सुबह निकले तो सामने बच्चे झूला झूल रहे थे। लड़के-लड़कियां चकरघिन्नी में झूलते हंस रहे थे।
सर्वहारा पुलिया पर दो महिलाएं बैठीं थी। कंचनपुर रहती हैं। जैसे ही उठती हैं टहलने निकल लेती हैं। अभी पुलिया पर आराम करने बैठी हैं।
एक महिला घुटने पर हाथ रखे है। घुटना दर्द करता है। हम कहते हैं -'साइकिल चलाया करो।'दर्द ठीक हो जाएगा।
आजकल हम सबसे यही कहते हैं-'साइकिल चलाने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।' साइकिलिंग में इतने गुण देखने लगे हैं हम आजकल कि हर शारीरिक व्याधि का इलाज ले देकर साइकिलिंग में खोजने लगे हैं। हमें तो यह डर लगता है कि कल को हम कैंसर और स्वाइन फ़्लू का इलाज भी साइकिलिंग में न खोजने लगें।
यह कुछ ऐसे ही जैसे अपने देश के राजनीतिज्ञ देश की हर समस्या का निदान विकास में देखते हैं। विकास हुआ नहीं कि सब समस्याएं खलास। इस लिहाज से तो विकसित देशों को 'समस्या शून्य' होना चाहिये।
साइकिलिंग की बात से एक महिला ने चहक कर बताया कि वह चला लेती है। दूसरी बोली-'अब इस उमर में क्या साइकिलिंग करेगी।भूल गये सब।' इस पर दूसरी बोली-'एक बार सीखी हुई चीज भूलती थोड़ी है।'
सामने बुर्जुआ पुलिया पर रिटायर्ड लोग बैठे हैं। आमने सामने की पुलियाओं पर मर्द औरत का अनुपात 2:6 मतलब 1:3 का है। मतलब 33 प्रतिशत महिलाएं तो 66 प्रतिशत पुरुष। याद आया कि संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं का कानून कब का लटका हुआ है। यह भी भयावह कल्पना की कि जिस तेजी से महिला पुरुष अनुपात कम हो रहा है उससे कहीं ऐसा न हो की संसद में 33 महिला सांसदों के होने का कानून पारित होने से पहले यह समाज में लागू हो जाए।
शोभापुर ओवरब्रिज वैसे ही अधबना खड़ा है। पुल के तमाम अस्थाई चूल्हे जल रहे हैं। महिलाओं की कतार शायद पानी भरने या नहाने जा रही है। पुरुष भी जाते दीखते हैं।पहाड़ की तलहटी में अलग अलग चूल्हे जल रहे हैं। खड़े होकर फोटो खींचते हैं। नीचे कुछ आदमी खाना बना रहे हैं। ऊपर महिलाएं आग जलाये हैं। महिलाएं ब्रश करती, बर्तन धोती, तवे पर रोटी पलटती दिखती हैं। हमको फोटो खींचते देखती मुस्कराती हैं। खुले आसमान के नीचे ऐसा कठिन जीवन बिताते उनको मुस्कराते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि शायद ये इससे भी कठिन जीवन जीने की अभ्यस्त हैं इसलिए इस हाल में भी मुस्कराने का हौसला है इनमें।
चाय की दूकान पर एक आदमी बताता है कि आज पानी दस मिनट जल्दी चला गया।वह उस आदमी को गरियाता जिसने पानी जल्दी बन्द किया होगा। बताता है कि आज पानी कुछ गन्दा आया।नर्मदा से आता है पानी। फिर कहता है-'न होने से कुछ गन्दा ही सही।'
लौटते हुए एक आदमी हैण्डपम्प से पानी भरता दिखा। वह बड़ी छन्नी से छानकर पानी भर रहा था बाल्टी में। छानने की बात पर परसाई जी का वाक्य याद आता है: 'जो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं वे भी पानी छानकर पीते हैं।' वैसे याद तो भांग प्रेमियों का नारा भी आता है:
'छान छान छान
बात किसी की न मान
जब निकल जायेगी जान
तो कौन कहेगा छान।'
लौटते में उसी जगह के पास से गुजरता हूँ। महिलाएं वैसे ही मुस्कराते हुए खाना बनाते दिखती हैं। मुझे लगता है कि वे मुझे देखकर भी मुस्करा रही हैं। शायद आपस में कुछ बात भी कर रही हों मेरे बारे में। उनके नीचे आदमी लोग निर्लिप्त भाव से खाना बनाते दिखे।
