी लगा देते हैं। कभी चुनाव, कभी फ़ार्म जाँच , कभी छत्रवृत्ति वितरण और कभी कहीँ।कई जगह मिड डे मील की व्यवस्था भी अध्यापक के जिम्में है।
हमारी भतीजी के ससुर अभी पिछले साल जून में रिटायर हुए। प्रधाना अध्यापक थे वे। कक्षा 6,7 और 8 तक स्कूल था। उनके अलावा कोई और मास्टर भी नहीं था स्कूल में। अकेले 3 क्लास को पढ़ाते थे। मिड डे मील का खाना बंटवाना होता था। रिटायरमेंट तक उनके स्कूल में दूसरा अध्यापक नहीँ आया। आखिरी दिन बगल के गाँव के स्कूल के अध्यापक को स्कूल की चाबी सौंपकर घर आये।
अब ऐसे में कोई अधिकारी जाए और बच्चे से कुछ पूछे और फिर मास्टर साहब को सस्पेंड कर दे और समझे कि उसने शिक्षा व्यवस्था सुधार दी तब तो हो चूका।
अध्यापक भी कम दोषी नहीँ हैं इस सब के लिए लेकिन ज्यादा बड़ा दोष ऊपर के लोगों का है जो जानबूझकर या अनजाने में सरकारी शिक्षा को चौपट कर रहे हैं।
निलम्बन तो अध्यापक का वापस हो ही जायेगा और अध्यापक का इन्क्रीमेंट भी बहाल होगा लेकिन दोनों ही काम जिस तरह होंगे उसमें भ्रष्टाचार की भूमिका भी होगी। बाबुओं और अधिकारियों की उस कला में कोई निलम्बित नहीं होगा न किसी का इन्क्रीमेंट रुकेगा। सिर्फ श्रीलाल शुक्ल की बात सही साबित होगी--'हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है जिसे कोई भी लात लगा जाता है।'
कलेक्टर को व्यवस्था देखनी चाहिए कि स्कूल ठीक से चलें। अध्यापक समय से आएं। पढ़ायें।मास्टर के निलम्बन से बच्चे सीख़ने लगते तो फिर तो कलेक्टर के निलम्बन से शहर भी जगमगाने लगेंगे। लेकिन यह सच नहीं है।
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