हां तो हम क्या कह रहे थे ? अरे हत्तेरे की। हमने अभी कहना शुरू ही कहां किया। कोई नहीं अब शुरू करते हैं।
हां तो हुआ यह कि आज मोबाइल चार्ज था सो अलार्म बजा सही समय पर। फोन करके घरैतिन को जगाया। फिर देखा तो कल शाम की मजे-मजे में लिखी पोस्ट पर तमाम (50 से ऊपर) टिप्पणियॉ थीं। 150 करीब लोगों ने पसन्द किया था उसे। जबकि कल दोपहर की मेहनत करके लिखी पोस्ट पर कुल जमा टिप्पणियाँ दो अंकों से कम थीं। लाइक भी 60 के करीब लोगों ने किया था। इससे यह एहसास हुआ कि लोग हंसी-मजाक ज्यादा पसन्द करते हैं। सीरियस बात को सीरियसली नहीं लेते। शायद यही कारण है कि चुटकुले बाज और मसखरे टाइप लोग हर जगह लोकप्रिय हैं।
सुबह निकले तो साढ़े छह बज चुके थे। मोड़ पर एक आदमी टहलता हुआ अपने हाथ को ऊपर नीचे करता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह अपने हाथ के पास की हवा ऊपर उठाता है यह सोचकर कि अब वह नीचे नहीं आएगी लेकिन जैसे ही वह हाथ नीचे करता था वैसे ही हवा फिर नीचे आ जाती थी।
यहां मुझे न जाने क्यों पुराने जमाने के भयंकर लड़ाके राजा याद आये। नेपोलियन खासकर। बेचारे की जिंदगी का बड़ा हिस्सा घोड़े पर ही लदे-लदे खर्च हो गया। अभी इधर किसी राज्य हो फतह करके आया तब तक कोई दूसरा जीता हुआ राज्य निकल गया हाथ से। उस पर कब्ज़ा किया तब तक कोई और सरक गया। मल्लब बेचारा लड़ाई के चलते इतना हलकान कि बेचारे को प्रेम पत्र भी युध्द के मैदान से लिखने पड़ते। मुझे तो लगता है कि नेपोलियन को उसके चमचे मैदान पर दौड़ाते रहते होंगे। बेचारा यहाँ-वहाँ तलवारबाजी करता रहा और इसके चमचे माल और मौज काटते रहे। जब उसके कल्ले में बूता नहीं बचा तो ले जाकर धर दिए सेंट हेलेना द्वीप में- भजन करो बाबू तुम यहाँ बैठकर।
लोकतान्त्रिक देशों में आजकल के नेताओं के भी यही हाल हैं। बाजार उनको दौड़ता रहता है। वो बने नेपोलियन बाजार की भरी हवा अपने देश में फूंकते रहते हैं। बाजार हवा सप्लाई करता रहता है। वे बेचारे और तेजी से फूंकते है। ऐसे ही फूंकते-फूंकते बेचारों का गला बैठ जाता है। फेफड़े फूल जाते हैं तो बाजार नया मुखौटा ट्राई करता है। पुराना बेचारा पड़ा-पड़ा कुड़कूड़ाता रहता है रागदरबारी के दूरबीनसिंह की तरह।
एक बच्ची बगल से निकली साइकिल पर। हम लपककर उसके बगल में साईकल ले जाकर पूछे -स्कूल जा रही हो? किस क्लास में पढ़ती हो? कितने बजे का स्कूल है?
अब साइकिल पर बस्ता लादे स्कूल जाती बच्ची से यह पूछना कि स्कूल जा रही हो ऐसा ही है जैसे शोले में बसन्ती से अमिताभ बच्चन बसन्ती से पूछते हैं तुम्हारा नाम क्या है बसन्ती?
