आज सुबह थोडा आराम से हुई। साढ़े छह बजे निकले साइकिलियाने। फैक्ट्री के बाहर खूब गाड़ियां खड़ी थीं। आज कुछ पदों पर भर्ती के लिए इम्तहान है। हजारों बच्चे दूर-दराज से आ रहे हैं इम्तहान देने।
शोभापुर की तरफ निकले। सोचा दीपा से मिलेंगे आज। चाय की दूकान पर बिस्कुट लेने के लिए के लिए रुके तो चाय भी पी ली। जनसेवक जनसेवा की शुरुआत अपने से करता है - कुछ वैसे ही।
चाय की दूकान पर सिया शरण दुबे मिले। उम्र 81 साल। जीसीएफ के पम्पहाउस के फ़िटर पद से 1996 में रिटायर। बोले- सतना जिला के गाँव में रहते थे। बाप गरीब। मास्टर बोले-पढ़ो। हम वजीफा दिलवायेंगे। वजीफा ऐसा कि कभी किताब नहीं तो कभी कॉपी गोल। हम भाग के आ गए जबलपुर। एक जन के यहां रुके। उ हमारा बेरोजगारी वाला कार्ड बनवा दिहिंन। दू साल मे नौकरी मिल गयी। साथ में छोकरी भी।
तीन बिटिया और एक बेटे के बाप सिया शरण हर आते जाते से 'राम-राम' करते जा रहे थे। बोले पहले नाम का मतलब होता था। अब बताओ इनका नाम विजय । विजय मतलब जीत। लेकिन कोई पिंटू बोलता है कोई चिंटू।कोई बबलू। बताओ यह भी कोई बात हुई।
तीनों बेटियों की शादी हो गयी है। लड़का 26 साल का है । उसकी शादी बाकी है। कपड़े की फेरी लगाता है। लोग कहते हैं लड़के की शादी कब करोगे-हम कहते हैं लड़की बताओ। कोई लड़की हो तो बताइयेगा।
पेंशन के मजे लेते हुए बोले- जब पसीना बहाते थे तब 2500 मिलते थे। अब बैठे-बैठे 10000 गिनते हैं। सब ईश्वर की माया है। जिस अंदाज में बता रहे थे यह सब तब मुझे लगा वीडियो बनाते तो बढ़िया रहता।
आगे ओवरब्रिज के नीचे लोगों के चूल्हे जल चुके थे। उसके आगे दीपा अपने पापा के साथ बाहर ही खड़ी ।आसपास और लोग नहीं थे वहां। सब दारु पीकर रात को हल्ला करते थे। हमने भगा दिया उनको। -दीपा के पापा ने कहा।
आप सोमवार को नहीं आये थे ?-दीपा ने अरगनी से कपड़े उतारते हुए पूछा। हमने कहा- हां। नहीं आ पाये। वो बोली-आपने कहा था कि आएंगे।इसलिए पूछा। वैसे हम बाहर चाचा के यहां गए थे। वुधवार को आये।
इतवार को तो नानी के यहां जाती हो। आज जाओगी? पूछने पर बोली-नहीँ आज काम पड़ा है। घर लीपना है। कपड़े धोने हैं। बर्तन मांजने हैं। नहीं जाएंगे।
स्कूल का होमवर्क कर लिया? पूछने पर बोली-हाँ सब कर लिया। हमने कहा -दिखाओ। दिखाई तो कई जगह वर्तनी की अशुद्धियाँ थीं। हमने बताया तो बोली- आप ऊपर लिख दीजिये। हम देखकर ठीक कर लेंगे । कुछ अक्षर ठीक किये उसने।
बिस्कुट का पैकेट दिया तो बोली- ये 'गुड डे' वाला मत लाया करो। वो वाला लाया करो जो उस दिन शाम को लाये थे। उस दिन शाम वाला मतलब क्रैकजैक। हमने कहा -ठीक।
हमने उसके पिता से पुछा तुम शैम्पू नहीं लाये इसके लिए। वो बोले-आज ले आएंगे। वह अपना रिक्शा लेकर जाने लगा तो दीपा ने उससे पैसे मांगे। थोडा जिद भी की। उसने पांच रूपये दिए और चला गया।
हमने पूछा कि क्या करोगी इस पैसे का? बोली- बतासे खाएंगे।
अभी क्या करोगी? इस सवाल के जबाब में बोली-कपड़े घरी करके फैक्ट्री जाएंगे। वहां नहायेंगे। फिर काम करेंगे सब। हमने पूछा-हम शैंपू ला दें। अच्छे से बाल धो लेना। बोली -ला दो। बगल की दुकान से कुछ शैम्पू के पाउच और छोटा साबुन लेकर उसको दिया और चले आये यह कहते हुए कि कल आएंगे देखने कि तुमने बाल अच्छे से धोये कि नहीं। वह बोली-जल्दी आना कल हमारा स्कूल है सुबह।
लौटते हुए रामफल के लडक़े गुड्डू से मिलने गए। वह काम पर चला गया था। उसकी माँ (रामफल की पत्नी) बाहर ही बैठी थी। बोली-फल का ठेला लगाता है।
