'माइकल टी स्टॉल' देखकर हमको ऊ गाना याद आ गया:
35 साल पुरानी है 'माइकल टी स्टॉल'। 300 रूपये किराया है गुमटी का। बिजली और पानी अलग। सुबह 5 से रात 9-10 तक चलती है दूकान।15-20 लीटर दूध की चाय बेंच लेते हैं। दो भाई मिलकर चलाते हैं। एक चाय बना रहा था तो दूसरा भाई पोहा के लिए आलू छील रहा था।
दूकान से दस कदम की दूरी पर देखा एक आदमी बिजली के खम्भे के पास सड़क को प्रणाम सा कर रहा था। पता चला वहां मंदिर है। दो फुट ऊँचा मन्दिर दो फुट करीब ही लम्बा चौड़ा होगा। शंकर जी विराजे थे अंदर। वह आदमी दूर से ही प्रणाम कर रहा था। वायरलेस नेटवर्क से 'वाईफाई' प्रणाम।
चाय पीकर लौटते हुए वे लोग दिखे जो जाते समय भी दिखे थे। एक लड़की सड़क पर सीधे तेजी से टहलते हुए कान में इयरफोन लगाये अक्सर दिखती है।उसकी चाल में उत्साह है। आत्मविश्वास है। जिस जगह जाते में दिखी आते में लगभग उसी जगह दिखी। लेकिन सड़क का किनारा दूसरा हो गया था। हमें लगा वह हमको देखकर मुस्कराई भी। यह सोचकर हम अभी मुस्करा रहे हैं। आप भी शायद मुस्कराओ पढ़कर। मुस्कराते हुए आईना देखिएगा। आप खुद को खूबसूरत दिखेंगे।
कल नर्मदा की दो बार परिक्रमा कर चुके अमृतलाल वेगड़ जी से मुलाकात हुई। 87 साल के वेगड़ जी से मिलना अद्भुत अनुभव होता है। उनकी किताब 'सौंदर्य की नदी नर्मदा' का संस्कॄत में अनुवाद हो चुका है। उसका प्रकाशन होना है। लेकिन अकादमी के प्रकाशक इस मामले में चींटी से भी धीमी चाल से चल रहे हैं।
वेगड़ जी की पुस्तकें 'मध्य प्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी' से प्रकाशित हैं।अद्भुत यात्रा संस्मरण हैं उनकी नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के बारे में लिखी पुस्तकें:
वेगड़ जी अपनी पेंटिंग्स की किताब तैयार कर रहे हैं। वे उसको छपवाना चाहते हैं। दस डमी तैयार कर चुके हैं। किताब के दाम करीब 600 रूपये होंगे। कोई सक्षम प्रकाशक छापकर इनको बेचें तो हजारों किताबें बेच सकता है। अद्भुत चित्र हैं इसमें। लेकिन अभी तक ऐसे किसी प्रकाशक से बात नहीं हो पायी है।अब वेगड़ जी खुद छपवाने की सोच रहे हैं अपनी किताब। उनको लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि वे किताब छपा लें और वह घर में ही धरी रह जाए।
किताब की डमी देखकर हम अविभूत हो गए। हमने वेगड़जी से कहा-'अरे लोग खूब खरीदेंगे किताब।आप छपवाइये।' वे उत्साहित हो जाते हैं लेकिन अनुभव उनके उत्साह पर ब्रेक लगाता है और वे कहते हैं-'लोग कह देते हैं लेकिन जब खर्च की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं।' हम फिर भी कहते हैं कि हां होता है ऐसा लेकिन आपकी किताब ऐसी है कि हजार क्या लाखों प्रतियां बिकेंगी।
वेगड़ जी खुश हो गए। कहने लगे--'हमने अपने जीवन में देखा है कि अगर आप अच्छा काम करते हैं तो सहयोग की कमी नहीं रहती। अनजान लोग तक सहायता करते हैं।'
वेगड़ जी की किताब 'अमृतस्य नर्मदा' का एक अंश यहां उद्धृत कर रहा हूँ:
