आज फिर टहलने नहीं गए। 5 बजे जगे। फिर लेटे-लेटे सोचते रहे कि अब निकलें। अब निकलें। लेकिन सोचने में ही इतना समय निकल गया कि निकल ही नहीं पाये।
ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ। काम का पूरा खाका तय है दिमाग में कि ऐसे करेंगे। वैसे करेंगे। पक्का फूल प्रूफ प्लान रहता है। पर लफ़ड़ा यह कि जो काम दिमाग में कई बार पूरा कर लेते हैं वह वास्तविकता में अक्सर शुरू भी नहीं हो पाता। काम का प्लान भी झल्लाकर 'दिमाग छोड़कर' चला जाता है।
दिमाग छोड़कर चले जाने की बात लिखते ही एक ठो आइडिया घुस गया दिमाग में, बिना में आई कम इन सर बोले। नठिया बोला-- इस बात को देश छोड़कर जाने की बात करके असहिष्णुता वाली बात और आमिर खान जी के हालिया बयान से जोड़कर एक ठो लेख घसीट दें। आज का सबसे गरम विषय है। लपक लेंगे लोग।
आज बयान भी छपा है अखबार में आमिर खान का कि उनकी पत्नी किरण इस बात से चिंतित हैं कि उनके आसपास का वातावरण कैसा हो गया है। वह रोज अखबार पढ़कर भयभीत हो जाती हैं।
अब आगे लिखने में समस्या यह है कि हम आमिर खान का समर्थन करें कि विरोध यह तय नहीँ कर पा रहे। समर्थन करते हैं तो आफत और नहीं करते तो डबल आफत। कुछ नहीं कहते तो लोग दिनकर जी के हवाले से हमारे नाम एफ आई आर लिखवा देंगे:
इस तरह की दुविधा वाली स्थिति से बचने के लिए सबसे सुरक्षित तरीका 'खोया पानी' व्यंग्य उपन्यास के मास्टर फ़ाख़िर हुसैन जी का है। मास्टर साहब अंग्रेजी पढ़ाते थे और कहते थे-
' जैसे हमारी गायकी की बुनियाद तबले पर है, गुफ्तगू की बुनियाद गाली पर है, इसी तरह अंग्रेजी की बुनियाद ग्रामर पर है। अगर कमाल हासिल करना है तो बुनियाद मजबूत करो।
मास्टर फ़ाख़िर हुसैन की अपनी अंग्रेजी, इमारत निर्माण का अद्भुत नमूना और संसार के सात आश्चर्यों में से एक थी, मतलब यह कि बगैर नींव की थी। कई जगह तो छत भी नहीं थी और जहाँ थी उसे चमगादड़ों की तरह अपने पैरों की अड़वाड़ से थाम रखा था। उस ज़माने में अंग्रेजी भी उर्दू में पढाई जाती थी लिहाजा कुछ गिरती हुई दीवारों को उर्दू शेरों के पुश्ते थामे हुए थे।’
ऐसी नायाब अंग्रेजी ग्रामर की बुनियाद वाले मास्टर फ़ाख़िर हुसैन अपने क्लास के हर बच्चे की राय से सहमत हो जाते यह कहते हुए--'अच्छा तो आप गोया इस लिहाज से कह रहे हैं।'
फ़ाख़िर हुसैन के फार्मूले के हिसाब से आमिर खान की बात का समर्थन करना हो तो कह सकते हैं कि देखो आमिर के बयान देते ही उनको गरियाना शुरू हो गया। उनका डर जायज है।
आमिर की बात का विरोध करने के लिए कह सकते हैं कि देखो तुम खुले आम ऐसा कह रहे हो फिर भी अभी तक पिटे नहीँ इसलिए तुम्हारी बात सिरे से ख़ारिज करने लायक है। थोड़ा और बुजुर्ग होते तो यह भी कहते- 'अरे आजकल पत्नियां न जाने क्या-क्या कहती रहतीं हैं। उनकी बात को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं।'
इसी बात का विस्तार पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के उस बयान से किया जा सकता है जिसमें उनसे एक सभा में किसी के सवाल -'आजादी से हमें क्या हासिल हुआ?' का जबाब देते हुए उन्होंने कहा था-'देश के प्रधानमंत्री से तुम यह सवाल कर पा रहे हो यह आजादी आजादी हासिल हुई तुमको आजादी से।'
तो यहां आमिर खान जी को यह समझना चाहिए कि उनको इतनी आजादी हासिल है कि वे अपनी देश के माहौल की बुराई खुले आम कर पा रहे हैं। मीडिया भी उनके बयान को प्रमुखता से छाप रहा है। प्रसारित कर रहा है। और देश कितनी आजादी दे भाई? देश की जान लोगे क्या?
