Thursday, September 03, 2015

डुबे हुओं से मत ऊबना

सुबह निकले तो बाई तरफ देखा। सूरज भाई बादलों की चद्दर ओढ़े आसमान पर विराजे थे। मुंह बाहर था।हमको देखते ही चद्दर फेंककर बाहर निकल आये और साथ-साथ चलने लगे। हमने कहा-साइकिल पर बैठ जाओ। बोले-तुम चलो। हम यहीं मजे में हैं।

बगल में साइकिल पर घनश्याम केवट जा रहे थे। गैस स्टोव, प्रेसर कुकर और दीगर रसोई के सामान की मरम्मत का काम करते हैं। साइकिल पर औजार और पुर्जे लादे हुए।मढ़ई में रहते हैं। सुबह आधारताल होते हुए दोपहर तक वापस लौटते हैं।

10-15 साल से यह काम कर रहे। इसके पहले बर्तन बेचने का काम करते थे। नुकसान हुआ एक डेढ़ लाख का उधारी में तो गैस मरम्मत का काम करने लगे।पिता इलाहाबाद से जबलपुर आये थे। मजूरी करते रहे। घनश्याम और उनके बच्चों ने अपना काम शुरू किया।पारिवारिक उन्नति के रूप में बताया यह घनश्याम ने।
महीने के 18 से 20 हजार कमा लेते हैं। साल में लाख रूपये करीब बचा भी लेते हैं। मकान है खुद का। मोटर साइकिल भी है। कोई कमी नहीं है भगवान की दया से। घनश्याम ने बताया।

दो बच्चे हैं।एक ऑटो चलाता है, दूसरा घनश्याम की तरह ही गैस रिपेयर का काम करता है। दोनों की शादी हो गई। छोटे बेटे की बहू डिफॉल्टर निकल गई। डिफॉल्टर इसलिए कि मायके रहती है।कहती है कि वो अपने मायके रहेगी। पति को भी कहती है यहीं रहो। लेकिन बेटा भी अपने माँ-बाप के साथ रहना चाहता है।

बात करके निपटा लो झगड़ा। मेरे यह कहने पर घनश्याम बोले-हाँ बस जरा ऑटो की क़िस्त निपटा लें। इस महीने आखिरी है। इसके बाद ये भी फाइनल करते हैं। हम एक समय में एक ही काम में हाथ डालते हैं।
यह बात साइकल पर साथ-साथ चलते हुए हुई। आधारताल की तरफ मुड़ते समय हमने रोककर फोटो ली घनश्याम की। देखिये।


आगे कुछ ठेलियों में लैया-खील बेचने के लिए निकले लोग मिले। हरछठ का त्यौहार है आज। उसी के लिए। महिलाएं अपने बच्चों के लिए रखती हैं यह व्रत। ज्यादातर व्रत महिलाएं अपने घर-परिवार के लोगों की सलामती के लिए रखती हैं। उनकी सलामती के लिए भी पता नहीं कोई व्रत रखे जाते हैं कि नहीं।
चाय की दुकान पर बाजा नहीं बज रहा था। लीड खराब थी। इस दुकान में आने का उद्देश्य गाने सुनते हुए पोस्ट लिखना होता है। वह पूरा नहीं हुआ।

बगल में महेश बैठे मिले। चाय पी रहे थे। फिर से पिता की ज्यादतियां बताने लगे। बोले- मां को मारता था मेरा बाप। इसीलिये कुंए में कूद गयी। जब मरी थी मां तो मैं इत्ता (जमीन से एक फुट ऊपर), बहन इत्ती (गोद में लिटाने की मुद्रा बनाकर) और भाई मेरा इत्ता (जमीन से दो फुट) ऊपर था। मरेगा बाप तो उसको आग नहीं देंगे।
भाई जो कि कहीं चला गया यह कहकर कि उसके बच्चे उसके नहीं हैं- के बारे में बताया कि उसकी शक्ल कृष्ण जी से मिलती थी। मेरी शंकर जी। पर हमारी आँखे एक जैसी हैं। भाई के बच्चों की सबकी शक्ल अलग है।
बोले -कल पौने दो सौ रूपये कमाई हुई (भीख में) आज और ज्यादा होगी। लोग मेरा पैर छूते हैं। भोले का अंश है हममें। आज शाम को नहा-धोकर शंकरजी की बूटी लगाएंगे 50 रूपये की। और पूंछेंगे शंकरजी से कि मेरा भाई किधर है?

बूटी का खुलासा किया -गांजा। हमने पूछा-गांजा पीने के बाद शंकर जी दीखते हैं? बोले -हाँ,शंकर जी, काली जी और दुर्गा जी सब दीखते हैं। एक बार एक जिन्न आया। लेकिन हमारे अंदर भोले का अंश देखकर पैर पड़ा। बोला-माफ़ कर दो गलती हुई।

चलते समय मुझसे बोले-कोई समस्या हो बताना। हम भोले बाबा से कहकर ठीक कराएंगे।

मैंने कहा-बताएंगे।

अब सोच रहा हूँ कि 49 साल की उम्र का जो आदमी अपने गुजारे के लिए भीख माँगता हो, बाप ने नहीं कराई इसलिए शादी नहीं कर पाया हो, बाप से घृणा करता हो लेकिन उसके सामने मुंह न खोल पाता हो वह 50 रूपये का गांजा पीकर शंकर जी से हमारी समस्याएं हल करने की बात कर रहा है।

नशे की ताकत है यह। परसाई जी ने लिखा है-" नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे खास हैं-हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते हैं। पता नहीं महेश का नशा किस श्रेणी का है।"

नशे की बात से कैलाश बाजपेयी की यह कविता याद आई:
वक्त कुछ कहने का खत्म हो चुका है
जिन्दगी जोड़ है ताने-बाने का लम्बा हिसाब
बुरा भी उतना बुरा नहीं यहां
न भला है एकदम निष्पाप।
अथक सिलसिला है कीचड़ से पानी से
कमल तक जाने का
पाप में उतरता है आदमी फिर पश्चाताप से गुजरता है
मरना आने के पहले हर कोई कई तरह मरता है
यह और बात है कि इस मरणधर्मा संसार में
कोई ही कोई सही मरता है।
कम से कम तुम ठीक तरह मरना।
नदी में पड़ी एक नाव सड़ रही है
और एक लावारिश लाश किसी नाले में
दोनों ही दोनों से चूक गये
यह घोषणा नहीं है, न उलटबांसी,
एक ही नशे के दो नतीजे हैं
तुम नशे में डूबना या न डूबना
डुबे हुओं से मत ऊबना।
फ़िलहाल इतना ही। अब चला जाये काम पर। 'सर्वे भवन्ति सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया' की कामना के साथ।

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