आज दोपहर को ’सर्वहारा पुलिया’ पर दीपक से मुलाकात हुई। मडई में रहते हैं। उमर 17 साल। पढ़ते हैं कक्षा 11 में। रांझी के एक स्कूल में। आज स्कूल नहीं गये क्योंकि भूसा लाना था। साथ के बच्चे का नाम अभिषेक है। घर की गाय के लिये शोभापुर से भूसा लेकर लौटते समय सुस्ताने के लिये पुलिया पर पांव पसारे आरामफ़र्मा थे।
दो बोरों के बीच में फ़ंसा साइकिल का पिछला पहिया देखकर चौपाई याद आ गयी-
"सुनहु पवनसुत रहनि हमारी ,
जिमि दशनन्हिं महुं जीभ बेचारी।"
साइकिल पर दो बोरों में भूसा कुल 40 किलो था। मतलब एक बोरे में 20 किलो। पांच रुपया प्रति किलो के हिसाब से कुल 200 रुपये का भूसा साइकिल पर लदा हुआ था। बकौल दीपक गाय की तीन-चार दिन की खुराक।
तीन भाइयों में सबसे छोटे दीपक के पिताजी एक दुर्घटना में गुजर गये। तब दीपक बहुत छोटे थे। पिता के गुजरने के बाद नाना-नानी के यहां रहकर तीनों भाई पले-बढे। बड़े भाई काम-धाम करते हैं।
आगे चलकर जैसा नाना-नानी कहेंगे, बतायेंगे, पढ़ायेंगे वैसा करेंगे दीपक। फ़ोटो दिखाई तो दोनों बच्चे मुस्कराते हुये देखते रहे। बोले -अच्छी है।
अब तो खैर बच्चे बडे हो गये लेकिन जब दीपक के पिता गुजरे होंगे तो पता नहीं किसी ने यह सोचा होगा क्या कि बच्चों की मां कैसे जियेगी? क्या उसका फ़िर से घर बसाने का कोई प्रयास हुआ होगा!
वैसे अपना समाज इस मामले में बहुत संवेदनशील है। कहीं इधर-उधर शादी व्याह होने में दंगे-फ़साद तो फ़टाक देना हो जाते हैं। लेकिन पति की मौत हो जाने के बाद स्त्री के लिये समुचित और सम्मानपूर्वक जीवनयापन की कोई व्यवस्था नहीं कर पाता समाज। स्वयं का जीना स्थगित करके ’बेचारी देवी’ बनकर जीना ही रह जाता है स्त्री के भाग्य में।
- अनूप शुक्ल यह पुलिया हमारी मेस से दफ़्तर जाने के रास्ते में पडती है। आम लोग इस पर आते-जाते मिलते हैं। दिन में चार बार इधर से गुजरते हुये कोई न कोई मिल जाता है इस पर सुस्ताते। उससे बतियाते हुये यहां लिखता रहता हूं। आम लोगों के बैठने की जगह होने के चलते इसे ’सर्वहारा पुलिया’ नाम दिया जबकि इसी के सामने वाली पुलिया को बुर्जुआ पुलिया नाम दिया है क्योंकि वहां अपेक्षाकृत सम्पन्न तबका बैठता है रिटायर्ड कर्मचारी आदि। अब तक इन पुलियाओं के बारे में सौ पोस्ट लिख चुके हैं। उनमें से 96 मेरे ब्लॉग पर मिल जायेंगी ’पुलिया’ लेबल से। http://fursatiya.blogspot.in/.../%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4... Sushobhit Saktawat
- Sushobhit Saktawat बढि़या।
बहुत दिनों से कुछ भेजे नहीं। भेजिए।
फ़ैशन के इस दौर में छापने की गारंटी न दे सकेंगे पर भेजिए तो। - Kiran Dixit Dekhiye pulliya ji, apke vahan hone se kitney logon ka manoranjan hota hai ,jismey hum pathakgan bhe shamil hain.Cycle ke pahiye ke prati itne samvedanshelta , to insano ke liye kitne hogi sahej he anuman lagaya ja sakta hai .Jai ho Bajrangbali ke.
- Jitendra Kumar Comments of Mr somesh is true. Please help them to educate if possible. They will be thankful to you in future.
is it necessary to arrange another marriage for woman if her husband has died ? can't she stay alone ? is marriage only settled life for woman ?
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