अरे हाँ याद आया कुछ लोग यह कहकर आमिर की बात का समर्थन कर सकते हैं कि उनके ख़िलाफ गाली गलौज शुरू हो गयी। लोग न जाने क्या-क्या कह रहे हैं उनके खिलाफ। इस बात की काट के लिये आप फिर से मेरे लेख के शुरू में मास्टर फ़ारिख हुसैन के हवाले से कही बात फिर से बांचिये (यही लिख देते हैं आप शुरुआत में तो जाने से रहे) -गुफ्तगू की बुनियाद गाली पर है।
तो भाई जिन लोगों को लगता है कि आमिर को गरियाया जा रहा है वो दरअसल गलत समझ रहे हैं। लोग आमिर को गरिया नहीं रहे हैं बस उनसे गुफ्तगू कर रहे हैं और उनकी गफ्तगू की बुनियाद माशा अल्लाह खासी मजबूत है (जिसको लोग गाली गलौज समझ रहे हैं) । अब सबको अख़बार में जगह तो मिल नहीँ सकती तो फेसबुक, ट्विटर के हवाले से गुफ्तगू में मशगूल हैं।
आमिर खान पता नहीं कौन से देश जाने की सोच रहे हैं। यह वे जाने लेकिन उनको कोई समझाये कि दुनिया के हाल बड़े खराब हैं। यूरोप और अमेरिका बेचारे आईएसआईएस से हलकान हैं।तगड़ी सरदी भी पड़ रही उधर। पता नहीं अंगीठी तापने को भी मिलेगी कि नहीं। अरब देशों का पता नहीं कौन देश बमबारी की चपेट में कब आ जाए। पूरे गोले में मारकाट मची हुई है।
मरीचिका उपन्यास ने ज्ञान चतुर्वेदी जी ने एक कवि का चित्रण किया है। कवि देश की स्थिति से हताश निराश है। कहता है कि कविता लिखने से कुछ नहीं होगा। कोई बदलाव नहीं होना। घटिया कवि आगे बढ़ रहे हैं। बहुत खराब समय है।
कवि की पत्नी कवि से कहती है -'अच्छे समय में कविता तो सब लिख लेते हैं। सच्चा कवि तो वही होता है जो कठिन समय में कविता लिखे। तुम्हारी कविता के लिखने के लिए सबसे उपयुक्त समय तो यही है। लिखना बन्द मत करो।लिखो।'
तो आमिर बाबू अगर समय खराब भी है तो यह समय यहां से भागने का नहीं है। बल्कि यही सबसे उचित समय यहां रहने का और देश समाज के लिए कुछ करने का।
बात अख़बार पढ़कर भयभीत होने की है तो कुछ दिन अख़बार पढ़ना बन्द कर दो। या फिर जो अख़बार पढ़कर घबराहट होती है उनके खिलाफ मोर्चा निकालो। वैसे आज के अख़बार में भी तीन खबरें हैं:
इनखबरों को पढ़िए। घबराहट दूर होगी।
यह मैंने जो लिखा वह ऐसे ही लिखा। आपका नजरिया क्या है मुझे पता नहीं। पर जो भी होगा हम उससे मास्टर फ़ाख़िर हुसैन घराने के विद्यार्थी की तरह तड़ से सहमत हो जाएंगे यह कहते हुए- गोया आप उस लिहाज से कह रहे हैं। :)
’खोया पानी’ एक अद्भुत व्यंग्य उपन्यास है। आप इसको आन लाइन यहां पढ़ सकते हैं।
ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ। काम का पूरा खाका तय है दिमाग में कि ऐसे करेंगे। वैसे करेंगे। पक्का फूल प्रूफ प्लान रहता है। पर लफ़ड़ा यह कि जो काम दिमाग में कई बार पूरा कर लेते हैं वह वास्तविकता में अक्सर शुरू भी नहीं हो पाता। काम का प्लान भी झल्लाकर 'दिमाग छोड़कर' चला जाता है।
