Friday, May 22, 2015

नर्म बिस्तर ऊंचीं सोचें फिर उनींदापन


कुछ मित्रों को शिकायत है कि साईकिल के चक्कर में पुलिया की उपेक्षा हो रही है। इसलिए आज कुछ पुलिया के किस्से सुनिए। लेकिन पहले इस मसले पर सफाई पेश है।

साइकिल तो सुबह और कभी-कभी शाम को चलाते हैं। लेकिन पुलिया के पास से गुजरना बदस्तूर जारी है।दिन में चार बार गुजरते हैं पुलिया की बगल से। जब भी किसी नए किरदार से भेंट होती है तो उसका फोटो और बातचीत पेश करते हैं। लेकिन जब वही लोग मिलें जिनसे पहले मिल चुके हैं तो लगता है कि क्या लिखें उनके बारे में।

आजकल तिवारी जी अक्सर मिलते हैं पुलिया पर। किसी न किसी आसन पर विराजे हुए। कभी खम्भे पर, कभी साइकिल की गद्दी पर। पानी की बोतल बगल में। आजकल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बन्द है सो उनकी 'योग नुमाइश' चलती रहती है।

आज भी मिले थे तिवारी जी। हमसे बोले--'नीम की दातून किया करिए।फायदा बहुत करतीहै।' पता नहीं किसलिए कहा उन्होंने ऐसा। हो सकता है जैसे हम आजकल सबको साइकिल चलाने का सुझाव देते हैं वैसे ही वे हमको नीम की दातून करने का सुझाव उछाल दिए हों।

नीम की दातून से याद आया कि ब्लागिंग के शरुआती दिनों में एक बार Gyan जी के उकसावे पर हमने लेख लिख मारा था--'दातुन कर ब्लॉग लिखने के फायदे।' उनमें से शुरूआती 3 फायदे तो हम आपको यहीं गिना देते हैं। बाकी के 18 फायदे अगर जानने का मन हो तो इस पोस्ट पर आएं। आने में एतराज हो तो पधारें। जैसा आपको मन करे।

1. सबसे पहला फ़ायदा तो वही वाला मिलेगा जो सबसे पहले होने पर मिलता है। अभी तक किसी ने दावा नहीं ठोंका लिहाजा आप दुनिया के पहले और अभी तक के एकमात्र ब्लागर माने जायेंगे जो दातुन करने के बाद ब्लागिंग करता है।

2. आप लोगों से ऐंठ कर कह सकते हैं आप स्वदेशी की भावना से लथपथ हैं। विदेशी कम्पनियों का बनाया और प्रचारित किया मंजन इस्तेमाल नहीं करते।

3. दातुन करने के बाद ब्लाग लिखने की आदत डालते ही आप ब्लागिंग नियमित करने लगेंगे। यह इस धारणा पर आधारित है कि आप रोज दातुन करते हैं।



एक दिन मेस से निकलते ही पुलिया पर एक दम्पत्ति दिखे। पता चला वीएफजे से ही 2009 के रिटायर हैं। मतलब उमर 65 पार। हाल-चाल पूछा तो पता चला कि 11 बच्चों के गर्वीले पिता हैं। पत्नी उनकी देखकर लग नहीं रहा था कि इतनी उम्र दराज हैं कि 11 बच्चों की जननी हों जिनमें से आठ की शादी हो चुकी हो।

बाद में खुलासा होने पर पता चला कि 11 में से आठ उनकी पहली पत्नी के बच्चे थे जो कि वर्तमान पत्नी की बड़ी बहन थीं। 3 बच्चे उनके खुद के हैं। हमें लगा कि हाल में ही जो 4/5 बच्चों पैदा करने का कम्पटीशन जो चला था उसमें इनका नाम भेज दें तो दो इनाम तो पक्के।

नाम पता किया तो पता चला उनका नाम आशाराम था। गनीमत बस यही कि अपने नाम के आगे बापू नहीं लगाते और न ही उनकी तरह प्रवचन देते पाये गए।

अभी शाम को एन डी टी वी के एक कार्यक्रम में बता जा रहा था कि जब स्मार्ट सिटी बनेगा तब कूड़ा कचरा स्वचालित तरीके से संस्कारित होगा। मतलब कूड़े को स्वचालित तरीके से ठिकाने लगा दिया जायेगा।

मुझे समझ नहीं आता कि क्या कभी हमारा कानपुर या जबलपुर भी स्मार्ट सिटी बनेंगे? बनेंगे तो कब बनेंगे? जबलपुर में पिछले चार साल से निर्माण रत ओवरब्रिज क्या शहर के स्मार्टसिटी बनने तक पूरा हो जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि पूरा शहर स्मार्ट बनाने की बजाय कुछ कुछ हिस्सों को स्मार्ट घोषित कर दिया जाये। वे हिस्से शायद ऐसे होंगे जहां बिजली,पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भुगतान के आधार पर उपलब्ध होंगी।

ओह क्या क्या कल्पनायें मन के डिब्बे में अपना रुमाल धरकर सीट रिजर्व कराने निकल पड़ीं। बहुत साल पहले की एक तुकबन्दी या आ गयी:
'नर्म बिस्तर
ऊंचीं सोंचे
फिर उनींदापन'
चलिए आप भी सोइये। हम जरा डिनरिया के तब सूतेंगे। ठीक न! शुभ रात्रि।

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