बच्ची ने नमस्ते अंकल कहते हुए बताया कि वह कक्षा 7 में पढ़ती है। स्कूल भी सात बजे का ही है। और कुछ बात होती तब तक उसका स्कूल आ गया और वह स्कूल की तरफ मुड़ गयी। हम चूंकि नमस्ते नहीं कर पाये थे तो हमने उसको मुस्कराते हुए टाटा,बॉय-बॉय किया।
आगे मोड़ पर तालाब की तरफ मुड़े। एक महिला अपनी बच्ची के सर पर स्कार्फ बाँध रही थी। एक बुजुर्ग महिला वहीं बैठी एक बच्चे को साथ लिए शायद स्कूल बस का इन्तजार कर रही थी।
तालाब किनारे पहुंचे तो कल मिले राजेश वहीं अकेले बैठे थे। तालाब शांत था। तालाब के ऊपर से गुजरते एक तार पर अनगिनत पक्षी एक दूसरे की तरफ मुंह किये हुए बैठे थे। एक की पूंछ दूसरे की चोंच की तरफ। मानों विरोधी विचारधारा के पक्षी एक ही पर बैठे थे। इसके बावजूद सब शांत थे। मन किया कि यह सोच डालें कि लगता है पक्षी आदमियों से ज्यादा समझदार होते हैं क्या जो एक दूसरे से अलग तरह से बैठे होने के बावजूद फालतू हल्ला नहीं मचाते। लेकिन फिर नहीं सोचा। क्या फायदा सुबह-सुबह फालतू बयान बाजी का। कोई कहेगा--ऐसा ही है तो जाओ बैठो जाकर तार पर चिड़ियों की तरह। :)
सूरज भाई हमको देखकर ऐसा खुश हुए कि अपनी पूरी लाइट मेरे चेहरे पर मारकर मुस्कराने लगे। हमने कहा-'क्या करते हो भाई। सारी रौशनी हम पर लुटा दोगे तो कोई इल्जाम लगाएगा कि सूरज भाई पक्षपात करते हैं रौशनी अलाट करने में।' सूरज भाई मुस्कराते हुए पूरी कायनात को रोशन करते रहे।
राजेश से मैंने फिर पूछा तो उसने बताया कि 3-4 साल में ही पता चल गया था कि उसकी औरत के बच्चेदानी नहीँ है। हमने कहा कोई टेंशन नहीँ है। 20 साल साथ रहे। उसको कोई कुछ कहता भी नहीं था। बच्चा गोद नहीं लिया क्योंकि लोग अलग-अलग तरह समझाते थे। कोई बोला -आजकल अपनी औलाद तो साथ नहीं देती। पराई का क्या भरोसा। इसी तरह की और बातें। अब जो हुआ सो हुआ।
अपनी पत्नी के बारे में आगे बताया राजेश ने-'जब जली थी तो हम खा पीकर निकल गए थे। फिर फोन आया कि बीबी की तबियत खराब तुम्हारी तो हम सोचे कि हम तो ठीक छोड़ के आये थे। तबियत कैसे खराब हो गयी। पहुंचे तो अस्पताल ले गए। 60% जली थी। चार-पांच दिन जिन्दा रही। फिर खत्म हो गयी। याद आती है। बीस साल का साथ रहा। कभी लड़ाई नहीं हुई।'
राजेश को उसकी यादों के साथ छोड़कर हम पंकज टी स्टाल पहुंचे।वहां एक बुजुर्ग चाय पी रहे थे। बातचीत की तो पता चला कि नगर निगम में काम करते हैं। वीएफजे और जीसीएफ के लिए पानी खोलकर आये हैं।
वीएफजे के लिए 15 चूड़ी पानी खोलते हैं जीसीएफ के लिए फुल। फुल मतलब करीब 25 चूड़ी। कुछ दिन पहले नगर निगम के किसी अधिकारी ने जीसीएफ का पानी दस चूड़ी कर दिया था। रोज लोग आते कहते-खान साहब देख लो जरा। रोज-रोज की किचकिच से हमने कहा -आप टेंशन न लो। हम फुल खोल देंगे। फिर हमने साहब को बता दिया और फुल पानी देने लगे।