वेगड़ जी की नर्मदा यात्रा पर बनाए चित्रों की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' अगस्त तक छप जायेगी। 600 रूपये दाम हैं इसके। मैंने वेगड़ जी से वायदा किया है कि उनकी किताब के लिए इच्छुक ग्राहक खोजने में मैं उनकी मदद करूँगा। हो सकता है कि ग्राहक न जुटें ।600 रूपये की है न किताब। लेकिन इसको अच्छा काम मानते हुए वेगड़ जी की किताब के लिए ग्राहक खोजने के काम में सहयोग देने का निश्चय किया है मैंने। सफल रहा तो अच्छी बात। असफल रहा तब भी यही सोचकर खुश होऊंगा कि अच्छे काम में असफल होना भी अच्छा होता है।
यह बात सबसे पहले मैं आपसे ही साझा कर रहा हूँ। आपमें से कितने लोग अमृतलाल वेगड़ जी की पेंटिंग की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' खरीदना चाहेंगे? किताब के दाम 600 रूपये करीब होंगे।आर्ट पेपर पर छपी किताब में 100 के करीब चित्र होंगे। बताइये टिप्पणी करके अगर आप वेगड़ जी की किताब खरीदने की इच्छा रखते हैं। smile इमोटिकॉन
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
'फिर न कहना माइकलगाना याद आते ही हम गाड़ी में ब्रेक मार दिए। साईकिल रुक तो गयी लेकिन झटके से रोका इससे थोड़ा नाराजगी टाइप दिखाई। वह आगे चलने के मूड में थी। अगले पहिये ने थोड़ा उचककर साईकिल के उखड़े मूड का इशारा किया। ताला लगाकर चाय पीने रुक गए।
दारू पीकर दंगा करता है।'
35 साल पुरानी है 'माइकल टी स्टॉल'। 300 रूपये किराया है गुमटी का। बिजली और पानी अलग। सुबह 5 से रात 9-10 तक चलती है दूकान।15-20 लीटर दूध की चाय बेंच लेते हैं। दो भाई मिलकर चलाते हैं। एक चाय बना रहा था तो दूसरा भाई पोहा के लिए आलू छील रहा था।
दूकान से दस कदम की दूरी पर देखा एक आदमी बिजली के खम्भे के पास सड़क को प्रणाम सा कर रहा था। पता चला वहां मंदिर है। दो फुट ऊँचा मन्दिर दो फुट करीब ही लम्बा चौड़ा होगा। शंकर जी विराजे थे अंदर। वह आदमी दूर से ही प्रणाम कर रहा था। वायरलेस नेटवर्क से 'वाईफाई' प्रणाम।
चाय पीकर लौटते हुए वे लोग दिखे जो जाते समय भी दिखे थे। एक लड़की सड़क पर सीधे तेजी से टहलते हुए कान में इयरफोन लगाये अक्सर दिखती है।उसकी चाल में उत्साह है। आत्मविश्वास है। जिस जगह जाते में दिखी आते में लगभग उसी जगह दिखी। लेकिन सड़क का किनारा दूसरा हो गया था। हमें लगा वह हमको देखकर मुस्कराई भी। यह सोचकर हम अभी मुस्करा रहे हैं। आप भी शायद मुस्कराओ पढ़कर। मुस्कराते हुए आईना देखिएगा। आप खुद को खूबसूरत दिखेंगे।
कल नर्मदा की दो बार परिक्रमा कर चुके अमृतलाल वेगड़ जी से मुलाकात हुई। 87 साल के वेगड़ जी से मिलना अद्भुत अनुभव होता है। उनकी किताब 'सौंदर्य की नदी नर्मदा' का संस्कॄत में अनुवाद हो चुका है। उसका प्रकाशन होना है। लेकिन अकादमी के प्रकाशक इस मामले में चींटी से भी धीमी चाल से चल रहे हैं।
वेगड़ जी की पुस्तकें 'मध्य प्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी' से प्रकाशित हैं।अद्भुत यात्रा संस्मरण हैं उनकी नर्मदा और उसकी सहायक नदियों के बारे में लिखी पुस्तकें:
1. सौंदर्य की नदी नर्मदाये पुस्तकें 'मध्य प्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी' से प्रकाशित होने के कारण मध्य प्रदेश तक ही सीमित रह जाती हैं। इनको अगर 'नेशनल बुक ट्रस्ट' छाप सके तो देश भर में इनका प्रसार हो।
