Sunday, September 27, 2015

शादी बर्बादी है

जसपाल सिंह , उम्र 75 साल। रहने वाले भीमसेन के आगे कठारा के। डब्बे के बाहर सीढ़ी पर पाँव लटकाये बैठे दिखे तो हमने कहा -पाँव अंदर कर लेव दादा। नहीं तो कहीं झटका लगा तो बाहर हुई जईहौ।

पाँव अंदर करके बोले-रॉड पकरे हम। चिंता न करौ।

हमने पूछा-कहां से आ रहे हैं तो जेब से जनरल का टिकट निकाल के दिखाया। हावड़ा से आ रहे है।

फिर बताया- सात बजे की ट्रेन थी। पांच घण्टा लेट चली 12 बजे।

हमें लगा -अच्छा हुआ हम रेल मंत्री नहीं हैं वरना पूछने लगते दादा-राष्ट्र इस देरी का कारण जानना चाहता है।
और बात हुई तो पता चला कि कलकत्ते में एक बेकरी की दुकान में दरबान की नौकरी करते थे। 1995 में छोड़ दी नौकरी। पाँव फूला हुआ था। मलेरिया/फाइलेरिया (?) हो गया था।

कलकत्ता अपने भाई के साथ गए। वहीं बंगाली महिला से शादी कर ली। जुलाई ,1977 में। मतलब 38 साल पहले। दो लड़के है। एक 36 साल का एक 37 साल का। एक कलकत्ता में माँ के साथ रहता है। एक कठारा में। अभी कुछ पक्की आमदनी का कोई काम नहीं करते।

लड़कों की शादी नहीं की अभी तक ? पूछने पर बोले-शादी बर्बादी है। हमने कहा- आपने तो कर ली। बोले-तभी तो पता चला।

घर में हिंदी और बंगाली मिलीजुली बोलते हैं। पत्नी हिंदी अच्छी जानती हैं। जसपाल सिंह का हाथ तंग है बंगाली में।

कठारा से एक किमी दूर गाँव है। खेती है 2 /3 बीघा। बँटाई पर उठा देते हैं। खुद कलकत्ता और कठारा आते जाते रहते हैं। हफ्ते बाद फिर कलकत्ता के लिये झोला उठाकर चल देंगे।

कठारा में खाना का क्या जुगाड़ होगा? पूछने पर बोले-होटल में खाएंगे।

इस बीच टीटी आ गया और पूछने लगा-16 नम्बर बर्थ आपका है? हम हाँ कहते हुये बर्थ पर आ गए।

कठारा निकल गया । जसवंत सिह अब तक उतर चुके होंगे। शायद होटल में खाना खा रहे हों।

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