हनुमान मन्दिर के सामने नीचे नाले में चार लोग बैठे थे।लगा नाले किनारे पिकनिक मना रहे हों। पूछा तो बोले-बालू निकालने का काम मिला है। शुरू कर रहे हैं काम।साइकिल पर बैठे-बैठे पूछ रहे थे तब तक पिछले पहिये पर किसी ने साइकिल का अगला पहिया सटाया। देखा तो रमेश थे। सुबह चाय की दूकान पर दादा कोंडके वाली भाषा से अलग अंदाज में बात करते हुए पूछा-क्या बात है। दीखते नहीं आजकल उधर। हमने कहा -आएंगे।
फैक्ट्री के सामने एक सब्जी वाला साईकिल पर सब्जी लिए जा रहा था। कैरियर की सब्जी का सन्तुलन गड़बड़ाया तो ठीक करने लगा। हम रुक गए देखकर तो बोला-अंकल जी जरा पकड़ लीजिये साइकिल।
साइकिल पकड़ी तो उसने बोरी बांधी। बोला 35 साल के हैं। साईकिल पन्द्रह साल पुरानी है। कुल सब्जी 1200 रूपये की है। जब तक बेंच नहीं लेंगे सब तब तक घर नहीं लौटेंगे। 300 से 400 रूपये फायदा हो जाएगा।
इस बीच कोई खरीदार आ गया। बोला-टमाटर कैसे दिए? 30 रूपये किलो थे टमाटर। मोलभाव के बाद उसने 10 रूपये टिकाये । सब्जी साईकिल वाले ने पैसे सब्जी को छुआकर माथे से लगाकर जेब में रखे और गिनकर 4 टमाटर दिए उसको।
हम वापस लौट आये। मेस में दोस्तों के साथ चाय पिए। कमरे में आकर सफाई करवाये। चद्दर बदलवाए। रमानाथ अवस्थी की कविता पुस्तक 'आखिर यह मौसम भी आया' पलटने लगे तो यह कविता दिखी-
'महक रहा है हरसिंगार
जैसे पहला-पहला प्यार।
जाग रही है गन्ध अकेली
सारा मधुबन सोता है
किया नहीं जिसने,क्या जाने
प्यार में क्या-क्या होता है।
रातें घुल जाती आँखों में
दिन उड़ जाते पंख पसार।'
चाय पीते हुए और साथ में पापड़ खाते हुए यह पोस्ट कर रहे हैं। आप मजे से रहिये। घर परिवार के साथ मजे करिये। खूब प्यार करिये अपने को। अपने से जुड़े लोगों को। जो हमारी तरह घर से दूर हैं उनके लिए फोन है न।
ठीक न। चलिए। मजे से रहिये।
शोभापुर की तरफ निकले। सोचा दीपा से मिलेंगे आज। चाय की दूकान पर बिस्कुट लेने के लिए के लिए रुके तो चाय भी पी ली। जनसेवक जनसेवा की शुरुआत अपने से करता है - कुछ वैसे ही।
चाय की दूकान पर सिया शरण दुबे मिले। उम्र 81 साल। जीसीएफ के पम्पहाउस के फ़िटर पद से 1996 में रिटायर। बोले- सतना जिला के गाँव में रहते थे। बाप गरीब। मास्टर बोले-पढ़ो। हम वजीफा दिलवायेंगे। वजीफा ऐसा कि कभी किताब नहीं तो कभी कॉपी गोल। हम भाग के आ गए जबलपुर। एक जन के यहां रुके। उ हमारा बेरोजगारी वाला कार्ड बनवा दिहिंन। दू साल मे नौकरी मिल गयी। साथ में छोकरी भी।
तीन बिटिया और एक बेटे के बाप सिया शरण हर आते जाते से 'राम-राम' करते जा रहे थे। बोले पहले नाम का मतलब होता था। अब बताओ इनका नाम विजय । विजय मतलब जीत। लेकिन कोई पिंटू बोलता है कोई चिंटू।कोई बबलू। बताओ यह भी कोई बात हुई।
तीनों बेटियों की शादी हो गयी है। लड़का 26 साल का है । उसकी शादी बाकी है। कपड़े की फेरी लगाता है। लोग कहते हैं लड़के की शादी कब करोगे-हम कहते हैं लड़की बताओ। कोई लड़की हो तो बताइयेगा।
पेंशन के मजे लेते हुए बोले- जब पसीना बहाते थे तब 2500 मिलते थे। अब बैठे-बैठे 10000 गिनते हैं। सब ईश्वर की माया है। जिस अंदाज में बता रहे थे यह सब तब मुझे लगा वीडियो बनाते तो बढ़िया रहता।
आगे ओवरब्रिज के नीचे लोगों के चूल्हे जल चुके थे। उसके आगे दीपा अपने पापा के साथ बाहर ही खड़ी ।आसपास और लोग नहीं थे वहां। सब दारु पीकर रात को हल्ला करते थे। हमने भगा दिया उनको। -दीपा के पापा ने कहा।
