Thursday, May 07, 2015

बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा

तस्वीर बनाता हूँ तेरी
खूने जिगर से।

यह गाना बज रहा है चाय की दूकान पर।आज चाय वाले लौट आये हैं। इंदौर गए थे। परिवार की शादी में। बगल में बैठे भाई जी चाय पीने के बाद फर्श पर पान मसाले का परवलय बना रहे हैं। भूरी मिटटी की जमीन पर पीक एकरस होती जा रही है।

सुबह निकले तो पेड़ पौधे चुपचाप खड़े थे। लगता है सलमान की सजा से फ़िल्म वालों की तरह दुखी हैं।लेकिन फिर लगा कि नहीं वे इस मसले पर मिडिया और अन्य की बेसिरपैर की प्रतिक्रियाओं पर सन्न होंगे शायद।

अख़बार की खबर से पता चला कि उनके वकील ने सलमान द्वारा 700 से ज्यादा बच्चों के दिल का इलाज कराने का हवाला भी दिया था। कल से ज्यादातर मिडिया सलमान के बारे में एक एक खबर बता रहे हैं। मारे गए लोगों के बारे में हिसाब बहुत कम है।एक उलार बैलगाड़ी के अगले हिस्से की तरह सबको सलमान सलमान दिख रहा है। मारे गए आम आदमी गाड़ी के पिछले हिस्से की तरह नहीं दिख रहे मिडिया को।

गाना बज रहा है:
जिंदगी ख्बाव है
ख़्वाब में झूठ क्या और सच क्या।
रास्ते में एक मोटरसाइकिल तेजी से निकली। हमारे और उसके बीच की तेज हवा ने हमको उसके पास ला दिया। सुरक्षित रहने के बाद हमको इंटर में पढ़ी बरनौली थ्योरम याद आई। लगा कि थोड़ा और नजदीक से निकलती तो हम लड़खड़ा कर शायद सट जाते उससे।क्या पता चोट चपेट लग जाती। क्या पता क्या होगा। आगे कल्पना नहीं करेंगे वर्ना मन डांट देगा-'शुभ शुभ सोचो वैशाख नंदन।'

अगला गाना बजने लगा:

आने से उसके आये बहार
जाने से उसके जाए बहार
बड़ी मस्तानी है मेरी महबूबा।
गाना सुनते हुए लगा कि यह गाना तू चीज बड़ी है मस्त मस्त का पूर्वज है। पहले बहार बताया,फिर मस्तानी बताया महबूबा को। इसके बाद महबूबा को चीज बता दिया। आदमी को उत्पाद में बदलना और उसको बेचना इसी तरह होता होगा।

ये दुनिया ये महफ़िल
मेरे काम की नहीं।
जहां शाखा लगती थी वहां प्लास्टिक और थर्मोकोल के पत्तल और ग्लास बिखरे हुए हैं। रात को पार्टी हुई होगी।एक बच्ची कूड़े में से काम का कूड़ा बीन रही है। बेचकर कुछ कमाएगी। एक एक ग्लास खोज खोज कर बीन रही है। मध्य प्रदेश में कन्याओं के लिए अनगिनत योजनाएं चलती हैं। शायद उनमें से कोई इस बच्ची तक नहीं पहुंच पाईं होंगी। योजनाओं का जाम लग जाता है तो योजनायें ठहर जाती हैं। आगे नहीं बढ़ पातीं। बड़ा झाम हैं।

'सजना साथ निभाना'

नायिका गाना गा रही है। सोचते हैं कि साथ निभाने की विनती नायिका ही क्यों करती है।नायक क्या निठल्ला ही रहेगा। साथ बचाने का काम सिर्फ नायिका के जिम्मे ही रहेगा। अपने यहां दाम्पत्य जीवन में भी अधिकतर मामलों में साथ निभाने की, झेलने की जिम्मेदारी अधिकतर महिलाओं पर ही होती है-पति भले ही आवारा, निठल्ला, लम्पट हो।

हाल यह है कि ठीक ठाक पति मिल गया तो अच्छा भाग्य वर्ना उसके करम ही ऐसे थे तो क्या किया जाए।महिलायें चूंकि विदा होकर दूसरे घर में आती हैं सो वैसे भी उनकी स्थिति शरणार्थी सी रहती है। हर ऐरी गैरी कसौटी पर परखा जाता है उनको। खासकर घर में रहने वाली महिलाओं को तो अपने को पूरा गलाकर नए साँचे के हिसाब से ढालना होता है।

यह हमारे अपने अनुभव के हिसाब से बनी सोच है। आपकी सोच अलग हो सकती है। इस मामले में फिर कभी।अब चला जाए। कमरे पर पहुंचकर तैयार होना है।दफ्तर जाना है।
गाना बजने लगा:
ये दुनिया ये चौबारा
यहां आना न दोबारा।
मेरा यहां कोई नहीं।
हम गाना भले सुन लिए। लेकिन फिर आएंगे। आप अच्छे से रहें। खुद को प्यार करें। साथ के लोगों को भी कर लेने में कोई हर्ज नहीं है। कर लें। जो होगा देखा जाएगा।

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