कल रात को वेगड़ जी से बात हुई। उनको जब बताया कि मेरे 15 मित्रों से उनकी पेंटिंग की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' लेने की हामी भरी है तो बहुत खुश हुए। बोले-'आपने तो मेरा उत्साह बढ़ा दिया।' हमने कहा भी आपकी किताब तो मात्र 600 रूपये की है।इतने में मियाँ बीबी के एक बार का सिनेमा का खर्च नहीं पूरता। लोग खरीदेंगे किताब। इस पर उनका कहना था-'लोग सिनेमा देखने में खर्च कर देते हैं लेकिन किताब पर नहीं खर्च करते।'
वेगड़ जी ने फिर एक रोचक बात कही। बोले- मनुष्य के जीवन में बाल्यकाल, युवावस्था और फिर बुढ़ापा आता है। मेरे जीवन में बचपन के बाद सीधे बुढ़ापा आया। यह बुढ़ापे का समय वह समय था जब 25 से 50 साल तक मैं सिर्फ नौकरी करता रहा। 50 वर्ष की उम्र के बाद जब मैंने नर्मदा यात्राएं शुरू की और चित्र बनाने शुरू किये तब मैं फिर से युवा हो गया। मनुष्य जबतक सृजनरत रहता है तब तक युवा ही रहता है। मैं अब संसार से जब भी विदा लूँगा एक युवा के रूप में ही लूँगा।
87 साल के कलाकार की कही यह बात सुनकर मैं यह सोच रहा हूँ कि हम मनुष्य जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं? युवावस्था से या बुढ़ापे से। ठीक ठीक पता नहीं लेकिन मन अवश्य है कि कुछ सृजनात्मक काम कर सकें। जीवन का कुछ समय युवा की तरह जी सकें?
अच्छा आप भी सोचिये आप अपनी जिंदगी के किस दौर से गुजर रहे हैं। सृजनरत युवावस्था से या समझदार बुजुर्गावस्था से या फिर यह मानते हैं कि अभी तो बचपन की रेलगाड़ी चल रही है।
जिन मित्रों ने कल की पोस्ट नहीं पढ़ी उनसे अनुरोध है कि अगर समय हो तो उस पढ़ें और बताएं कि वे अमृतलाल वेगड़जी की चित्रों की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' (कीमत करीब 600 रूपये) खरीदना चाहेंगे क्या?
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
फ़ेसबुक पर प्रतिक्रियायें:
सर्वहारा पुलिया पर दो महिलाएं बैठीं थी। कंचनपुर रहती हैं। जैसे ही उठती हैं टहलने निकल लेती हैं। अभी पुलिया पर आराम करने बैठी हैं।
एक महिला घुटने पर हाथ रखे है। घुटना दर्द करता है। हम कहते हैं -'साइकिल चलाया करो।'दर्द ठीक हो जाएगा।
आजकल हम सबसे यही कहते हैं-'साइकिल चलाने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।' साइकिलिंग में इतने गुण देखने लगे हैं हम आजकल कि हर शारीरिक व्याधि का इलाज ले देकर साइकिलिंग में खोजने लगे हैं। हमें तो यह डर लगता है कि कल को हम कैंसर और स्वाइन फ़्लू का इलाज भी साइकिलिंग में न खोजने लगें।
यह कुछ ऐसे ही जैसे अपने देश के राजनीतिज्ञ देश की हर समस्या का निदान विकास में देखते हैं। विकास हुआ नहीं कि सब समस्याएं खलास। इस लिहाज से तो विकसित देशों को 'समस्या शून्य' होना चाहिये।
साइकिलिंग की बात से एक महिला ने चहक कर बताया कि वह चला लेती है। दूसरी बोली-'अब इस उमर में क्या साइकिलिंग करेगी।भूल गये सब।' इस पर दूसरी बोली-'एक बार सीखी हुई चीज भूलती थोड़ी है।'