2.अमृतस्य नर्मदा
3. तीरे तीरे नर्मदा
वेगड़ जी अपनी पेंटिंग्स की किताब तैयार कर रहे हैं। वे उसको छपवाना चाहते हैं। दस डमी तैयार कर चुके हैं। किताब के दाम करीब 600 रूपये होंगे। कोई सक्षम प्रकाशक छापकर इनको बेचें तो हजारों किताबें बेच सकता है। अद्भुत चित्र हैं इसमें। लेकिन अभी तक ऐसे किसी प्रकाशक से बात नहीं हो पायी है।अब वेगड़ जी खुद छपवाने की सोच रहे हैं अपनी किताब। उनको लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि वे किताब छपा लें और वह घर में ही धरी रह जाए।
किताब की डमी देखकर हम अविभूत हो गए। हमने वेगड़जी से कहा-'अरे लोग खूब खरीदेंगे किताब।आप छपवाइये।' वे उत्साहित हो जाते हैं लेकिन अनुभव उनके उत्साह पर ब्रेक लगाता है और वे कहते हैं-'लोग कह देते हैं लेकिन जब खर्च की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं।' हम फिर भी कहते हैं कि हां होता है ऐसा लेकिन आपकी किताब ऐसी है कि हजार क्या लाखों प्रतियां बिकेंगी।
वेगड़ जी खुश हो गए। कहने लगे--'हमने अपने जीवन में देखा है कि अगर आप अच्छा काम करते हैं तो सहयोग की कमी नहीं रहती। अनजान लोग तक सहायता करते हैं।'
वेगड़ जी की किताब 'अमृतस्य नर्मदा' का एक अंश यहां उद्धृत कर रहा हूँ:
"नर्मदा को मैं सौंदर्य की नदी मानता हूँ। अपनी पुस्तक को मैंने यही नाम दिया है।आप जानते ही हैं, यह सौंदर्य प्रतियोगिताओं का युग है। अगर भारत की नदियों की सौंदर्य प्रतियोगिता हो तो सर्वोत्तम पुरस्कार नर्मदा को ही मिलेगा। नर्मदा सौंदर्य का प्रचार-प्रसार करना यही मेरे जीवन का एक मात्र व्रत है। मेरे सामने उद्देश्य महान है और मेरी शक्ति सीमित। हो सकता है मुझे इसमें सफलता न मिले,मैं असफल रहूँ। लेकिन अच्छे काम में असफल होना भी अच्छा होता है। सीता का हरण करने में रावण सफल हो गया था, उसे रोकने में जटायु असफल। लेकिन जटायु की असफलता रावण की सफलता से हजार गुना श्रेयस्कर है।"
वेगड़ जी की नर्मदा यात्रा पर बनाए चित्रों की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' अगस्त तक छप जायेगी। 600 रूपये दाम हैं इसके। मैंने वेगड़ जी से वायदा किया है कि उनकी किताब के लिए इच्छुक ग्राहक खोजने में मैं उनकी मदद करूँगा। हो सकता है कि ग्राहक न जुटें ।600 रूपये की है न किताब। लेकिन इसको अच्छा काम मानते हुए वेगड़ जी की किताब के लिए ग्राहक खोजने के काम में सहयोग देने का निश्चय किया है मैंने। सफल रहा तो अच्छी बात। असफल रहा तब भी यही सोचकर खुश होऊंगा कि अच्छे काम में असफल होना भी अच्छा होता है।
यह बात सबसे पहले मैं आपसे ही साझा कर रहा हूँ। आपमें से कितने लोग अमृतलाल वेगड़ जी की पेंटिंग की किताब 'नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो' खरीदना चाहेंगे? किताब के दाम 600 रूपये करीब होंगे।आर्ट पेपर पर छपी किताब में 100 के करीब चित्र होंगे। बताइये टिप्पणी करके अगर आप वेगड़ जी की किताब खरीदने की इच्छा रखते हैं। smile इमोटिकॉन
आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
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