रीवां के रहने वाले खान साहब देखने में लग रहे 55 के आसपास होंगे। लेकिन बताया 44 साल के हैं। चार बच्चे हैं। बड़ी बच्ची 11 वीं पढ़ती है। 12 दिसम्बर को उसकी शादी है। हमने कहा- 11 वीं में पढ़ने वाली बच्ची की शादी ? इतनी जल्दी क्यों? वो बोले-उसकी उमर 22 साल है। एकाध साल फेल हुई। दामाद इंजीनियर है। कहीं प्राइवेट कुछ करता है। कहता है- पढाई की चिंता न करो। हम।पढ़ा लेंगे।
अपनी छोटी बेटी की पढाई में तारीफ़ करते हुए बोले-दसवी में है। फर्स्ट आती है।
18 साल की नौकरी के बाद भी खान साहब दिहाड़ी पर काम करते हैं। 320 रूपये रोज पर। अपने बगल में स्मार्ट फोन में डूबे लड़के की तरफ इशारा करते हुए बोले-'जे हमसे बाद में आये। परमानेंट हो गए। 18 हजार पाते हैं।'
खुद के परमानेंट न हो पाने का कारण पैसा और पैरवी का अभाव बताते हैं। बोले-'पिछले महापौर ने 57 लोगों को चार-चार लाख लेकर परमानेंट कर दिया। बाहर के लोगों को। वो तो पैसा लेकर चला गया। लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया भर्ती पर। बेचारों का पैसा डूब गया। पहले वाला महापौर अच्छा था। उसने 35 लोग परमानेंट किये। सब यहीं के थे।
हम चाय पीकर चले आये। हमको बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर याद आये जिन्होंने जिसके पास भी डिग्री थी उसको मेले में बुलाकर नौकरी दे दी। कम से काम कोई भर्ती घोटाला तो न हुआ। बाकी समस्याएं तो खैर अलग की बात हैं।
आप मजे से रहिये। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो। जय हो।
हां तो हुआ यह कि आज मोबाइल चार्ज था सो अलार्म बजा सही समय पर। फोन करके घरैतिन को जगाया। फिर देखा तो कल शाम की मजे-मजे में लिखी पोस्ट पर तमाम (50 से ऊपर) टिप्पणियॉ थीं। 150 करीब लोगों ने पसन्द किया था उसे। जबकि कल दोपहर की मेहनत करके लिखी पोस्ट पर कुल जमा टिप्पणियाँ दो अंकों से कम थीं। लाइक भी 60 के करीब लोगों ने किया था। इससे यह एहसास हुआ कि लोग हंसी-मजाक ज्यादा पसन्द करते हैं। सीरियस बात को सीरियसली नहीं लेते। शायद यही कारण है कि चुटकुले बाज और मसखरे टाइप लोग हर जगह लोकप्रिय हैं।
सुबह निकले तो साढ़े छह बज चुके थे। मोड़ पर एक आदमी टहलता हुआ अपने हाथ को ऊपर नीचे करता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह अपने हाथ के पास की हवा ऊपर उठाता है यह सोचकर कि अब वह नीचे नहीं आएगी लेकिन जैसे ही वह हाथ नीचे करता था वैसे ही हवा फिर नीचे आ जाती थी।