दिमाग छोड़कर चले जाने की बात लिखते ही एक ठो आइडिया घुस गया दिमाग में, बिना में आई कम इन सर बोले। नठिया बोला-- इस बात को देश छोड़कर जाने की बात करके असहिष्णुता वाली बात और आमिर खान जी के हालिया बयान से जोड़कर एक ठो लेख घसीट दें। आज का सबसे गरम विषय है। लपक लेंगे लोग।
आज बयान भी छपा है अखबार में आमिर खान का कि उनकी पत्नी किरण इस बात से चिंतित हैं कि उनके आसपास का वातावरण कैसा हो गया है। वह रोज अखबार पढ़कर भयभीत हो जाती हैं।
अब आगे लिखने में समस्या यह है कि हम आमिर खान का समर्थन करें कि विरोध यह तय नहीँ कर पा रहे। समर्थन करते हैं तो आफत और नहीं करते तो डबल आफत। कुछ नहीं कहते तो लोग दिनकर जी के हवाले से हमारे नाम एफ आई आर लिखवा देंगे:
'जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध।'
इस तरह की दुविधा वाली स्थिति से बचने के लिए सबसे सुरक्षित तरीका 'खोया पानी' व्यंग्य उपन्यास के मास्टर फ़ाख़िर हुसैन जी का है। मास्टर साहब अंग्रेजी पढ़ाते थे और कहते थे-
' जैसे हमारी गायकी की बुनियाद तबले पर है, गुफ्तगू की बुनियाद गाली पर है, इसी तरह अंग्रेजी की बुनियाद ग्रामर पर है। अगर कमाल हासिल करना है तो बुनियाद मजबूत करो।
मास्टर फ़ाख़िर हुसैन की अपनी अंग्रेजी, इमारत निर्माण का अद्भुत नमूना और संसार के सात आश्चर्यों में से एक थी, मतलब यह कि बगैर नींव की थी। कई जगह तो छत भी नहीं थी और जहाँ थी उसे चमगादड़ों की तरह अपने पैरों की अड़वाड़ से थाम रखा था। उस ज़माने में अंग्रेजी भी उर्दू में पढाई जाती थी लिहाजा कुछ गिरती हुई दीवारों को उर्दू शेरों के पुश्ते थामे हुए थे।’
ऐसी नायाब अंग्रेजी ग्रामर की बुनियाद वाले मास्टर फ़ाख़िर हुसैन अपने क्लास के हर बच्चे की राय से सहमत हो जाते यह कहते हुए--'अच्छा तो आप गोया इस लिहाज से कह रहे हैं।'
फ़ाख़िर हुसैन के फार्मूले के हिसाब से आमिर खान की बात का समर्थन करना हो तो कह सकते हैं कि देखो आमिर के बयान देते ही उनको गरियाना शुरू हो गया। उनका डर जायज है।
आमिर की बात का विरोध करने के लिए कह सकते हैं कि देखो तुम खुले आम ऐसा कह रहे हो फिर भी अभी तक पिटे नहीँ इसलिए तुम्हारी बात सिरे से ख़ारिज करने लायक है। थोड़ा और बुजुर्ग होते तो यह भी कहते- 'अरे आजकल पत्नियां न जाने क्या-क्या कहती रहतीं हैं। उनकी बात को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं।'
इसी बात का विस्तार पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के उस बयान से किया जा सकता है जिसमें उनसे एक सभा में किसी के सवाल -'आजादी से हमें क्या हासिल हुआ?' का जबाब देते हुए उन्होंने कहा था-'देश के प्रधानमंत्री से तुम यह सवाल कर पा रहे हो यह आजादी आजादी हासिल हुई तुमको आजादी से।'
तो यहां आमिर खान जी को यह समझना चाहिए कि उनको इतनी आजादी हासिल है कि वे अपनी देश के माहौल की बुराई खुले आम कर पा रहे हैं। मीडिया भी उनके बयान को प्रमुखता से छाप रहा है। प्रसारित कर रहा है। और देश कितनी आजादी दे भाई? देश की जान लोगे क्या?
