हमारी शक्ल से त्रस्त एक पाठक Mukesh Bhalse ने मेरी ब्लॉग की एक पोस्ट के गूगल+ पर दिखने पर यह टिप्पणी की:
"साला जब भी G+ खोलो 10-15 बार तुम्हारा सड़ा मुंह देखना पड़ता है. क्या नौटँकी है यार क्यों मुंह उठाकर चले आते हो ऐसा लगता है G+ तुम्हारे बाप की बपौती है."
मुकेश भाई की तकलीफ सुनकर बड़ी शर्म आई। मन किया किया काश धरती में छह फिट का गढ्ढा होता कहीं आसपास तो उसमें पांच-दस मिनट के लिए समाकर वापस लौट आ...ते।
मुकेश भाई इंदौर से हैं जहां से कैलाश विजयवर्गीय जी हैं जो कि अपने क्रांतिकारी बयानों के लिए जाने जाते हैं। वैसे इंदौर में ही अर्चना चावजी भी रहती हैं जिनको हम उनके बेहतरीन पॉडकास्ट के लिए भी जानते हैं।
हुआ यह कि पिछले दिनों फेसबुक की तमाम पोस्टें हमने अपने ब्लॉग पर डाली। ब्लॉग पर जब पोस्ट आती है तो वह गूगल+ पर साझा हो जाती है। एक दिन में 20 से 25 पोस्टें ब्लॉग पर डालीं तो मुकेश भाई को हर बार हमारा मुखड़ा दिखा होगा जिससे झल्लाकर उन्होंने वह लिखा जो ऊपर बताया मैंने।
यह बात जरूर गुस्से में लिखी होगी मुकेश भाई ने। गुस्से के बारे में 'खोया पानी' उपन्यास में कहा गया है:
"मिजाज, जुबान और हाथ, किसी पर काबू न था, हमेशा गुस्से में कांपते रहते। इसलिए ईंट, पत्थर, लाठी, गोली, गाली किसी का भी निशाना ठीक नहीं लगता था। :)
"साला जब भी G+ खोलो 10-15 बार तुम्हारा सड़ा मुंह देखना पड़ता है. क्या नौटँकी है यार क्यों मुंह उठाकर चले आते हो ऐसा लगता है G+ तुम्हारे बाप की बपौती है."
मुकेश भाई की तकलीफ सुनकर बड़ी शर्म आई। मन किया किया काश धरती में छह फिट का गढ्ढा होता कहीं आसपास तो उसमें पांच-दस मिनट के लिए समाकर वापस लौट आ...ते।
मुकेश भाई इंदौर से हैं जहां से कैलाश विजयवर्गीय जी हैं जो कि अपने क्रांतिकारी बयानों के लिए जाने जाते हैं। वैसे इंदौर में ही अर्चना चावजी भी रहती हैं जिनको हम उनके बेहतरीन पॉडकास्ट के लिए भी जानते हैं।
हुआ यह कि पिछले दिनों फेसबुक की तमाम पोस्टें हमने अपने ब्लॉग पर डाली। ब्लॉग पर जब पोस्ट आती है तो वह गूगल+ पर साझा हो जाती है। एक दिन में 20 से 25 पोस्टें ब्लॉग पर डालीं तो मुकेश भाई को हर बार हमारा मुखड़ा दिखा होगा जिससे झल्लाकर उन्होंने वह लिखा जो ऊपर बताया मैंने।
यह बात जरूर गुस्से में लिखी होगी मुकेश भाई ने। गुस्से के बारे में 'खोया पानी' उपन्यास में कहा गया है:
"मिजाज, जुबान और हाथ, किसी पर काबू न था, हमेशा गुस्से में कांपते रहते। इसलिए ईंट, पत्थर, लाठी, गोली, गाली किसी का भी निशाना ठीक नहीं लगता था। :)
वही हाल मुकेश का हुआ होगा। मेरी शक्ल देखते ही गुस्सा आया होगा और यह टिप्पणी लिखी उन्होंने।
हमको समझ में नहीं आया कि जबाब क्या लिखें। लेकिन कुछ देर बाद लिखा:
"हमको पता नहीं कैसे हमारा मुंह तुमको दिख जाता है। कुछ लफ़ड़ा है।
वैसे हम जानबूझकर ऐसा नहीं करते। :)
लेकिन इस बहाने तुम्हारी शक्ल दिख गयी। क्यूट लगते हो। थोड़ा मुस्कराया करो। और खूबसूरत लगोगे। शुभकामनाएं। :)
टिप्पणी का जबाब लिखने के बाद कारण समझ में आया। कारण वही जो बताया कि एक दिन में ही कई पोस्ट एक के बाद एक ब्लॉग पर पोस्ट करना। मतलब कई दिनों का बकाया काम एक साथ करना। इसीलिए कहा गया है-"आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए।"
वैसे एक बात यह भी है कि आप में से कई मित्र जो किसी का दिल दुखाने वाली बात कहने में संकोच करते हैं वे कहें भले न लेकिन मन में पक्का सोच रहे होंगे कि बन्दे (मुकेश) ने मेरे मन की बात कह दी। smile इमोटिकॉन
चलिये आप मजे कीजिये। हम अपनी आज की पोस्ट ब्लाग पर सटा देते हैं। देर की तो कल को फिर कोई गरियायेगा। :)
अरे ! प्यार से गरियाया होगा ! आपकी पोस्ट देखते ही थोड़ी देर के लिए ही सही , चेहरे पर हंसी तो आ जाती है
ReplyDeleteगूगल+ साला बना लिए है मुकेश जी ने
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