आप सोमवार को नहीं आये थे ?-दीपा ने अरगनी से कपड़े उतारते हुए पूछा। हमने कहा- हां। नहीं आ पाये। वो बोली-आपने कहा था कि आएंगे।इसलिए पूछा। वैसे हम बाहर चाचा के यहां गए थे। वुधवार को आये।
इतवार को तो नानी के यहां जाती हो। आज जाओगी? पूछने पर बोली-नहीँ आज काम पड़ा है। घर लीपना है। कपड़े धोने हैं। बर्तन मांजने हैं। नहीं जाएंगे।
स्कूल का होमवर्क कर लिया? पूछने पर बोली-हाँ सब कर लिया। हमने कहा -दिखाओ। दिखाई तो कई जगह वर्तनी की अशुद्धियाँ थीं। हमने बताया तो बोली- आप ऊपर लिख दीजिये। हम देखकर ठीक कर लेंगे । कुछ अक्षर ठीक किये उसने।
बिस्कुट का पैकेट दिया तो बोली- ये 'गुड डे' वाला मत लाया करो। वो वाला लाया करो जो उस दिन शाम को लाये थे। उस दिन शाम वाला मतलब क्रैकजैक। हमने कहा -ठीक।
हमने उसके पिता से पुछा तुम शैम्पू नहीं लाये इसके लिए। वो बोले-आज ले आएंगे। वह अपना रिक्शा लेकर जाने लगा तो दीपा ने उससे पैसे मांगे। थोडा जिद भी की। उसने पांच रूपये दिए और चला गया।
हमने पूछा कि क्या करोगी इस पैसे का? बोली- बतासे खाएंगे।
अभी क्या करोगी? इस सवाल के जबाब में बोली-कपड़े घरी करके फैक्ट्री जाएंगे। वहां नहायेंगे। फिर काम करेंगे सब। हमने पूछा-हम शैंपू ला दें। अच्छे से बाल धो लेना। बोली -ला दो। बगल की दुकान से कुछ शैम्पू के पाउच और छोटा साबुन लेकर उसको दिया और चले आये यह कहते हुए कि कल आएंगे देखने कि तुमने बाल अच्छे से धोये कि नहीं। वह बोली-जल्दी आना कल हमारा स्कूल है सुबह।
लौटते हुए रामफल के लडक़े गुड्डू से मिलने गए। वह काम पर चला गया था। उसकी माँ (रामफल की पत्नी) बाहर ही बैठी थी। बोली-फल का ठेला लगाता है।
हनुमान मन्दिर के सामने नीचे नाले में चार लोग बैठे थे।लगा नाले किनारे पिकनिक मना रहे हों। पूछा तो बोले-बालू निकालने का काम मिला है। शुरू कर रहे हैं काम।साइकिल पर बैठे-बैठे पूछ रहे थे तब तक पिछले पहिये पर किसी ने साइकिल का अगला पहिया सटाया। देखा तो रमेश थे। सुबह चाय की दूकान पर दादा कोंडके वाली भाषा से अलग अंदाज में बात करते हुए पूछा-क्या बात है। दीखते नहीं आजकल उधर। हमने कहा -आएंगे।
फैक्ट्री के सामने एक सब्जी वाला साईकिल पर सब्जी लिए जा रहा था। कैरियर की सब्जी का सन्तुलन गड़बड़ाया तो ठीक करने लगा। हम रुक गए देखकर तो बोला-अंकल जी जरा पकड़ लीजिये साइकिल।
साइकिल पकड़ी तो उसने बोरी बांधी। बोला 35 साल के हैं। साईकिल पन्द्रह साल पुरानी है। कुल सब्जी 1200 रूपये की है। जब तक बेंच नहीं लेंगे सब तब तक घर नहीं लौटेंगे। 300 से 400 रूपये फायदा हो जाएगा।
इस बीच कोई खरीदार आ गया। बोला-टमाटर कैसे दिए? 30 रूपये किलो थे टमाटर। मोलभाव के बाद उसने 10 रूपये टिकाये । सब्जी साईकिल वाले ने पैसे सब्जी को छुआकर माथे से लगाकर जेब में रखे और गिनकर 4 टमाटर दिए उसको।
हम वापस लौट आये। मेस में दोस्तों के साथ चाय पिए। कमरे में आकर सफाई करवाये। चद्दर बदलवाए। रमानाथ अवस्थी की कविता पुस्तक 'आखिर यह मौसम भी आया' पलटने लगे तो यह कविता दिखी-
'महक रहा है हरसिंगार
जैसे पहला-पहला प्यार।
जाग रही है गन्ध अकेली
सारा मधुबन सोता है
किया नहीं जिसने,क्या जाने
प्यार में क्या-क्या होता है।
रातें घुल जाती आँखों में
दिन उड़ जाते पंख पसार।'
चाय पीते हुए और साथ में पापड़ खाते हुए यह पोस्ट कर रहे हैं। आप मजे से रहिये। घर परिवार के साथ मजे करिये। खूब प्यार करिये अपने को। अपने से जुड़े लोगों को। जो हमारी तरह घर से दूर हैं उनके लिए फोन है न।
ठीक न। चलिए। मजे से रहिये।
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