यहां मुझे न जाने क्यों पुराने जमाने के भयंकर लड़ाके राजा याद आये। नेपोलियन खासकर। बेचारे की जिंदगी का बड़ा हिस्सा घोड़े पर ही लदे-लदे खर्च हो गया। अभी इधर किसी राज्य हो फतह करके आया तब तक कोई दूसरा जीता हुआ राज्य निकल गया हाथ से। उस पर कब्ज़ा किया तब तक कोई और सरक गया। मल्लब बेचारा लड़ाई के चलते इतना हलकान कि बेचारे को प्रेम पत्र भी युध्द के मैदान से लिखने पड़ते। मुझे तो लगता है कि नेपोलियन को उसके चमचे मैदान पर दौड़ाते रहते होंगे। बेचारा यहाँ-वहाँ तलवारबाजी करता रहा और इसके चमचे माल और मौज काटते रहे। जब उसके कल्ले में बूता नहीं बचा तो ले जाकर धर दिए सेंट हेलेना द्वीप में- भजन करो बाबू तुम यहाँ बैठकर।
लोकतान्त्रिक देशों में आजकल के नेताओं के भी यही हाल हैं। बाजार उनको दौड़ता रहता है। वो बने नेपोलियन बाजार की भरी हवा अपने देश में फूंकते रहते हैं। बाजार हवा सप्लाई करता रहता है। वे बेचारे और तेजी से फूंकते है। ऐसे ही फूंकते-फूंकते बेचारों का गला बैठ जाता है। फेफड़े फूल जाते हैं तो बाजार नया मुखौटा ट्राई करता है। पुराना बेचारा पड़ा-पड़ा कुड़कूड़ाता रहता है रागदरबारी के दूरबीनसिंह की तरह।
एक बच्ची बगल से निकली साइकिल पर। हम लपककर उसके बगल में साईकल ले जाकर पूछे -स्कूल जा रही हो? किस क्लास में पढ़ती हो? कितने बजे का स्कूल है?
अब साइकिल पर बस्ता लादे स्कूल जाती बच्ची से यह पूछना कि स्कूल जा रही हो ऐसा ही है जैसे शोले में बसन्ती से अमिताभ बच्चन बसन्ती से पूछते हैं तुम्हारा नाम क्या है बसन्ती?
बच्ची ने नमस्ते अंकल कहते हुए बताया कि वह कक्षा 7 में पढ़ती है। स्कूल भी सात बजे का ही है। और कुछ बात होती तब तक उसका स्कूल आ गया और वह स्कूल की तरफ मुड़ गयी। हम चूंकि नमस्ते नहीं कर पाये थे तो हमने उसको मुस्कराते हुए टाटा,बॉय-बॉय किया।
आगे मोड़ पर तालाब की तरफ मुड़े। एक महिला अपनी बच्ची के सर पर स्कार्फ बाँध रही थी। एक बुजुर्ग महिला वहीं बैठी एक बच्चे को साथ लिए शायद स्कूल बस का इन्तजार कर रही थी।
तालाब किनारे पहुंचे तो कल मिले राजेश वहीं अकेले बैठे थे। तालाब शांत था। तालाब के ऊपर से गुजरते एक तार पर अनगिनत पक्षी एक दूसरे की तरफ मुंह किये हुए बैठे थे। एक की पूंछ दूसरे की चोंच की तरफ। मानों विरोधी विचारधारा के पक्षी एक ही पर बैठे थे। इसके बावजूद सब शांत थे। मन किया कि यह सोच डालें कि लगता है पक्षी आदमियों से ज्यादा समझदार होते हैं क्या जो एक दूसरे से अलग तरह से बैठे होने के बावजूद फालतू हल्ला नहीं मचाते। लेकिन फिर नहीं सोचा। क्या फायदा सुबह-सुबह फालतू बयान बाजी का। कोई कहेगा--ऐसा ही है तो जाओ बैठो जाकर तार पर चिड़ियों की तरह। :)
सूरज भाई हमको देखकर ऐसा खुश हुए कि अपनी पूरी लाइट मेरे चेहरे पर मारकर मुस्कराने लगे। हमने कहा-'क्या करते हो भाई। सारी रौशनी हम पर लुटा दोगे तो कोई इल्जाम लगाएगा कि सूरज भाई पक्षपात करते हैं रौशनी अलाट करने में।' सूरज भाई मुस्कराते हुए पूरी कायनात को रोशन करते रहे।