सामने बुर्जुआ पुलिया पर रिटायर्ड लोग बैठे हैं। आमने सामने की पुलियाओं पर मर्द औरत का अनुपात 2:6 मतलब 1:3 का है। मतलब 33 प्रतिशत महिलाएं तो 66 प्रतिशत पुरुष। याद आया कि संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं का कानून कब का लटका हुआ है। यह भी भयावह कल्पना की कि जिस तेजी से महिला पुरुष अनुपात कम हो रहा है उससे कहीं ऐसा न हो की संसद में 33 महिला सांसदों के होने का कानून पारित होने से पहले यह समाज में लागू हो जाए।
शोभापुर ओवरब्रिज वैसे ही अधबना खड़ा है। पुल के तमाम अस्थाई चूल्हे जल रहे हैं। महिलाओं की कतार शायद पानी भरने या नहाने जा रही है। पुरुष भी जाते दीखते हैं।पहाड़ की तलहटी में अलग अलग चूल्हे जल रहे हैं। खड़े होकर फोटो खींचते हैं। नीचे कुछ आदमी खाना बना रहे हैं। ऊपर महिलाएं आग जलाये हैं। महिलाएं ब्रश करती, बर्तन धोती, तवे पर रोटी पलटती दिखती हैं। हमको फोटो खींचते देखती मुस्कराती हैं। खुले आसमान के नीचे ऐसा कठिन जीवन बिताते उनको मुस्कराते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि शायद ये इससे भी कठिन जीवन जीने की अभ्यस्त हैं इसलिए इस हाल में भी मुस्कराने का हौसला है इनमें।
चाय की दूकान पर एक आदमी बताता है कि आज पानी दस मिनट जल्दी चला गया।वह उस आदमी को गरियाता जिसने पानी जल्दी बन्द किया होगा। बताता है कि आज पानी कुछ गन्दा आया।नर्मदा से आता है पानी। फिर कहता है-'न होने से कुछ गन्दा ही सही।'
लौटते हुए एक आदमी हैण्डपम्प से पानी भरता दिखा। वह बड़ी छन्नी से छानकर पानी भर रहा था बाल्टी में। छानने की बात पर परसाई जी का वाक्य याद आता है: 'जो आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं वे भी पानी छानकर पीते हैं।' वैसे याद तो भांग प्रेमियों का नारा भी आता है:
'छान छान छान
बात किसी की न मान
जब निकल जायेगी जान
तो कौन कहेगा छान।'
लौटते में उसी जगह के पास से गुजरता हूँ। महिलाएं वैसे ही मुस्कराते हुए खाना बनाते दिखती हैं। मुझे लगता है कि वे मुझे देखकर भी मुस्करा रही हैं। शायद आपस में कुछ बात भी कर रही हों मेरे बारे में। उनके नीचे आदमी लोग निर्लिप्त भाव से खाना बनाते दिखे।
कल रात को वेगड़ जी से बात हुई। उनको जब बताया कि मेरे 15 मित्रों से उनकी पेंटिंग की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' लेने की हामी भरी है तो बहुत खुश हुए। बोले-'आपने तो मेरा उत्साह बढ़ा दिया।' हमने कहा भी आपकी किताब तो मात्र 600 रूपये की है।इतने में मियाँ बीबी के एक बार का सिनेमा का खर्च नहीं पूरता। लोग खरीदेंगे किताब। इस पर उनका कहना था-'लोग सिनेमा देखने में खर्च कर देते हैं लेकिन किताब पर नहीं खर्च करते।'
वेगड़ जी ने फिर एक रोचक बात कही। बोले- मनुष्य के जीवन में बाल्यकाल, युवावस्था और फिर बुढ़ापा आता है। मेरे जीवन में बचपन के बाद सीधे बुढ़ापा आया। यह बुढ़ापे का समय वह समय था जब 25 से 50 साल तक मैं सिर्फ नौकरी करता रहा। 50 वर्ष की उम्र के बाद जब मैंने नर्मदा यात्राएं शुरू की और चित्र बनाने शुरू किये तब मैं फिर से युवा हो गया। मनुष्य जबतक सृजनरत रहता है तब तक युवा ही रहता है। मैं अब संसार से जब भी विदा लूँगा एक युवा के रूप में ही लूँगा।
87 साल के कलाकार की कही यह बात सुनकर मैं यह सोच रहा हूँ कि हम मनुष्य जीवन के किस दौर से गुजर रहे हैं? युवावस्था से या बुढ़ापे से। ठीक ठीक पता नहीं लेकिन मन अवश्य है कि कुछ सृजनात्मक काम कर सकें। जीवन का कुछ समय युवा की तरह जी सकें?
