कल सुबह निखत जी फ़िर मिले तिवारी जी के साथ। इस बार सर्वहारा पुलिया पर। दो दिन पहले वे जब वे ’बुर्जआ पुलिया’ पर मिले थे तो मैंने कहा था यहां बैठे-बैठे क्या कर रहे हो! चलो फ़ैक्ट्री में काम करो चलकर। बहुत काम आया है इस बार के लिये। निखतजी ’मास्टरक्राफ़्ट मैन’ के पद से। कामगार लोगों में ओवरटाइम मिलाकर सबसे ज्यादा तन्ख्वाह इसी में मिलती है। इसके लिये लोग आगे ’चार्जमैन’ के प्रमोशन के लिये भी मना कर देते हैं। कौन तन्ख्वाह कम कराये।
दो दिन पहले अन्दर चलकर काम करने की बात को निखतजी मन में धर लिये थे। कल पूछे -"क्या सही में काम के लिये लिया जा रहा है रिटायर्ड लोगों को। टेम्पेरेरी लिया जायेगा या परमानेंट! " हमने कहा अरे न भाई भर्ती की कोई बात नहीं चल रही। लेकिन काम करने के लिये कौन मना है। चलो काम करने!
निखतजी जिन्दगी भर विभाग में काम करते रहे हैं। पता है रिटायर होने के बाद दुबारा बुलावा नहीं आता। फ़िर भी आशा किये हैं। इनका क्या ये तो कम पढे लिखे हैं। अपने यहां तो शीर्षतम पदों पर बैठे लोग अपने कार्यकाल में बढोत्तरी के सपने देखते रहते हैं। अपने काम का हवाला देकर प्रयास में लगे रहते हैं कि उनको ’एकस्टेंशन’ मिल जाये। इस प्रयास के दौरान अगला जो कोई शीर्षस्थ पद का दावेदार होता है उसके धुकुर-पु्कुर होती होगी कि कहीं सही में हो न जाये ’एक्स्टेंशन’।
निखतजी अपने घर को अभी तक छोड़े नहीं है। कुछ दिन और रहेंगे। बच्चे के काम-काज के लिये और नौकरी-चाकरी के जुगाड़ के लिये रहना है अभी यहां। वैसे भी घर की यहां कौन मारामारी है। खाली नहीं मिलेगा तो अपने खुद के मकान में रहेंगे लोग और किराया अलग से लेंगे।
आज हमारे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी Vinod Kumar Singh जी ने जन्मदिन का अग्रिम बधाई देते हुये पुलिया के हाल-चाल पूछे। वे काफ़ी समय दमदम फ़ैक्ट्री में महाप्रबंधक रहने के बाद आजकल आयुध निर्माणी बोर्ड में हैं। यहां वीएफ़जे में 16 साल रहे हैं। पुलिया पर बहुत दिन बैठे हैं। तमाम बार मरम्मत भी कराई है।
आज ज्ञानदत्त जी Gyan Dutt Pandey ने अपने स्टेटस में शाम को लिखा -"आज बांचा नहीं फेसबुक। आज पुलिया सुकुल किसे घेरे पुलिया पर?"
आज शाम को गये थे पुलिया पर शाम को। दिन में रामफ़ल यादव से मुलाकात नहीं हुई ’एबीपी इनामों’ के चक्कर में। शाम को सब लोग घर वापसी की हड़बड़ी में थे। कोई तसल्ली से बैठा नहीं था सो वापस लौट आये यह किस्सा लिख मारा!
आप सबको हिन्दी दिवस मुबारक हो!
- अनूप शुक्ल इस पुलिया पर ज्यादातर कामगार लोग और आम आदमी बैठते हैं। ज्यादा गुलजार रहती है। पेड़ की छांह भी है यहां। इसलिये इसको ’सर्वहारा पुलिया’ नाम दिया और इसई लिये इसको तरजीह मिलती है। लोकतंत्र का तकाजा है जहां जनता होगी उसको भाव मिलेगा। Amit Kumar Srivastava
- Amit Kumar Srivastava मुझे लगा ,पीछे ' V ' के आकार में वृक्ष विजयी भवः होने का सा भाव देता है ,इसलिए लोग यहीं अधिक बैठते होंगे ।
- अजय कुमार झा पुलिया का माप भेजिए तो ..आपही के नाम से रजिस्ट्री का कागज पत्तड तैयार कर देते हैं ..रिटायरी के बाद हम इसी पे एक ठो पान का गुमटी डाल लेंगे ..पुलियानामा एक्सप्रेस के बाद गुमटीनामा एक्सप्रेस में हम भी चानस पा जाएंगे ...ई मेगा पिलान पे आपका क्या कहना है कहिए
- अरुण अरोड़ा ये कहना है संजय बैगाणी का
दिमाग को तेज करना है? तो हिन्दी में पढ़िये.
