Sunday, November 29, 2015

हमारा नाम बहुरुपिया है

कल रात को डिनर के बाद हम लोग शहर गए कॉफी पीने। समदड़िया के पास बनी सड़क किनारे की दुकानों में से एक के पास की फुटपाथ पर प्लास्टिक की कुर्सियों पर विराजते हुए काफी पी गयी।

दुकान पर कॉफी सर्व करने वाला बच्चा 14 साल से कम ही रहा होगा। एक ट्रे में धरकर कॉफी लाया सबके लिए। हमने कप रखने के लिए स्टूल मंगवाया। बेचारा वह भी ले आया। रात दस के ऊपर समय था। कम उम्र का बच्चा इतनी रात किसी जगह काम करे यह कानूनन जरूरत अपराध होगा। लेकिन शहर के बीचोबीच धड़ल्ले से यह सामाजिक अपराध हो रहा था। हम भी हा हा ही ही करते हुए इसमें सहयोग कर रहे थे।

इस बीच एक बच्ची हम लोगों के पास आकर भीख मांगती रही। हम लोगों में से किसी ने उसको तवज्जो नहीं दी। कुछ देर बाद झक मारकर वह दूसरे लोगों की तरफ चली गयी। बच्ची की उम्र 10-12 साल से अधिक नहीं रही होगी।

कॉफी पीकर चलने को हुए तो एक बुजुर्गवार आ गए और कुछ मांगने लगे। साथी लोग चल दिए थे लेकिन हम उनसे बतियाने लगे।

बुजुर्गवार सतना के रहने वाले थे। एक बेटा है उनका। किसी बनिए के यहां सतना में ही काम करता है। बाप को खाने को नहीं देता/दे पाता तो बाप भीख मांगता है।

बुजुर्ग ने बताया कि पिछले आठ-दस साल से मांगने के धंधे में उतरे हैं वे। इसके पहले बैलगाड़ी चलाते थे। लोगों का माल ढोते थे। जमींदारों और किसानों के लिए माल ढुलाई करते थे।

उम्र पूछी तो बताया सन 1936 की पैदाइश है। मतलब जिस साल मुंशी प्रेमचन्द नहीं रहे थे शायद। मतलब 1 साल कम अस्सी। पत्नी 20 साल पहले नहीं रहीं।

नया टाइप स्वेटर पहने थे बुजुर्गवार। बोले-'एक बिटिया ने दिया एक हफ्ते पहले।' हमने कहा-'बढ़िया लग रहा है।' तो मुस्कराने लगे। तब तक हम लोगों में से किसी ने कुछ पैसे नहीं दिए थे।

सोते कहां हो के सवाल के जबाब में बोले-'यहीं कहीं फुटपाथ में सो जाते हैं।' खाना खा चुके थे शाम को ही। दाल-रोटी।

आठ-दस दिन में सतना चले जाते हैं बुजुर्गवार। एकाध दिन रहते हैं। फिर वापस चले आते जबलपुर। मांगते-खाते हैं। बताया-'20/25 रुपया मिलि जात हैं। खाय-पिए भरे का हुई जात है।'

हमने नाम पूछा तो बोले-'नाम माँ का धरा है। समझ लेव बहुरूपिया नाम है हमार।' यह कहकर ठठाकर हंस दिए। आधे से ज्यादा दांत विदा हो गए थे। बचे हुए दांत ऐसे लग रहे मानों राज्य सभा में कोई सत्र चल रहा हो और सदन के ज्यादातर सदस्य वहां से गोल हो गए हों।

बुजुर्ग की हंसी में साथ देने के लिए हम भी हंसे। हाथ पकड़कर हिलाया कि ये तो ऊँची बात कह दी। इस समय तक हमारे एक साथी ने दस रूपये का एक नोट उनको दिया। हमने कहा-'वाह बाबा, तुम्हारे तो मजे हो गए।'

इसके बाद हमने उनका फोटो खींचने के लिए मोबाईल कैमरा उनकी तरफ किया। हमारी इस हरकत की भनक लगते ही बुजुर्गवार एकदम बच्चों की तरह उछलकर फुटपाथ पर चढ़े। कुर्सियों के पीछे से होते हुए फिर सड़क पर उतरकर दुकानों की भीड़ में मिल गए। शायद। अपनी फोटो नहीं खिंचवाना चाहते होंगे।

मैं पहली बार आया था यहां कॉफी पीने। हमारे साथी बताने लगे यह हमेशा मिलता है यहां इसी तरह मांगते हुए। आपने यह तरकीब अच्छी बताई इससे बचने के लिए।

हम अभी उस सोच रहे हैं कि कैसे बहुरूपिया समय और समाज में जी रहे हैं हम जहां 79 साल का एक बुजुर्ग और 10/12 साल की बच्ची रात के 11 बजे भीख मांगती है। ऐसे समय में जब लोगों अनगिनत लोगों को एक समय का खाना नसीब नहीं होता। प्राइम टाइम बहसों में इन पर कोई चर्चा नहीं होती। इसके बदले किसी के दिए बयान का कोई हिस्सा पकड़कर हफ्तों चेमगोइयां होती रहती हैं। बीच में उड़ती-उड़ती सी खबर आती है (और फिर हवा भी हो जाती है) कि अम्बानी लोगों ने 11000 करोड़ की गैस ज्यादा निकाल ली। इस पर जांच के बारे में किसी चैनल पर कोई बहस नहीं होती।

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