अरे हाँ याद आया कुछ लोग यह कहकर आमिर की बात का समर्थन कर सकते हैं कि उनके ख़िलाफ गाली गलौज शुरू हो गयी। लोग न जाने क्या-क्या कह रहे हैं उनके खिलाफ। इस बात की काट के लिये आप फिर से मेरे लेख के शुरू में मास्टर फ़ारिख हुसैन के हवाले से कही बात फिर से बांचिये (यही लिख देते हैं आप शुरुआत में तो जाने से रहे) -गुफ्तगू की बुनियाद गाली पर है।
तो भाई जिन लोगों को लगता है कि आमिर को गरियाया जा रहा है वो दरअसल गलत समझ रहे हैं। लोग आमिर को गरिया नहीं रहे हैं बस उनसे गुफ्तगू कर रहे हैं और उनकी गफ्तगू की बुनियाद माशा अल्लाह खासी मजबूत है (जिसको लोग गाली गलौज समझ रहे हैं) । अब सबको अख़बार में जगह तो मिल नहीँ सकती तो फेसबुक, ट्विटर के हवाले से गुफ्तगू में मशगूल हैं।
आमिर खान पता नहीं कौन से देश जाने की सोच रहे हैं। यह वे जाने लेकिन उनको कोई समझाये कि दुनिया के हाल बड़े खराब हैं। यूरोप और अमेरिका बेचारे आईएसआईएस से हलकान हैं।तगड़ी सरदी भी पड़ रही उधर। पता नहीं अंगीठी तापने को भी मिलेगी कि नहीं। अरब देशों का पता नहीं कौन देश बमबारी की चपेट में कब आ जाए। पूरे गोले में मारकाट मची हुई है।
मरीचिका उपन्यास ने ज्ञान चतुर्वेदी जी ने एक कवि का चित्रण किया है। कवि देश की स्थिति से हताश निराश है। कहता है कि कविता लिखने से कुछ नहीं होगा। कोई बदलाव नहीं होना। घटिया कवि आगे बढ़ रहे हैं। बहुत खराब समय है।
कवि की पत्नी कवि से कहती है -'अच्छे समय में कविता तो सब लिख लेते हैं। सच्चा कवि तो वही होता है जो कठिन समय में कविता लिखे। तुम्हारी कविता के लिखने के लिए सबसे उपयुक्त समय तो यही है। लिखना बन्द मत करो।लिखो।'
तो आमिर बाबू अगर समय खराब भी है तो यह समय यहां से भागने का नहीं है। बल्कि यही सबसे उचित समय यहां रहने का और देश समाज के लिए कुछ करने का।
बात अख़बार पढ़कर भयभीत होने की है तो कुछ दिन अख़बार पढ़ना बन्द कर दो। या फिर जो अख़बार पढ़कर घबराहट होती है उनके खिलाफ मोर्चा निकालो। वैसे आज के अख़बार में भी तीन खबरें हैं:
1.80 साल की उमर में सिखा रहे हैं योग।
2. माँ के दुलार से 6 महिने से कोमा में रहा बच्चा उठ बैठा।
3. महिला पायलट ने मरते-मरते बचाई बस्तीवासियों की जान।
इनखबरों को पढ़िए। घबराहट दूर होगी।
यह मैंने जो लिखा वह ऐसे ही लिखा। आपका नजरिया क्या है मुझे पता नहीं। पर जो भी होगा हम उससे मास्टर फ़ाख़िर हुसैन घराने के विद्यार्थी की तरह तड़ से सहमत हो जाएंगे यह कहते हुए- गोया आप उस लिहाज से कह रहे हैं। :)
’खोया पानी’ एक अद्भुत व्यंग्य उपन्यास है। आप इसको आन लाइन यहां पढ़ सकते हैं।
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