-यह क्या तुक हुई?
है ना तुक. बिलकुल है.
जब आप हिन्दी में पढ़ते है तब आपके दिमाग के दोनो भाग सक्रिय रहते है, ऐसा देवनागरी लिपि में लगने वाली मात्राओं की वजह से होता है, जो दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे लगती है. इस कारण पढ़ते समय दिमाग के दोनो हिस्सों को तालमेल के साथ सक्रिय रहना पड़ता है.
जब हम हिन्दी में पढ़ रहे होते हैं दिमाग के बाएं भाग में इंसुला, कुजिफोर्म गायरस तथा फ्रंटल गायरस सक्रिय होते हैं और दाएं भाग में मिडल फ्रंटल गायरस और ऑक्सिपिटल क्षेत्र सक्रिय होते हैं. जबकि रोमन लिपि में पढ़ते समय केवल मिडल-फ्रंटल गायरस ही सक्रिय रहता है, क्योंकि रोमन सपाट एक तरफ पढ़ी जाती है.
कहना का तात्पर्य यह है कि बुद्धू मत बनो, हिन्दी पढ़ो 😀 - अनूप शुक्ल लगने का क्या है । किसी को लग सकता है कि किसी के भी वामांग के पास लोग बैठना चाहते हैं। यह भी कि ये जो V बना है पहले सटा-सटा था। बाद में आपसी मनमुटाव के चलते दूर होकर V बन गया। Amit Kumar Srivastava
- अनूप शुक्ल पता नहीं लेकिन पुलिया बैठने वाले से यह प्रमाणपत्र नहीं मांगती कि " बैठने के पूर्व कृपया बीबी धकियाओ प्रमाणपत्र प्र्स्तुत करें।"
- अनूप शुक्ल ई मेगाप्लान के बारे में यही कहना है कि यह प्लान सामंती मनोवृत्ति का परिचायक है। जैसे पहले राजा जिस किसी को भी मनमाफ़िक पाते थे उसको अपने रनिवास में शामिल करने के लिये हुड़कने लगते थे।सर्वहारा पुलिया सबकी है। इस पर कब्जा करने , रजिस्ट्री कराने की सोचना उचित प्रतीत नहीं होता बंधुवर। अजय कुमार झा
- अनूप शुक्ल पुलिया सुकुल, सुकुल पुलिया, सर्वहारा पुलिया। सब नाम हैं। जो भा जायें। किताब छपवाने में पुलिया के पीछे वाले पेड़ की तरह के न जाने कित्ते तो पेड़ कटेंगे। यह सोचते हुये किताब के बारे में नहीं सोचते। निर्मल गुप्त
- अनूप शुक्ल हिन्दी का प्रयोग करना चाहिये लेकिन संजय बेगाणी की बात अगर सही होती तो हिन्दी में पिछली सदी में खूब सारा ज्ञान लबलबा रहा होता। हिन्दी का प्रयोग बढ़ा ही है लेकिन मौलिक वैज्ञानिक खोज और अन्य कोई दिमागी बात विश्वस्तर पर दिखी नहीं। अरुण अरोड़ा
- Yash Pandey · Friends with Gyan Dutt PandeyPuliya ka mahtv ak thaka hua rahgeer hi jaan sakta hai puliya puran chaya rahe hamesa
- Yash Pandey · Friends with Gyan Dutt PandeySasakt bharat , saskt puliya, sasakt hindi bhasha hindi divas ki subhkamnaye
- अरुण अरोड़ा अनूप जी @देखिये आप हिन्दी पढते हैं और आप को बुद्धू कौन कह सकता है । इसलिए संजय की बात कोबल मिलता है
- Kajal Kumar हंयं !!! तिवाड़ी जी ने पाला बदल लिया या वाकई ग़रीब हो गए !!! कल तक तो बुर्जुआ-बुर्जुआ खेलते दिख रहे थे ..
- Kiran Dixit Niskrey, nirjeev aanay jaanay valon ke liye saransthali pulliya sabhe ke beech is prakar se chercha ka visay ban chuki hai ki ak bhe din iske batey kare bagair raha nahen ja sakta. Lagta hai pather bani Ahillya Ke tareh is pulliya ka udhar hona Anoop ji ke hathon likha hai.Nahen topulliya to pulliya he thee ise mahim mandit to Anoop jee ne he kiya.
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