अच्छा आप भी सोचिये आप अपनी जिंदगी के किस दौर से गुजर रहे हैं। सृजनरत युवावस्था से या समझदार बुजुर्गावस्था से या फिर यह मानते हैं कि अभी तो बचपन की रेलगाड़ी चल रही है।
जिन मित्रों ने कल की पोस्ट नहीं पढ़ी उनसे अनुरोध है कि अगर समय हो तो उस पढ़ें और बताएं कि वे अमृतलाल वेगड़जी की चित्रों की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' (कीमत करीब 600 रूपये) खरीदना चाहेंगे क्या?
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
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Indu Bala Singh यह भी भयावह कल्पना की कि जिस तेजी से महिला पुरुष अनुपात कम हो रहा है उससे कहीं ऐसा न हो की संसद में 33 महिला सांसदों के होने का कानून पारित होने से पहले यह समाज में लागू हो जाए।..........क्या खूब रही |
- अनूप शुक्ल यह कल्पना सही में भयावह है। लेकिन लिंग अनुपात जितनी तेजी से बिगड़ता जा रहा है वह भी कम भयावह नहीं है। smile इमोटिकॉन
Suman Singh पढ़कर अच्छा लगा कि वेगड़ जी स्वस्थ और सानंद हैं, उनकी कला (रेखाचित्र) उसी तरह से नर्मदा की पर्याय है जैसे रोरिक के चित्र हिमालय के.....
Anamika Vajpai शायद हर कलाकार इसी प्रकार सोचता है, युवावस्था तभी तक है जब-तक सृजनशीलता है। हर व्यक्ति में कोई न कोई सृजनात्मक क्षमता अवश्य होती है, अब, जैसे आप में हास्य सृजन की अद्भुत क्षमता है। आप नज़र रखियेगा कहीं आपकी प्रसिद्धि, "हर बात का जवाब, हर रोग का इलाज, साइकिल वाले बाबा के पास", इस प्रकार न हो जाये।.....smile इमोटिकॉन
- अनूप शुक्ल वेगड़ जी से हिसाब किताब वही है जो अपने एक आदरणीय सृजनरत बुजुर्ग का उनके एक अनन्य प्रशंसक से हो सकता है। smile इमोटिकॉन
Mukesh Sharma सायकलिंग बहुत अच्छी चीज है जी भर के करिये ।हमारे एक मित्र को भी सयकलिंग का बहुत शौक था ।अल्ल सुबह ही लोंग बाईस्किलिंग पर निकल जाते।एक दिन कैन्ट एरिया में नयी सड़क बनीं तो साथ साथ ऊँचे ऊँचे स्पीडब्रेकर भी बन गए ।ब्रेकर आते ही बेचारे झटका बचाने को ऊपर उचक गए और सायकल की गद्दी अचक से नीचे गिर गयी और डंडा रह गया ।ब्रेकर के बाद अँधेरे में जैसे ही बेचारे नीचे बैठे ----------------(?)।आगे आप खुद अंदाजा लगा सकते है ।
Ravi Kumar Dubey कुछ भी हो पुलिया बहुत पुराणी है और इसकी चर्चा बी। होती रहती है बीच बीच में
पढने के बाद ऐसा लगता है,जैसे यथार्थ का अनुभव हो रहा है.
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