राजेश से मैंने फिर पूछा तो उसने बताया कि 3-4 साल में ही पता चल गया था कि उसकी औरत के बच्चेदानी नहीँ है। हमने कहा कोई टेंशन नहीँ है। 20 साल साथ रहे। उसको कोई कुछ कहता भी नहीं था। बच्चा गोद नहीं लिया क्योंकि लोग अलग-अलग तरह समझाते थे। कोई बोला -आजकल अपनी औलाद तो साथ नहीं देती। पराई का क्या भरोसा। इसी तरह की और बातें। अब जो हुआ सो हुआ।
अपनी पत्नी के बारे में आगे बताया राजेश ने-'जब जली थी तो हम खा पीकर निकल गए थे। फिर फोन आया कि बीबी की तबियत खराब तुम्हारी तो हम सोचे कि हम तो ठीक छोड़ के आये थे। तबियत कैसे खराब हो गयी। पहुंचे तो अस्पताल ले गए। 60% जली थी। चार-पांच दिन जिन्दा रही। फिर खत्म हो गयी। याद आती है। बीस साल का साथ रहा। कभी लड़ाई नहीं हुई।'
राजेश को उसकी यादों के साथ छोड़कर हम पंकज टी स्टाल पहुंचे।वहां एक बुजुर्ग चाय पी रहे थे। बातचीत की तो पता चला कि नगर निगम में काम करते हैं। वीएफजे और जीसीएफ के लिए पानी खोलकर आये हैं।
वीएफजे के लिए 15 चूड़ी पानी खोलते हैं जीसीएफ के लिए फुल। फुल मतलब करीब 25 चूड़ी। कुछ दिन पहले नगर निगम के किसी अधिकारी ने जीसीएफ का पानी दस चूड़ी कर दिया था। रोज लोग आते कहते-खान साहब देख लो जरा। रोज-रोज की किचकिच से हमने कहा -आप टेंशन न लो। हम फुल खोल देंगे। फिर हमने साहब को बता दिया और फुल पानी देने लगे।
रीवां के रहने वाले खान साहब देखने में लग रहे 55 के आसपास होंगे। लेकिन बताया 44 साल के हैं। चार बच्चे हैं। बड़ी बच्ची 11 वीं पढ़ती है। 12 दिसम्बर को उसकी शादी है। हमने कहा- 11 वीं में पढ़ने वाली बच्ची की शादी ? इतनी जल्दी क्यों? वो बोले-उसकी उमर 22 साल है। एकाध साल फेल हुई। दामाद इंजीनियर है। कहीं प्राइवेट कुछ करता है। कहता है- पढाई की चिंता न करो। हम।पढ़ा लेंगे।
अपनी छोटी बेटी की पढाई में तारीफ़ करते हुए बोले-दसवी में है। फर्स्ट आती है।
18 साल की नौकरी के बाद भी खान साहब दिहाड़ी पर काम करते हैं। 320 रूपये रोज पर। अपने बगल में स्मार्ट फोन में डूबे लड़के की तरफ इशारा करते हुए बोले-'जे हमसे बाद में आये। परमानेंट हो गए। 18 हजार पाते हैं।'
खुद के परमानेंट न हो पाने का कारण पैसा और पैरवी का अभाव बताते हैं। बोले-'पिछले महापौर ने 57 लोगों को चार-चार लाख लेकर परमानेंट कर दिया। बाहर के लोगों को। वो तो पैसा लेकर चला गया। लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया भर्ती पर। बेचारों का पैसा डूब गया। पहले वाला महापौर अच्छा था। उसने 35 लोग परमानेंट किये। सब यहीं के थे।
हम चाय पीकर चले आये। हमको बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर याद आये जिन्होंने जिसके पास भी डिग्री थी उसको मेले में बुलाकर नौकरी दे दी। कम से काम कोई भर्ती घोटाला तो न हुआ। बाकी समस्याएं तो खैर अलग की बात हैं।
आप मजे से रहिये। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो। जय हो।
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