कई दिनों के रिमझिम और पटापट बरसात के बीच आज अचानक सूरज भाई दिख गये। कुछ ऐसे ही जैसे 365 अंग्रेजी दिवस के बीच अचानक हिन्दी दिवस मुंडी उठाकर खड़ा हो जाये। बीच आसमान में खड़े होकर तमाम किरणों को सिनेमा के डायरेक्टर की तरह रोल समझाते हुये ड्यूटी पर तैनात कर रहे थे।
पानी से भीगे पेडों की पत्तियों, फ़ूलों और कलियों को सूरज भाई ऐसे सुखाने में लगे हुये हैं जैसे कोई सद्यस्नाता अपनी गीले बाल सुखा रही हो! सुखाते-सुखाते बाल झटकने वाले अन्दाज में सूरज भाई फ़ूल-पौधों पर हवा का फ़ुहारा के लिये सूरज भाई ने पवन देवता को ड्यूटी पर लगा रखा है। इस चक्कर में कुछ-कुछ बुजुर्ग फ़ूल नीचे भी टपक जा रहे हैं। पेड़ पर के फ़ूल गिरे फ़ूलों को ’मार्गदर्शक फ़ूल’ कहते हुये सम्मान पूर्वक निहार रहे हैं। नीचे गिरे हुये फ़ूल निरीह भाव से पेड़ पर खिलते चहकते हुये फ़ूलों को ताक रहे हैं।
पानी से भीगी सड़क को किरणें अपनी गर्मी से सुखा रही हैं। सड़क को इतना भाव मिलने से वह लाज से दोहरी होना चाहती है लेकिन कई दिनों की ठिठुरन के बाद मिली ऊष्मा के चलते वह अलसाई सी निठल्ली पसरी हुई है। आलस्य ने लाज को स्थगित रहने को कह दिया है।
बगीचे की घास भी इठलाते हुये चहक रही है। घास के बीच की नमीं किरणों की गर्मी को देखते ही उठकर चलने का उपक्रम कर रही है। किरणें और रोशनी तो नमी का खरामा-खरामा जाना देखती रहीं लेकिन उजाले ने जब देखा कि नमी के कम होने की गति नौकरशाही के काम काज की की तरह धीमी है तो उसने होमगार्ड के सिपाही की घास के बीच गर्मी का डंडा फ़टकारते हुये उसको फ़ौरन दफ़ा हो जाने का हुक्म उछाल दिया। नमी थोडी देर में ऐसे हड़बड़ाकर फ़ूट ली जैसे कांजी हाउस का की दीवार टूटने पर मवेशी निकल भागते हैं। नमी को भागते देखकर घास की पत्तियां चहकते हुये खिलखिलाने लगीं।
सूरज भाई इतनी मुस्तैदी से अपना काम अंजाम दे रहे थे कि उनको चाय के लिये बुलाने में भी संकोच हो रहा था। हमने उनको ' हैप्पी हिन्दी दिवस ’ कहा तो वो हमको देखकर मुस्कराने लगे। ’हैप्पी हिन्दी दिवस’ हमने इसलिये कहा था कि सूरज भाई टोकेंगे और कहेंगे कि आज तो कम से कम ठीक से हिन्दी बोलना चाहिये। जैसे ही वे टोकते तो हम कह देते - "सूरज भाई देखिये ’हैप्पी हिन्दी दिवस’ में ’ह’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास की छटा कैसी दर्शनीय बन पड़ी है। अभिनव प्रयोग है! "
लेकिन सूरज भाई हमारी उछल-कूद से बेखबर अपना काम करने में लगे रहे। शायद वे यह बताना और जताना चाहते हैं कि दिखावा करते रहने की बजाय काम करना ज्यादा जरूरी है।
सुबह क्या अब तो दोपहर होने वाली है। सूरज भाई का जलवा बरकरार है।
- Kiran Dixit Dhanyavad suraj bhai, aap hain to hindi divas me Anoop ko likhane ke itne samagri mil gayi .Hindi divas hai to sabd hindi ke he hone chahiye . Is divas ke madhyam se aj Anoop ji ne prakrati ki kafee majamat ke hai .Alankaron ka bhi jamker prayog kiya hai Kul milaker H .D.ka accha sadupyog kiya hai.
- बेचैन आत्मा जोरदार व्यंग्य से शुरुआत हुई। सूरज को हिंदी दिवस के दिन स्त्री बनाने का चमत्कार व्यंग्यकार ही कर सकता है। जय हो......।
- Krishna Kumar Jain लगता है सूरज जी थोड़ी देर के लिए पुलिया पर आराम करने के लिए जरूर बैठे होंगे तभी उन्हें ज्ञान हुआ होगा कि उन्हे सभी को साथ लेकर चलना है
No comments:
Post a Comment